युद्ध की तैयारी, प्रत्यक्ष युद्ध तथा नागरिक

संकलनकर्ता श्री. प्रशांत कोयंडे

‘भारत ने जम्मू-कश्मीर को विशेषाधिकार प्रदान करनेवाले अनुच्छेद ३७० को रद्द कर उसका विभाजन कर ‘जम्मू-कश्मीर’ एवं ‘लद्दाख’ ये २ केंद्रशासित प्रदेश बनाए हैं । इससे स्वाभाविक रूप से पाकिस्तान और चीन क्षुब्ध हो गए हैं । पाकिस्तान के मंत्री भारत के साथ युद्ध की मांग कर रहे हैं, तो पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने ‘क्या मैं सेना को आक्रमण का आदेश दूं ?’, ऐसा वक्तव्य दिया है । दूसरी ओर भारत के गृहमंत्री अमित शाह ने लोकसभा में ही ‘हम पाकव्याप्त कश्मीर के लिए प्राण भी देंगे’, यह वक्तव्य दिया है । उससे कुछ दिन पूर्व भारत के सेनाप्रमुख जनरल बिपिन रावत ने ‘पाकव्याप्त कश्मीर’ एवं ‘अक्साई चीन’ भारत के अंग हैं तथा ‘उन्हें चर्चा के माध्यम से अथवा अन्य किस मार्ग से पुनः प्राप्त करना है’, यह राज्यकर्ताओं को सुनिश्‍चित करना है’, ऐसा कहा था । इन दोनों वक्तव्यों के एक-दूसरे से संबंध को अस्वीकार नहीं किया जा सकता । ‘उसका अगला कदम है अनुच्छेद ३७० को रद्द कर देना’, यह तर्क कोई लगा रहा हो, तो वह गलत न होगा । यदि ऐसा करना सुनिश्‍चित हुआ, तो युद्ध अटल है अब प्रश्‍न इतना ही बचता है कि वह कब होगा ? इस पृष्ठभूमि पर इस लेख में युद्ध की तैयारी, प्रत्यक्ष युद्ध तथा नागरिक आदि का विश्‍लेषण करने का प्रयास किया गया है ।

– श्री. प्रशांत कोयंडे, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.

 

‘युद्धस्य कथा रम्या ।’

‘युद्धस्य कथा रम्या ।’, ऐसा कहा जाता है; परंतु जब प्रत्यक्ष युद्ध होता है और जब वह असीमित कालावधि तक जारी रहता है, तब वह रम्य न रहकर बहुत ही पीडादायी बन जाता है । भारत के इतिहास में पहले ऐसा युद्ध कभी नहीं हुआ । पहले के युद्ध १ दिन से लेकर उंगलियों पर गिनने की कालावधि के लिए होते थे । उसमें भी मुसलमान आक्रमणकर्ताओं द्वारा भारत पर किए आक्रमणों के पश्‍चात यहां के हिन्दू लगभग ७०० वर्षों तक उनके साथ संघर्ष करते रहे, यह बात अलग है । पहला विश्‍वयुद्ध ४ वर्ष और दूसरा विश्‍वयुद्ध ६ वर्षों तक चला । इसमें चीन और रूस उत्तरी विएतनाम के पक्ष में थे, तथा अमेरिका दक्षिणी विएतनाम के पक्ष में । साथ ही इरान और इराक का युद्ध लगभग ८ वर्षों तक चला । इजरायल विगत ७० वर्षों से प्रतिदिन ही युद्ध की स्थिति में है । इसकी तुलना में भारत के वर्ष १९४८, १९६२, १९६५, १९७१ एवं १९९९ का करगिल युद्ध कुछ दिनों तक ही चला । इसका परिणाम संपूर्ण देश पर नहीं हुआ; इसलिए भारतीयों ने अभी तक ‘युद्ध का दंश क्या होता है ?’, इसका अनुभव नहीं किया है । पहले और दूसरे महायुद्ध के समय यूरोप के देशों ने इसे अनुभव किया है । और साथ ही ‘हिटलर’ द्वारा किए गए उत्पीडन का भी अनुभव किया है ।

अब युद्ध हुआ, तो वह सामान्य युद्ध न होकर उसका रूपांतरण परमाणु युद्ध में होने का संकट अधिक है । अतः ऐसा तर्क दिया जाता है कि उसकी कालावधि कुछ मास अथवा कुछ वर्ष तक रहने की अपेक्षा कुछ दिनों की हो सकती है । दूसरा विश्‍वयुद्ध निरंतर ६ वर्षों तक चलने के पश्‍चात केवल २ परमाणु बमों के उपयोग के पश्‍चात रुका था । अतः युद्ध की संभावना को ध्यान में लेते हुए ‘वह कितने दिनों तक चलेगा ?’, इस पर विचार कर सभी स्तरों पर उसकी तैयारी करना आवश्यक है और उसके पश्‍चात ही युद्ध किया जा सकता है । इसमें भी स्वयंप्रेरणा से युद्ध करनेवाला देश और जिस देश पर युद्ध थोपा गया हो, उनकी तैयारियां अलग-अलग हो सकती हैं ।

युद्ध करनेवाला देश योजनाबद्ध पद्धति से युद्ध की तैयारी करता है, तो जिस पर युद्ध थोपा गया है अथवा ‘हम पर यह स्थिति आ सकती है’, इसे जानकर सदैव युद्धसज्ज देश की स्थिति अलग-अलग होती है । लेख में आगे युद्ध करनेवाले देश की तैयारी में कौन-कौन से घटक होते हैं, इसकी व्यापकता देखने का प्रयास किया गया है । इससे पाठकों को ‘युद्ध की तैयारी’, ‘प्रत्यक्ष युद्ध’ तथा उसमें नागरिकों का सहभाग किस प्रकार होता है ? और कैसी होनी चाहिए ?, यह थोडा-बहुत ध्यान में आता है । साथ ही इस व्यापकता को देखते समय भारत के पारंपरिक शत्रु पाकिस्तान और चीन को सामने रखा गया है ।

 

युद्ध की तैयारी

१. शांति काल में ‘आक्रमण कब करना है ?’,

इसका नियोजन आक्रमण करनेवाले देश को युद्ध की तैयारी करते समय ‘उसे कितने दिनों तक युद्ध करना है और उसे इसमें कौन सा लक्ष्य साध्य करना है’, इस पर विचार करना होता है । यह लक्ष्य कितने दिनों में पूर्ण होगा और उसके लिए आवश्यक सैन्य सामग्री और अन्य सामग्री के संदर्भ में विचार करना पडता है । उदाहरणार्थ, पाकिस्तान स्थित आतंकियों को नष्ट करने हेतु भारत को यदि पाकिस्तान पर आक्रमण करना हो, तो उसे पहले सभी आतंकी शिविरों को नष्ट करने में लगनेवाला समय, पाकिस्तान के प्रत्युत्तर की क्षमता, उसे अन्य देशों से मिलनेवाली संभावित सहायता, तीनों सेनादलों के उपयोग की आवश्यकता, उसी समय सीमा पर चीन और अन्य पडोसी देशों की तैयारी, अंतरराष्ट्रीय स्तर के दबाव का सामना करना, साथ ही किस ऋतु में युद्ध किया जानेवाला है आदि बातों का विचार कर ‘यह युद्ध कितने दिनों तक चल सकता है ?’, इसे सुनिश्‍चित करना पडेगा । युद्ध के नियोजन के लिए कुछ दिनों से लेकर कुछ वर्ष भी लग सकते हैं । वर्ष १९७१ के समय में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने तत्कालीन फील्ड मार्शल माणेकशॉ को युद्ध का विचार बताया था । तब उन्होंने उसके लिए ६ मास की अवधि मांगी थी । ६ मास में सैन्य की तैयारी होने के पश्‍चात भारत ने युद्ध किया और उसे जीत भी लिया ।

समझो, ‘लंबे समय तक युद्ध जारी रखना है अथवा यदि वह नियोजित कालावधि की अपेक्षा अधिक लंबा खिंच सकता है, तो उसके लिए कौन सी तैयारी करनी पडेगी ?’, इस पर भी विचार करने की आवश्यकता होती है, उदा. भारत को चीन पर आक्रमण का साहस दिखाना है, तो ऐसा विचार किया जा सकता है अथवा ‘पाकिस्तान पर आक्रमण करने पर चीन ने उसके पक्ष में युद्ध में भाग लिया, तो युद्ध आगे कितने दिनों तक चलेगा ?’, इस पर विचार कर उसकी तैयारी करनी पडेगी । हिटलर ने जब जर्मनी की सत्ता हाथ में ली, तब उसने पहले युद्ध के प्रतिशोध के विचार से ही युद्ध की तैयारी आरंभ की थी । उसने यूरोप को पादाक्रांत करने पर विचार किया था और उसके अनुसार ही कुछ वर्ष पूर्व युद्धसज्जता आरंभ कर दी थी । इसी कारण वह लगभग ६ वर्षों तक युद्ध कर सका और तब उसने यूरोप के कुछ देश और रूस का भी कुछ क्षेत्र जीता था । साथ ही उसने फ्रांस और इंग्लैंड की नाक में दम कर रखा था । रूस की ठंड के कारण उसे हारना पडा, अन्यथा वह यूरोप पर राज्य करने में सफल हो जाता ।

१ अ. आक्रमण होने क संभावना के कारण तैयारी !

पडोसी देश हम पर आक्रमण कर सकता है, इस पर विचार कर आक्रमण झेलनेवाले देश को सदैव युद्धसज्ज होना आवश्यक होता है । इजरायल ने वर्ष १९४७ से अर्थात अपने देश की स्थापना से ही वह स्वयं पर पडोसी इस्लामी राष्ट्रों द्वारा आक्रमण किए जाने की तैयारी में रहा और उसने उनका प्रत्युत्तर देते हुए अपने देश का विस्तार किया है ।

१ आ. शत्रु के आक्रमण से पूर्व युद्ध की तैयारी न हो तो क्या होता है, इसका उदाहरण !

वर्ष १९६२ में चीन ने भारत पर आक्रमण किया । उससे पहले ही रक्षा विशेषज्ञ तथा स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने ‘वह भारत पर आक्रमण करेगा’, इसकी संभावना व्यक्त की थी; क्योंकि उसके द्वारा तिब्बत को निगलने के पश्‍चात वह भारत पर भी आक्रमण करेगा’, यह अपेक्षित ही था; परंतु राष्ट्रघाती नेहरू ने इसकी उपेक्षा की और वे ‘हिन्दी-चीनी भाई भाई’ के सपने में ही मगन रहे, जिसका परिणाम भारत को भुगतना पडा । भारत पर सदा के लिए इस हार का कलंक लग गया और आज ५६ वर्ष पश्‍चात भी हमारे मन में कहीं न कहीं चीन का भय है । ऐसा न हो; इसके लिए ऐसे देशों का सदा युद्धसज्ज स्थिति में रहना आवश्यक होता है ।

१ इ. युद्ध करना सुनिश्‍चित हो जाने के पश्‍चात करने योग्य आवश्यक तैयारी जब युद्ध सुनिश्‍चित किया जाता है, तब सैन्य क्षमता बढाने के प्रयास करने पडते हैं ।

युद्ध की तैयारी, प्रत्यक्ष युद्ध तथा नागरिक शत्रु राष्ट्र की तुलना में शस्त्रसंग्रह कितना लगेगा, कितने विमान और युद्धनौकाएं, साथ ही उनके लिए बारूद, पेट्रोल और डीजल का प्रबंध करना, नए सैनिकों की भरती करना आदि तैयारी करनी पडती है । कुछ मास पूर्व यह समाचार प्रकाशित हुआ था कि भारतीय सेना के पास बहुत सीमित दिनों के लिए ही बारूद उपलब्ध है । इससे यह ध्यान में आता है कि भारत स्वयं युद्ध की तैयारी में नहीं है या ‘यदि किसी देश ने भारत पर आक्रमण किया, तो भारत कितने दिनों तक उसका सामना कर सकता है’, यह भी इससे स्पष्ट हुआ था ।

१ ई. आर्थिक स्थिति

युद्ध के लिए प्रचुर मात्रा में व्यय होता है । अल्प कालावधि के लिए और सीमित क्षेत्र में युद्ध हो, तो उसका परिणाम संपूर्ण देश पर नहीं होता, उदा. कारगिल का युद्ध; परंतु यदि उससे बडा युद्ध करना हो, तो उसके लिए आर्थिक प्रबंध करना पडता है । ‘कितने समय तक युद्ध चलेगा और उसके लिए देश के पास विदेशी मुद्रा का कितना भंडार है’, इसे देखना पडता है । ‘क्या वह निर्धारित कालावधि के युद्ध के लिए पर्याप्त है ? युद्ध की कालावधि बढी, तो क्या अन्य विकल्पों पर विचार कर उस पर विजय प्राप्त की जा सकती है ?’, इस पर विचार करना पडता है । ‘इस कालावधि में आयात और निर्यात पर क्या परिणाम होंगे ?’, इस पर भी विचार करना पडता है ।

२. नागरिकों की तैयारी

शांति की कालावधि में नागरिकों की मानसिकता युद्ध की नहीं होती अथवा वे उस प्रकार से विचार भी नहीं करते । इजरायल जैसे देश के नागरिकों के लिए प्रत्येक दिन युद्ध का होता है; इसलिए वे युद्ध के लिए तैयार ही रहते हैं । उन्हें सैन्य शिक्षा लेना अनिवार्य है । केवल पुरुष ही नहीं, अपितु महिलाओं को भी सैन्य शिक्षा दी जाती है । उन्हें जन्म से ही राष्ट्रभक्ति के संस्कार दिए जाते हैं । इस कारण इजरायल जैसा देश विगत ७० वर्षों से इस्लामी राष्ट्रों का सामना करते हुए गर्व के साथ खडा है और संसार के सभी देश उसका आदर्श अपने सामने रखते हैं । भारत में ऐसा नहीं है । स्वातंत्र्यवीर सावकर ने यह मांग की थी ‘भारत के प्रत्येक नागरिक को सैन्य शिक्षा दी जानी चाहिए ।’ उनके पश्‍चात भी कई प्रखर राष्ट्रभक्तों ने यह बात रखी; परंतु तथाकथित अहिंसावादी कांग्रेसी राज्यकर्ताओं ने उसे स्वीकार नहीं किया । मूल रूप से हिन्दू धर्म में सैन्य शिक्षा का भी उतना ही महत्त्व है । हिन्दू धर्म ने सेना हेतु एक वर्ण ही बनाया है । तब भी अन्य वर्णियों ने ‘राष्ट्र एवं धर्म के लिए शस्त्र उठाना, हमारा कर्तव्य है’, इसे जानकर समय-समय पर शस्त्र उठाया है । भारत के सहस्रों वर्षों के इतिहास में शक, हूण, मुगल, पुर्तगाली, अंग्रेज आदि ने भारत पर आक्रमण कर भारत को गुलाम बनाया । इसे देखकर स्वतंत्रता के पश्‍चात भारतीयों को युद्धसज्ज रहने की आवश्यकता होते हुए भी पहले नेहरू ने उसका विरोध किया और उनके पश्‍चात प्रत्येक राजनेता उसी मार्ग पर चलते रहे, यह भारतीयों का दुर्भाग्य है !

२ अ. आंतरिक विद्रोह

युद्ध के समय प्रत्येक देश में ‘आंतरिक विद्रोह होगा’, ऐसा नहीं होता; किंतु भारत जैसे देश में इसकी संभावना ध्यान में लेने की आवश्यकता है । हाल ही में पाकिस्तान के मोहम्मद अली नामक मंत्री ने एक पाकिस्तानी समाचार वाहिनी पर आयोजित परिचर्चा में यह वक्तव्य दिया था, ‘भारत ने यदि पाकिस्तान पर आक्रमण किया, तो केवल ५ लाख पाकिस्तानी सेना ही नहीं, अपितु २२ करोड पाकिस्तानी नागरिक और केवल इतना ही नहीं; अपितु वहां के (भारत के) ३० करोड लोग (मुसलमान) भी भारत के विरुद्ध खडे रहेंगे और ‘गजवा-ए-हिन्द’ (भारत के काफिरों के (हिन्दुओं के) विरुद्ध मुसलमानों द्वारा किया जानेवाला युद्ध) करेंगे ।’ इस भडकाऊ वक्तव्य को गंभीरता से लेने की आवश्यकता है । प्रसारमाध्यमों ने जानबूझकर इस वक्तव्य को दबाया । इसलिए इस संकट को ध्यान में लेकर, भारतीयों को सतर्क रहने के साथ ही, किसी ने देशद्रोह किया भी, तो पुलिस बल और सुरक्षा बलों की सहायता करनी पडेगी । पाकिस्तान के साथ किए गए पिछले ४ युद्धों में ऐसी स्थिति होने का उदाहरण नहीं है; किंतु अब की स्थिति को देखकर कुछ स्थानों पर ऐसा हुआ, तो उसका सामना करना पडेगा; क्योंकि ‘क्या पुलिस बल और अन्य सुरक्षा बल उनके साथ लडने के लिए पर्याप्त होंगे ?’, यह प्रश्‍न है ।

२ आ. मितव्यय और त्याग करना !

भारतीय लोगों के पास शांति के समय में युद्ध की तैयारी का अनुभव नहीं है और उन्हें उसके अनुरूप संस्कार भी नहीं दिए गए हैं । अतः ‘युद्ध के समय हमें भी कुछ करना होता है’, यही उन्हें ज्ञात नहीं है । ऐसे समय में उन्हें इसे समझना होगा । मूल रूप से लंबी कालावधि का युद्ध हुआ, तो भारतीयों को मितव्यय के साथ ही कई त्याग करने की तैयारी करनी पडेगी, इसका भान उन्हें अभी से रखना पडेगा । ऐन समय पर भारत पर युद्ध थोपा गया और वह लंबे समय तक चला, तो ‘नागरिक उसे सहन नहीं कर पाएंगे’, आज की स्थिति को देखते हुए ऐसा कहना पडता है । इसमें सबसे महत्त्वपूर्ण है इंधन का उपयोग । भारत में इंधन का उत्पादन यहां की मांग के अनुपात में नहीं होता । भारत को खाडी देशों से इंधन का आयात करना पडता है ।

नियोजित युद्धकाल में उसके अनुरूप संग्रह किया जा सकता है तथा उसकी बचत करनी पडती है; परंतु आक्रमण के पश्‍चात उस प्रकार का कोई प्रबंध नहीं होता । ऐसी स्थिति में देश में जितना इंधन होता है, उतना इंधन सेना को ही प्रधानता से देना पडता है । ऐसी स्थिति में नागरिकों के लिए इंधन की कमी होती है । तब संयम से काम लेना पडेगा और प्राप्त इंधन की बचत करनी पडेगी । ऐसे समय में व्यक्तिगत वाहनों के उपयोग के स्थान पर सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करना पडेगा । अनावश्यक यात्रा को टालना होगा । इंधन की कमी से खाद्य पदार्थों का यातायात रुक सकता
है । इस कारण लोगों के लिए उसकी भी उपलब्धता कठिन हो जाती है । ऐसे समय में ‘पैसे होते हुए भी खाद्य पदार्थ नहीं मिलेंगे’, ऐसी स्थिति बन सकती है ।

२ इ. बिजली और पानी के उपयोग में कटौती !

पानी का वहन भी इंधन पर संचालित पंपों के द्वारा ही होता है, तो ऐसे में पानी के उपयोग पर भी मर्यादा होगी । बिजली उत्पादन हेतु आवश्यक कोयले के यातायात हेतु इंधन की आपूर्ति अल्प हुई, तो उससे बिजली का उत्पादन भी घट सकता है । अत: पानी के उपयोग के साथ ही बिजली का उपयोग भी सीमित मात्रा में करना पडेगा । उसमें भी यदि शत्रु ने नदी पर बने बांधों को अपना लक्ष्य बनाकर उन्हें ध्वस्त कर दिया, तो उस पर निर्भर होनेवाले लोगों पर यह बडा आघात होगा । इस स्थिति को देखते हुए शांति काल में तालाब और कु‘युद्धस्य कथा रम्या ।’, ऐसा कहा जाता है; परंतु जब प्रत्यक्ष युद्ध होता है और जब वह असीमित कालावधि तक जारी रहता है, तब वह रम्य न रहकर बहुत ही पीडादायी बन जाता है । कुओं को उपयोग के लिए योग्य स्थिति में रखने की आवश्यकता होती है । भारत के गांवों में यह सहजता से हो सकता है; किंतु आजकल देश के महानगरों और ‘स्मार्ट सिटी’ में इस प्रकार का प्रबंध करना अब असंभव ही है । अतः अब जो नगर ऐसे बांधों के पानी पर निर्भर हैं, वहां रहनेवाले लोगों के लिए उस नगर को छोडने के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प नहीं होगा । उसी प्रकार से यदि शत्रु ने बिजली उत्पादन केंद्रों को ही ध्वस्त किया, तो और बडा आघात होगा । दूसरे विश्‍वयुद्ध में बांध और बिजली उत्पादन केंद्रों को लक्ष्य बनाया गया था । दूसरे विश्‍वयुद्ध में जर्मनी ने फ्रांस का कुछ क्षेत्र जीतकर वहां के कारखानों से शस्त्रों का उत्पादन आरंभ किया था । उनके लिए बांध के पानी से आवश्यक बिजली बनाई जा रही थी । तब फ्रांस ने स्वयं के स्वामित्ववाले; परंतु तब जर्मनी के नियंत्रण में गए इन बांधों को स्वयं ही ध्वस्त कर दिया था, इसे भी ध्यान में लेना होगा । साथ ही रूस ने भी जर्मनी से पीछे हटते समय वहां की सडकें और बांधों को ध्वस्त कर दिया था ।

युद्ध के समय रात के समय ‘ब्लैक-आऊट’ किया जाता है अर्थात रात को दीप बंद रखे जाते हैं । इसके लिए प्रशासन रात में बिजली काट देता है । बत्ती जलते रहने अथवा प्रकाश होने से शत्रु के विमान यदि देश में घुस गए, तो उन्हें अपना लक्ष्य ढूंढने में समय नहीं लगता । पहले युद्ध के अनुभव प्राप्त नागरिकों को यह ज्ञात था । इस कारण ‘रात में बत्ती जलाकर कोई काम नहीं किया जा सकेगा’, इसे ध्यान में रखना पडेगा । गर्मी के समय में युद्ध होगा, तो बिजली और पानी के अभाव अथवा कमी के कारण नागरिकों को बहुत कष्टों का सामना करना पडेगा और ऐसा युद्ध यदि १ – २ वर्ष अथवा उससे अधिक समय तक चला, तो क्या स्थिति हो सकती है ?’, इसका अनुमान लगाया जा सकता है ।

२ ई. लोगों की मानसिक स्थिति

आज के समाज को देश के लिए सीमा पर जाकर प्राणों का बलिदान करने की अपेक्षा और भी कुछ त्याग करना पडता है, यही ज्ञात नहीं; क्योंकि विगत ७१ वर्षों में राज्यकर्ताओं ने समाज को ऐसा कुछ सिखाया ही नहीं है । युद्ध के समय बिजली, पानी और इंधन के उपयोग पर मर्यादाएं आनेवाली हैं और उससे कई बातों पर बंधन आनेवाले हैं, साथ ही मनोरंजन के साधन भी बंद रखने पडेंगे, उदा. चलचित्र गृह, नाट्यगृह और ऐसे अन्य साधन । ऐसी स्थिति में उनके बिना न रह पानेवाले लोगों को संघर्ष ही करना पडेगा । इस अवधि में रोजगार के कई साधन बंद होंगे और उसका परिणाम लोगों की आय पर भी होगा, जो सबसे बडा परिणाम होगा । ऐसे समय में पहले की गई बचत का उपयोग करना पडेगा । उसमें भी यदि युद्ध लंबे समय तक चला, तो सरकार बैंकों द्वारा सीमित मात्रा में ही धनराशि की निकासी करने का बंधन डालेगी, इसकी संभावना को भी अस्वीकार नहीं किया जा सकता । ऐसी स्थिति में जीवनयापन कठिन हो जाएगा । ऐसे समय में सरकार और प्रशासन की ओर से सहायता की अपेक्षा ही नहीं रखी जा सकती । तब लोगों को ही एक-दूसरे की अथवा पडोसियों की सहायता करनी पडती है । ऐसे में आपसी भाईचारे की परीक्षा भी होगी । अतः इस समय सभी को संगठित रहना आवश्यक होगा । पहले और दूसरे विश्‍वयुद्ध के समय में यूरोप के लोगों ने किस प्रकार इन युद्धों का सामना किया होगा, इस पर विचार किया जाना चाहिए । ऐसे समय में दृढ मानसिकता रखने के साथ ही खाली पेट रहने की सिद्धता भी रखनी पडेगी । उसमें भी शारीरिक रूप से अस्वस्थ लोगों को बहुत कष्ट झेलने पडते हैं; क्योंकि ऐसे समय में औषधियों की भी किल्लत हो सकती है । तब उन्हें ईश्‍वर के सान्निध्य में रहने का प्रयास करना पडेगा; किंतु देश के सभी लोग आस्तिक नहीं हैं; इसलिए यह स्थिति ही उन्हें आस्तिक बना सकती है ।

३. देश की आर्थिक स्थिति

किसी देश ने युद्ध करना सुनिश्‍चित किया, तो उसे सैन्य की सिद्धता सहित आर्थिक सिद्धता करने की भी आवश्यकता पडती है । युद्ध यदि लंबे समय तक चला, तब भी आर्थिक समस्या न हो, इसके लिए क्या उपाय करने पडेंगे, यह सुनिश्‍चित करना पडता है । पहले विदेशी मुद्रा के भंडार को देखना पडेगा । विदेश से कोई सामग्री खरीदनी होती है, तो उसे भारतीय रुपए में नहीं, अपितु अमेरिकी डॉलर में खरीदना पडता है । ऐसे समय में भारत के पास विदेशी मुद्रा का भंडार होना आवश्यक होता है । वर्ष १९९१ में भारत के पास विदेशी मुद्रा का भंडार न होने से विदेशों में बडी मात्रा में सोना गिरवी रखना पडा था । तब युद्ध की स्थिति नहीं थी; परंतु देश की आर्थिक स्थिति युद्ध जैसी ही थी, इसे ध्यान में लेना होगा । अतः यदि विदेशी मुद्रा भंडार पर्याप्त नहीं होगा, तो शस्त्रों, इंधन और अन्य सामग्री की खरीद और व्यापार बडी मात्रा में प्रभावित होकर अर्थव्यवस्था गिरने की स्थिति हो सकती है । जब किसी देश पर आक्रमण होता है और वह युद्ध लंबा खिंचता है, तब आक्रमण करनेवाले की अपेक्षा आक्रमण झेलनेवाले की अधिक हानि होती है । ऐसे समय में सरकार देशवासियों से पैसे और सोना आदि दें, यह आवाहन कर सकती है । तब जनता को देश के लिए वह भी करना पडेगा, इसकी मानसिक सिद्धता करनी पडेगी । सभी ढोंग किए जा सकते हैं; किंतु पैसों का ढोंग नहीं किया जा सकेगा । ऐसे समय में सरकार जनता को बैंकों में रखे गए पैसों की निकासी भी नहीं करने देगी, इसकी भी संभावना होगी ।

४. प्रत्यक्ष युद्ध

प्रत्यक्ष युद्ध आरंभ हुआ और वह केवल एक मोर्चे पर नहीं, अपितु कई मोर्चों पर आरंभ हुआ, तो उसकी सीमाएं कैसी हैं और उस देश का क्षेत्रफल शत्रु की तुलना में कितना है, इससे उस संपूर्ण देश को ही उस युद्ध का सामना करना पडेगा अथवा नहीं, यह ध्यान में आता है, उदा. वर्ष १९६२ में चीन के साथ हुए युद्ध के समय यह युद्ध हिमालय की सीमा पर था, तब उसका परिणाम दक्षिण भारत के राज्यों पर नहीं हुआ था । वर्ष १९७१ के युद्ध में युद्ध का परिणाम देश की पूर्व और पश्‍चिम इन दोनों सीमाओं पर नहीं हुआ था और उसमें तीनों सेनादलों का सहभाग था । उसकी व्यापकता वैसे बडी थी । उस समय मुंबई में भी ब्लैक-आऊट किया गया था; क्योंकि भारत की नौसेना ने कराची बंदरगाह पर बहुत बडा आक्रमण किया था । अतः तब पाकिस्तान की ओर से मुंबई को लक्ष्य बनाए जाने की संभावना थी । अब चीन हिन्द महासागर में भी घुसपैठ कर वहां अपना नियंत्रण स्थापित करने का प्रयास कर रहा है । इसलिए दक्षिण की ओर से भारत पर आक्रमण होने की संभावना है ।

४ अ. निजी कारखानों से शस्त्रउत्पादन

प्रत्यक्ष रूप से युद्ध आरंभ होने पर और वह अधिक लंबा खिंचा, तो शस्त्रों की किल्लत हो सकती है । ऐसे समय में सरकार सैन्य कारखानों सहित अन्य निजी कारखानों में भी शस्त्रों का उत्पादन आरंभ कर सकती है । यहां सेना के लिए आवश्यक शस्त्रों के पुर्जे बनाए जा सकते हैं ।

४ आ. रक्त की आवश्यकता

युद्ध आरंभ होने पर सैनिक बडी संख्या में घायल होते हैं, तब उनके लिए रक्त की आवश्यकता होती है । उसके लिए सरकार द्वारा रक्तदान का आवाहन किया जाता है । ऐसे समय में देशभक्त नागरिकों को इसके लिए प्रधानता देकर रक्तदान करना होगा । युद्ध के समय सैनिकों की चिकित्सा हेतु चिकित्सालय भी आरक्षित करने पडते हैं । औषधियों की किल्लत न हो; इसलिए पहले सैनिकों के लिए प्रधानता से औषधियां दी जाती हैं ।

४ इ. सैनिक-भरती

युद्ध के समय सेना में भरती होने का भी आवाहन किया जाता है । ऐसे समय में युवकों को इसके लिए प्रधानता देकर सेना में भरती होने की आवश्यकता होती है । उसमें भी जिन्होंने इस संदर्भ में सैन्य प्रशिक्षण लिया होता है, उन्हें प्रधानता दी जाती है ।

५. परमाणु युद्ध का संकट !

भारत और पाकिस्तान के मध्य अब किसी भी प्रकार का युद्ध हुआ, तो भी उसका रूपांतरण परमाणु युद्ध में ही होनेवाला है, इसका भारतीयों को स्थायी रूप से स्मरण रखकर उस दृष्टि से सदा सुसज्जित रहना आवश्यक है । शासनकर्ता, प्रशासन, राजनीतिक दल और जनता को भी इससे होनेवाले परिणामों पर विचार कर उस प्रकार की सिद्धता करना भी आवश्यक ही है ।

यदि पाकिस्तान के साथ युद्ध हुआ, तो पहले पाकिस्तान ही भारत पर परमाणु बम गिरा सकता है । यदि ऐसा है, तो उसका लक्ष्य पहले कौन से नगर होंगे, तो कुछ नाम सामने आते हैं और वे हैं भारत की राजधानी नई देहली, चंडीगढ, मुंबई, जयपुर, आगरा, मेरठ आदि । उसमें भी पाकिस्तान के पास भारत से भी अधिक परमाणु बम हैं । पाकिस्तान ने यदि भारत पर परमाणु आक्रमण किया, तो भारत को भी प्रत्युत्तर के लिए पाकिस्तान पर परमाणु बम गिराने पडेंगे और उसमें संपूर्ण पाकिस्तान को राख किए बिना भारत रुक नहीं सकता; क्योंकि पाकिस्तान में केवल चुनिंदा बडे नगर हैं, उनमें इस्लामाबाद, कराची, लाहौर, रावलपिंडी, हैदराबाद, सियालकोट और पेशावर सम्मिलित हैं । इन नगरों में ही पाकिस्तान की सभी आर्थिक गतिविधियां चलती हैं ।

श्री. प्रशांत कोयंडे, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.

Leave a Comment