जगद्गुरु संत तुकाराम महाराज

संत तुकाराम महाराज इनका जन्म पुणे जिले के अंतर्गत देहू नामक गाव में शके 1520 में हुआ। इनकी माता का नाम कनकाई एवं पिता का नाम बोल्होबा था। जब तुकाराम महाराज प्राय: 18 वर्ष के थे इनके मातापिता का स्वर्गवास हो गया। भीषण अकाल में तुकारामजी का कारोबार, गृहस्थी समूल नष्ट हुई | पशुधन नष्ट हुआ | प्रथम पत्नी रखमाबाई तथा इकलौता बेटा संतोबा इनका देहांत हो गया | उसके बाद अठारह बरस की उम्र में ज्येष्ठ बंधु सावजी की पत्नी (भावज) चल बसी | पहले से ही घर-गृहस्थी में सावजी का ध्यान न था | पत्नी की मृत्यु से वे घर त्यागकर तीर्थयात्रा के लिए निकल गए | संत तुकाराम सांसारिक सुखों से विरक्त हो गए। चित्त को शांति मिले, इस विचार से तुकाराम प्रतिदिन देहू गाँव के समीप भावनाथ नामक पहाड़ी पर जाते और भगवान्‌ विट्ठल के नामस्मरण में दिन व्यतीत करते थे। तुकाराम महाराज जी ने ईश्वरप्राप्‍ति के लिए घर त्यागा | उन्होंने चिरंतन सत्य की प्राप्ति के बाद ही लौटने का निश्चय किया | उसके लिए वे आसनस्थ हुए | साँप, बिच्छू, चींटियाँ आदि ने उनके शरीर के सहारे बसेरा किया | वे उन्हें पीडित करने लगे | व्याघ्र (बाघ) ने भी आक्रमण किया; पर वे टस से मस न हुए | अपने स्थान पर अटल रहे | पंद्रहवें दिन उन्हें सत्य का साक्षात्कार हुआ |

तुकारामजी की दुसरी पत्‍नी जिजाबाई रोज गृह-कार्य कर, रसोई आदि बनाकर तुकारामजी के लिए खाना लेकर भंडारा पर्वत पर जाती थी । उन्हें खिलाकर बाद में स्वयं खाना खाती थी । जब तुकारामजी परमार्थ-साधना में विदेह अवस्था में होते थे, तब उनकी सारी देखभाल जिजाबाई करती थी ।

संत तुकारामजी के अभंगों से श्रुतिशास्त्र का सारांश स्पष्ट होने लगे । क्षेत्र आलंदी में ज्ञानेश्वरजी महाराज के महाद्वार पर कीर्तन करते समय उनकी यह प्रासादिक अभंगवाणी महापंडित रामेश्वर शास्त्री ने सुनी । उन्हें आश्चर्य हुआ । यह तो प्रत्यक्ष वेदवाणी प्राकृत में, बोलीभाषा में और वह भी तुकारामजी के मुखसे ?

रामेश्वर शास्त्री ने निषेध करते हुए कहा – “तुम शूद्र हो । तुम्हारी अभंगवाणी से वेदार्थ प्रकट होता है । तुम्हें वह अधिकार नही है। तुकारामजी ने बताया कि “यह मेरी अपनी वाणी नहीं, यह तो देववाणी है ।” बेहतर यही होगा की आप अपनी रचनाएँ पानी में डुबो दें । अगर ईश्वर ने आपको आदेश दिया होगा तो वही उसकी रक्षा भी करेगा ।तुकारामजी ने अभंग की चोपडियाँ उठाईं और पत्थर से बाँधकर इंद्रायणी में डूबो दीं। तुकारामजी महाद्वार में एक शिला पर, ईश्वर के सामने धरना दिए बैठे रहे । तेरह दिन बीत गये । देहू में स्वयं ईश्वर बालक-वेश धारण कर, तेरहवीं रात में तुकारामजी से मिले और उन्हें बताया कि मैंने स्वयं पानी में रात-दिन खडे रहकर अभंगों की सुरक्षा की है । कल वे पानी पर तैरेंगी । इसी तरह का स्वप्न-सूचन देहू ग्रामवासियों को भी मिला । उसके अनुसार सभी नदी किनारे पहुँचे । सब ने देखा की अभंग पानी पर तैर रही थीं ।

 

तुकाराम महाराज एवं छत्रपति शिवाजी महाराज

संत तुकाराम जी की ख्याति शिवाजी महाराज तक पहुँची । उन्होंने सेवकों के हाथ संत तुकाराम जी के लिए सेवकों के हाथों मशालें, छत्र, घोडे और जवाहरात भेजे । संत तुकाराम जी ने इसे बिना स्वीकारे निरपेक्ष भाव से लौटाया । संत तुकाराम जी की यह निर्लोभ, निरपेक्ष वृत्ति देखकर राजा शिवाजी अचंभित हुए । वे स्वयं वस्त्र, अलंकार, मुहरें लेकर सेवकों के साथ तुकाराम जी से मिलने लोहगाव गए । वह राजद्रव्य देखकर संत तुकाराम जी ने कहा –

“ क्यों देते हो धरोहर । हम तो धन्य विठ्ठल बनकर ॥१॥
समझे, तुम हो उदार । संपूर्ण पारसमणि पत्थर ॥२॥
तुका कहे यह धन । हमें गो-मांस समान ॥३॥ ”

“ चींटी और राव । हमें समान जीव ॥१॥
मिट्टी और कंचन । हमारे लिए एक समान ॥२॥ ”

ये सारी चीजें हमें सुख, संतोष नहीं दे पाएँगी । इससे तो भला आप भी ईश्वर को भजिए । हरि के दास कहलाइए ।

“ हमें उससे होगा सुख । विठ्ठल नाम हो आपके मुख ॥१॥
कहलाएँ आप हरिदास । यही एक मेरी आस ॥२॥ ”

संत तुकाराम जी के उपदेश से प्रभावित होकर शिवाजी राजा राज-कारोबार छोडकर उनका भजन, कीर्तन श्रवण करने लगे । तब संत तुकाराम जी ने उन्हें क्षात्रधर्म बतलाया –

“ हमारा कर्तव्य, जग को दें उपदेश । क्षात्रधर्म है सँभाले देश ॥ ”

युध्द-समय, सेवक हो आगे । तीर, गोलियों की बौंछार होती हो तो सैनिकों को उसे झेलना चाहिए । स्वामी की सुरक्षा कर शत्रु को हराना चाहिए, उससे सब छीनना चाहिए । शत्रु को अपना भेद पता न चले, इस बारे में सतर्क रहना चाहिए । जिस राजा की सुरक्षा के लिए सेना, सेवक वर्ग अपनी जान हाजिर करते हैं, वह राजा त्रिलोक में बलशाली होता है ।

संत तुकाराम जी ने आशीर्वचन देकर शिवाजीराजा को बिदाई दी । राजा तथा सैनिकों ने संत तुकाराम जी का उपदेश ग्रहण किया । उसे प्रत्यक्ष कृति में उतारा । तुकारामजी के आशीर्वचनों से वे सामर्थ्यसंपन्न बने ।

 

वैकुंठ गमन

तुकाराम बीज, फाल्गुन वद्य द्वितीया इस दिन संत तुकाराम महाराज सदेह वैकुंठ गमन कर गए । देहू गाव में  संत तुकाराम महाराज जहासें वैंकुठ गमन कर गए उस स्थानपर आजभी एक नांदुरकी वृक्ष है। यह वृक्ष आजभी हर तुकाराम बीज को दोपहर १२:०२ बजे हिलता है। अनेक भक्त गणोंने इसकी अनुभूति ली है ।

 

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