मैं हूं… सनातन की ग्रंथसंपदा.. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का धर्मदूत !

पू. संदीप आळशी
पू. संदीप आळशी

शिवजी की जटा से जिस प्रकार गंगानदी पृथ्वी को पावन करने के लिए अवतरित हुई, उसी प्रकार सनातन संस्था के संस्थापक परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी की प्रेरणा से अखिल मानवजाति का उद्धार करने के लिए सनातन के ग्रंथों के माध्यम से ज्ञानगंगा अवतरित हुई है ! सनातन के रजत महोत्सव के निमित्त सनातन की ग्रंथसंपदा का अद्वितीयत्व दर्शानेवाला यह लेख…

अध्यात्मशास्त्र, साधना, आचारधर्म,
  धर्मजागृति,  राष्ट्ररक्षा, बालसंस्कार, आयुर्वेद, स्वभाषा,
 भावी आपात्काल  में संजीवनी सिद्ध होनेवाली बिंदूदाब जैसी
उपचारपद्धतियां आदि विषयों से संबंधित २९३ ग्रंथों की १५ भाषाआें में 
६६ लाख  २१ सहस्र प्रतियां जुलाई २०१६ तक प्रकाशित हुई हैं ।
 मेरी वंशपरंपरा !

मेरी वंशपरंपरा प्राचीन है । मेरे पूर्वजों का जन्म अखिल मानवजाति के कल्याण के लिए ही हुआ था ।
तपस्वी ऋषि-मुनियों को आत्मसाक्षात्कार हुआ और धर्मज्ञान प्रदान करनेवाले वेदों का प्रथम जन्म हुआ । आगे युग बीतते गए और दर्शन, रामायण, महाभारत, श्रीमद्भागवत व पुराण, इस प्रकार हमारी वंशपरंपरा बढती गई और उस-उस काल के लिए आवश्यक ब्राह्मतेज और क्षात्रतेज से युक्त धर्मग्रंथों की निर्मिति भारतवर्ष में होती रही ।

मेरे ग्रंथ : ब्राह्मतेज और क्षात्रतेज
के तालमेल से युक्त आधुनिक काल की गीता !

श्रीमद्भगवद्गीता, इस ग्रंथ की विशेषता क्या है ? सर्वधर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज । अर्थात सर्व प्रकृतिधर्मों, षड्रिपुआें एवं अहं का त्याग कर केवल मेरी ही शरण में आओ, ऐसा उपदेश देनेवाले गुरु भगवान श्रीकृष्ण, अपने शिष्य अर्जुन को ईश्‍वरप्राप्ति का रहस्य और मार्ग दिखाते हैं । ईश्‍वर की यह गीता ब्राह्मतेज और क्षात्रतेज का आदर्श तालमेल है ।

समाज अध्यात्ममार्गी, धर्माचरणी बनने से नैतिकता, चारित्र्यशीलता, बंधुभाव, कर्तव्यदक्षता आदि गुणों का उसमें विकास होकर सामाजिक स्थिरता प्राप्त होती है । इसी के साथ अन्याय, अधर्म आदि को वैध मार्ग से चुनौती देने पर ही राष्ट्रीय जीवन में भ्रष्टाचार, गुंडागर्दी और सामाजिक विषमता जैसे दुर्गुणों पर रोक लगती है और राष्ट्र सुरक्षित एवं सुव्यवस्थित रहता है । इसीलिए ब्राह्मतेज और क्षात्रतेज में सुयोग्य तालमेल होना आवश्यक है ।

गीता की भांति मेरे ग्रंथ चैतन्यमय और प्रासादिक !

आज गीता कई लोगों का उपासना-ग्रंथ है । अनेक लोगों का वह ध्येयमंत्र है । कई लोगों का वह जीवन-आदर्श है । युग बीतने पर भी गीता का स्थान हिन्दुआें के मन में दृढ है । इसका एकमात्र कारण यह है कि गीता चैतन्य का मूर्तिमंत स्वरूप है और वह प्रासादिक है । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी वर्तमान कलियुग में भगवान श्रीकृष्ण के साक्षात अवतार ही हैं, यह बात आज तक अनेक संतों ने बताई है और सनातन के सैकडों साधकों को इसकी अनुभूति भी हुई है ! सनातन के ग्रंथ परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की चैतन्यमय लेखनी से सिद्ध हो रहे हैं । समाज को अध्यात्म का मार्ग दिखानेवाले और साधकों को मोक्ष तक पहुंचानेवाले ये ग्रंथ, आधुनिक गीता के विविध श्‍लोक हैं ।

काल करै सो आज, आज करै सो अब, पल में परलय होयगी, बहुरि करेगो कब, ऐसा एक वचन है । स्वयं आदर्शवत कृति किए बिना केवल निरर्थक बकवास करनेवालों के शब्दों का कोई मूल्य नहीं होता और इसीलिए उस उपदेश में शब्दशक्ति और चैतन्यशक्ति न होने से उस उपदेश का समाजमन पर प्रभाव नहीं पडता । मेरे ग्रंथों का भी वैसा ही है । साधकों को कालानुसार योग्य साधना सिखानेवाले परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने पहले स्वयं उसे आचरण में लाया है । इसीलिए उनका उपदेश मन पर दृढ संस्कार करता है और पाठक कृति के लिए प्रवृत्त होता है । सत्य के मार्ग पर ले जानेवाली सनातन संस्था, ईश्‍वर का स्थूल शरीर है और मेरे सर्व ग्रंथ उस शरीर की चैतन्यमय परमेश्‍वरीय शक्ति हैं !

ग्रंथों की रचना कालानुसार वैज्ञानिक परिभाषा में !

संत ज्ञानेश्‍वर, संत तुकाराम, संत एकनाथ, संत तुलसीदास, संत सूरदास आदि संतों ने दोहे, भजन, श्‍लोक इत्यादि की निर्मिति कर समाज को ईश्‍वरप्राप्ति संबंधी अनमोल मार्गदर्शन किया । उस काल में आज की तुलना में समाज की सात्त्विकता अधिक थी । इसलिए समाज अल्प शब्दों में भी अध्यात्म समझ सकता था । आज समाज की सात्त्विकता न्यूनतम स्तर पर पहुंच गई है, इसलिए अध्यात्म को समझ लेने की समाज की क्षमता भी अल्प हुई है । इसलिए समाज को अध्यात्म के सर्व अंगों का विश्‍लेषण कर दिखाना पडता है । इसका एक उदाहरण आगे दिया है ।

महाराष्ट्र के संत तुकाराम महाराज ने एक अभंग में कहा है, बोलावा विठ्ठल, पहावा विठ्ठल । करावा विठ्ठल जीवभावे । (मराठी में) अर्थात बोलिए विठ्ठल, देखिए विठ्ठल । साधें विठ्ठल से एकरूपता । यही बात आज के समाज को समझाने के लिए निम्नांकित विश्‍लेषण करना पडता है –

१. बोलिए विठ्ठल

नामजप कौन-सा करें ? नामजप की उचित पद्धति कौन-सी ? इत्यादि ।

२. देखिए विठ्ठल

दूसरों में भगवान देखने के लिए अपने में भाव कैसे लाएं ? इसके लिए अपना स्वभावदोष और अहं मिटाने के लिए प्रयत्न कैसे करें ? इत्यादि ।

३. साधें विठ्ठल से एकरूपता

अपने में देवत्व लाने के लिए क्रमशः साधना कैसे करें ? इत्यादि ।
मेरेे ग्रंथ वैज्ञानिक परिभाषा में अध्यात्म सिखाते हैं, इसलिए इस दृष्टि से भी वे वर्तमान समाज का उत्कृष्ट मार्गदर्शन करते हैं ।

आज तक पृथ्वी पर कहीं भी अनुपलब्ध एकमेवाद्वितीय ज्ञान !

ज्ञान अनादि-अनंत है । प्रत्येक युग में वह काल की आवश्यकतानुसार ब्रह्मांड में अवतीर्ण होता रहता है । मानवजाति के कल्याण के लिए द्रष्टा एवं ऋषि-मुनि उसे ग्रहण कर, ग्रंथरूप में संकलित करते हैं । वर्तमान कलियुग के आधुनिक ऋषि परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की कृपा से सनातन के साधकों को नवीनतापूर्ण / अलौकिक ज्ञान मिल रहा है और उसे ग्रंथरूप में संकलित किया जा रहा है ।
सनातन के कई ग्रंथों में अंतर्भूत ३० से ८० प्रतिशत ज्ञान, आज तक पृथ्वी पर कहीं भी उपलब्ध नहीं है । शब्दजन्य ज्ञान, आकृतियां, सारणियां, सूक्ष्म-ज्ञानविषयक चित्र, सूक्ष्म-परीक्षण, सूक्ष्मसंबंधी प्रयोग आदि विविध रूपों में यह ज्ञान ग्रंथों में साकार हुआ है ।

आगामी भीषण आपात्काल का भी विचार !

सर्व संत और ज्योतिषियों के मतानुसार आपात्काल प्रारंभ हुआ है और उसकी तीव्रता प्रतिदिन बढती ही जानेवाली है । बाढ, भूकंप, आंधियां, सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदाएं और अराजक, परमाणुयुद्ध जैसी मानवनिर्मित आपदाआें का अब सामना करना पडेगा । ऐसे भीषण आपात्काल में भावी आपात्काल की संजीवनी, इस ग्रंथमाला के मेरे ग्रंथ, विकारग्रस्तों तथा पीडितों के लिए संजीवनी सिद्ध होंगे । आगामी कालगति को समझकर मानवजाति के कल्याण के लिए इतनी दूरदृष्टि से विचार सर्वज्ञ और द्रष्टा परम पूज्य डॉक्टरजी ही कर सकते हैं !

महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय के मूलाधार ग्रंथ !

वसिष्ठ ऋषि से श्रेष्ठ नैतिक मूल्यों की शिक्षा प्राप्त कर प्रभु श्रीरामचंद्र ने आदर्श रामराज्य स्थापित किया । आगामी काल में ऐसी ही शिक्षा देने के लिए महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय की स्थापना की जानेवाली है । मेरे ग्रंथ महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय के मूलाधार ग्रंथ हैं । इसलिए धर्मशास्त्र के साथ राजनीति, अर्थशास्त्र, न्यायशास्त्र जैसे सर्व अंगों का विचार करनेवाले ग्रंथ सिद्ध करना, सनातन का ध्येय है । महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त करनेवाले विद्यार्थी केवल संत नहीं, अपितु राष्ट्रसंत होंगे । हिन्दू राष्ट्र (सनातन धर्म राज्य) निष्कलंक रखने के साथ उसका तेज और अस्मिता बढानेवाले वे महापुरुष होंगे !

मेरे ग्रंथों का प्रसार कर आप भी ईश्‍वरीय कृपा के पात्र हो जाएं !

मेरे ग्रंथ घर-घर में, विद्यालयों में और वाचनालयों में पहुंचाना, अन्यों को उपहार के रूप में देना; उनके लिए प्रायोजक बनना अथवा विज्ञापन देना आदि विविध मार्गों से आप भी ग्रंथों का प्रसार कर सकते हैं । इससे आप भी राष्ट्र और धर्म के इस पवित्र कार्य में सम्मिलित हो पाएंगे और इससे आपको ईश्‍वरीय कृपा का फल भी मिलेगा, इसकी निश्‍चिती रखें !
– (पूज्य) श्री. संदीप आळशी, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा (१.८.२०१६)

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