आपातकाल में अनिष्ट शक्तियों के कष्टों की ओर देखने का दृष्टिकोण एवं कष्ट पर मात करने के उपाय

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श्रीचित्‌शक्ति (सौ.) अंजली गाडगीळ

१. साधको, आपातकाल में कष्ट अल्प तो हो रहा है न, इस ओर अधिक ध्यान न देते हुए कष्ट में भी अपनी साधना हो रही है न, इस ओर ध्यान देने से निराशा नहीं आएगी !

अनेक साधक आध्यात्मिक कष्ट पर मात करने के लिए आध्यात्मिक उपायों में बैठते हैं । वर्तमान में आपातकाल आरंभ होने से ऐसा नहीं है कि कष्ट पूर्णरूप से चला जाएगा । यहां ध्यान देनेवाली बात यह है कि कष्ट में भी यदि हम भगवान से अपना अनुसंधान टिकाए हैं, तो उसमें भी साधना होगी और भगवान को अपेक्षित प्रगति भी होगी ।

 

२. सेवा करना एक आध्यात्मिक उपाय ही है, यह समझकर सेवा को प्रधानता दें !

आपातकाल में पहली प्रधानता सेवा को ही देनी चाहिए । सत्सेवा ही कष्ट पर मात करने के लिए आध्यात्मिक उपाय है, ऐसा समझकर हमसे जो संभव हो, वह सेवा करें । सेवा में मन व्यस्त रहने से कष्ट की ओर अधिक ध्यान नहीं जाता और कष्ट कब घट गया, यही समझ में नहीं आता । सेवा होने से मन भी आनंदी रहता है ।

 

३. कष्ट बहुत बढ जाए, तो उपाय करने को ही प्रधानता दें !

सेवा करना संभव न हो और कष्ट बहुत अधिक बढ गया हो, तब ही आध्यात्मिक उपायों में बैठें । आपातकाल का आरंभ होने से कष्ट तुरंत ही अल्प होना चाहिए, ऐसी अपेक्षा करना गलत है । इससे निराशा आने पर कष्ट और अधिक बढ जाता है ।

 

४. मन की सकारात्मकता बढाना आवश्यक होना

अनिष्ट शक्तियों का कष्ट होने पर भी हमें भगवान की सहायता भी उतनी ही मिल रही है, इस विचार की ओर ध्यान दें । इससे मन सकारात्मक होता है । मन की सकारात्मकता ही हमारी खरी शक्ति है । यह शक्ति बढानी आवश्यक है ।

 

५. अपने आध्यात्मिक कष्ट के प्रति सहानुभूति जताने की आदत लगने से संघर्ष करने की ओर ध्यान अल्प और अपने कष्ट की ओर अधिक ध्यान रहता है, इससे हमारा भगवान से दूर जाना

मुझे आध्यात्मिक कष्ट है न, इसलिए अधिक सेवा करना नहीं होता, इस विचार की ढाल बनाकर हम ही अपनी आध्यात्मिक प्रगति होने के मार्ग में बाधा बन रहे हैं, यह ध्यान में रखें । जब कष्ट किसी भी प्रकार कम न हो रहा हो तो तुरंत उपाय की ओर ही अधिक ध्यान दें । अपने आध्यात्मिक कष्ट के प्रति सहानुभू्ति रखने की आदत लगने से संघर्ष की ओर ध्यान अल्प और अपने कष्ट को अधिक मह‌त्त्व देने से हम भगवान से दूर जाते हैं । इसके परिणामस्वरूप आध्यात्मिक प्रगति से भी दूर रहते हैं ।

 

६. मन की नकारात्मक धारणा के कारण भगवान की अपेक्षा कष्ट देनेवाली अनिष्ट शक्ति को ही अधिक मह‌त्त्व देकर उसे श्रेष्ठ बनाना !

मन की नकारात्मक धारणा के कारण हम भगवान की अपेक्षा कष्ट देनेवाली शक्ति को ही एक प्रकार से श्रेष्ठ बना देते हैं । आध्यात्मिक कष्ट को श्रेष्ठ बनाने की अपेक्षा भगवान हमें कष्ट में भी सहायता कर रहे हैं, इस ओर ध्यान देकर भगवान के चरणों में कृतज्ञ रहने से आपातकाल में भी साधना होगी । अन्यथा कष्ट के कारण अपने प्रति सहानुभूति रखने में ही जीवन बीत जाएगा । इसलिए समय रहते ही सावधान हो जाएं !

– (पू.) श्रीमती अंजली गाडगीळ, बंगलुरू, कर्नाटक. (१६.१२.२०१५, सवेरे १०.४०)

 

साधकों का सेवा एवं कष्ट के संदर्भ में योग्य दृष्टिकोण

१. अयोग्य दृष्टिकोण : ठीक लगने पर सेवा करूंगा ।

२. योग्य दृष्टिकोण :  ठीक लगने के लिए सेवा करूंगा ।

– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले (२१.१२.२०१५)

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