गोपियों के गुण

१. सेवाभाव

कु. मधुरा भोसले

गोपियों में श्रीकृष्ण के प्रति बहुत सेवाभाव था । वे श्रीकृष्ण की सेवा केवल शरीर से नहीं, मन एवं बुद्धि से भी करती थीं । उन्होंने श्रीकृष्ण की सेवा में अपना अहं पूर्णरूप से त्याग दिया था । वे २४ घंटे श्रीकृष्ण की सेवा में लगी रहती थीं । स्वप्न में भी श्रीकृष्ण की सेवा करती थीं । उन्होंने ७५ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर पर पहुंचने तक श्रीकृष्ण के सगुण रूप की सेवा की । पश्‍चात, उनके निर्गुण रूप (तत्त्व) की सेवा की ।

गोपियों को लगता था कि हम अपनी चूकों के कारण श्रीकृष्ण की सेवा परिपूर्ण नहीं कर पा रही हैं । इससे उन्हें खेद होता था । इसलिए, वे प्रयत्न करती थीं कि कोई चूक दुबारा न हो । उन्हें लगता था कि श्रीकृष्ण ही हमारी चूकें हमें बताते हैं । इससे, छोटी-छोटी चूकें भी उनके ध्यान में आती थीं । उनकी तडप और भाव के कारण उनपर श्रीकृष्ण की कृपा सदैव होती रही और प्रत्येक संकट में उनसे सहायता मिलती रही । आध्यात्मिक उन्नति होने पर, सबकुछ श्रीकृष्ण कर रहे हैं, इस भाव के कारण, श्रीकृष्ण उनके माध्यम से कार्य करते थे । इससे, गोपियों का प्रत्येक कार्य अचूक होता था तथा उससे सात्त्विकता, चैतन्य एवं आनंद की तरंगें प्रक्षेपित होती थीं ।

 

२. कठोर साधना

गोपियों ने कठोर साधना की थी । इसलिए, वे अल्प काल में ही चैतन्य, आनंद और शांति की अनुभूति कर सकीं । उनमें निर्गुण के प्रति आकर्षण अधिक था; इसलिए मेरे पास शीघ्र पहुंच सकीं ।

 

३.उत्तम शिष्या

सभी गोपियों में उत्तम शिष्या के गुण थे । इसलिए, श्रीकृष्ण के स्मरण से सेवा तक, उनका प्रत्येक कार्य निष्काम भाव से होता था । गोपियां अध्यात्म जीने की कला जानती थीं; इसलिए श्रीकृष्ण उनपर सदैव प्रसन्न रहते थे । उनकी लगन और भाव देखकर श्रीकृष्ण ने उनकी उन्नति शीघ्र करवाई । गोपियां श्रीकृष्ण की भक्त और शिष्या, दोनों थीं । श्रीकृष्ण केवल देवता का कार्य नहीं, गुरु का भी कार्य करते थे । इसीलिए, श्रीकृष्ण को जगद्गुरु कहा गया है ।

 

४. अहंकार का अभाव

गोपियों की सबसे बडी विशेषता थी कि उनमें अहंकार नहीं था । श्रीकृष्ण उनसे प्रेम करते थे फिर भी, उन्हें कभी नहीं लगा कि हम दूसरों से अलग हैं । वे अपने विषय में कभी नहीं सोचती थीं, उनके मन में प्रत्येक समय श्रीकृष्ण के ही विचार होते थे । इसलिए, उनमें अहंकार नहीं था ।

 

५. गोपियों की सहजसाधना

सेवा के माध्यम से गोपियां श्रीकृष्ण से एकरूप हो रहीं थीं । इससे, उनका प्रत्येक कार्य भावपूर्ण होता था । इस प्रकार, वे अनजाने ही ईश्‍वर की ओर बढ रही थीं । उन्हें, अलग से साधना नहीं करनी पडती थी । ऐसे स्वाभाविक प्रयासों को ही सहजसाधना कहते हैं । यह उच्च स्तर की साधना मानी जाती है । जहां निष्काम साधना होती है, वहां कोई बंधन अथवा नियम नहीं होता । उसमें किसी प्रकार का दु:ख भी नहीं होता । यह साधना कठिन होने पर भी, उससे जो मिलता है, वह चिरकाल तक टिकता है ।

 

६. भावदशा से भक्ति की ओर

गोपियों का श्रीकृष्ण के प्रति भाव निरंतर बढता गया तथा उन्हें भावावस्था प्राप्त हुई । भावावस्था में उन्हें चैतन्य तथा आनंद मिलता था । तब भी, उनमें कृष्णतत्त्व से एकरूप होने की इच्छा बढती जा रहा थी । इसीलिए, वे अल्प समय में ८५ प्रतिशत से अधिक आध्यात्मिक स्तर पर पहुंच सकीं और भावावस्था के आगे भक्ति की ओर जा सकीं । भक्ति अर्थात, देवता से एकरूपता । वास्तविक, गोपियां श्रीकृष्ण की भक्त थीं; इसलिए वे भावावस्था से शीघ्र निकलकर, भक्ति की अवस्था में पहुंच सकीं ।

 

७. अद्वैत का आकर्षण

अनेक भक्तों को अनुभूतियां होती हैं । वे जानते हैं कि ईश्‍वर ही सबकुछ करते हैं । ईश्‍वर के अतिरिक्त, सब माया है । फिर भी, उनका झुकाव सगुण की ओर होता है । निर्गुण के प्रति उनका आकर्षण अल्प ही होता है । अद्वैत के आनंद की अपेक्षा उन्हें माया का सुख अधिक प्रिय लगता है । इसलिए उनमें अद्वैत की ओर जाने की इच्छा नहीं होती । इसके विपरीत, गोपियों में अद्वैत का आकर्षण बहुत था । इसलिए, जब उन्हें ज्ञात हुआ कि यह संसार माया है, तब उनका आदि और अनादि भ्रम एक पल में नष्ट हो गया । इसीलिए, वे मधुराभक्ति में शारीरिक स्तर पर न रहकर, आध्यात्मिक स्तर पर पहुंचीं । द्वैत से अद्वैत की ओर शीघ्र जा सकीं ।

 

८. १०० प्रतिशत समर्पण

गोपियों को श्रीकृष्ण का वास्तविक रूप ज्ञात होते ही, वे उन्हें पूर्णत: समर्पित हुईं । अपना अहंकार त्यागकर, श्रीकृष्ण की शरण में गईं, यह बहुत महत्त्वपूर्ण बात है । अनेक ज्ञानी ईश्‍वर को जानते हैं; उनकी अनुभूतियां भी करते हैं । परंतु, ईश्‍वर की शरण में पूर्णतः नहीं जा पाते । अतः, उनके प्रकांड ज्ञान से न उन्हें और न दूसरों को ही लाभ होता है । इसके विपरीत, गोपियों को केवल एक बार जब ज्ञात हुआ कि श्रीकृष्ण व्यक्ति नहीं, ‘ईश्‍वर’ हैं, तब उन्होंने अपना सबकुछ उनपर न्योछावर कर दिया । इस १०० प्रतिशत समर्पण से ही उनकी अल्प काल में बहुत उन्नति हुई तथा अन्य कृष्णभक्तों की तुलना में उन्हें शीघ्र मोक्ष मिला ।

– कुमारी मधुरा भोसले

संदर्भ : दैनिक सनातन प्रभात

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