सनातन संस्था पर प्रतिबंध लगाने की मांग शुद्ध ढोंगबाजी !

अगस्त २०१८ मेंं महाराष्ट्र में विविध अन्वेषण तंत्रों द्वारा कुछ हिन्दुत्वनिष्ठों को बंदी बनाया गया । इनमें नालासोपारा के हिन्दुत्वनिष्ठ श्री.वैभव राऊत तथा सातारा के हिन्दुत्वनिष्ठ श्री सुधन्वा गोंधलेकर सम्मिलित हैं । अन्वेषणतंत्रों ने स्पष्ट किया है कि इनमें से किसी का भी सनातन संस्था से संबंध नहीं है । तब भी पुरो (अधो) गामी लोग एवं प्रसारमाध्यमों द्वारा ’सनातन पर प्रतिबंध लगाएं ’ इस प्रकार निराधार अफवाहें फैलाई जा रही हैंं । ’इंडिया टुडे’ के श्री. उदय माहुरकर ने इन सब पर कडा जबाब देनेवाला लेख लिखा है, जिसके चुनिंदे सूत्र वाचकों के लिए साभार प्रकाशित कर रहे हैं ।

 

श्री.उदय माहुरकर का परिचय

श्री.उदय माहुरकर भारतीय पत्रकार, राजनीतिक विश्लेषक एवं लेखक हैं । वे ’इंडिया टुडे’ प्रथितयश वृत्त्तसमूह में उपसंपादक हैं । श्री. माहुरकर मुगल, राजपुत, मराठा एवं ब्रिटिशकालीन इतिहास एवं नरेंद्र मोदी शासन की कार्यपद्धतियों के तज्ञ के रुप में जाने जाते हैं । उन्होंने दक्षिण एशिया के कट्टरपंथी इस्लामी उपक्रम एवं स्वातंत्र्यवीर सावरकर के राष्ट्रवाद पर लेखन किया है ।

१. प्रथम जिहादी संगठनों पर प्रतिबंध लगाएं !

यदि सनातन संस्था पर प्रतिबंध लगाना उचित सिद्ध होता है, तो इसी निकष पर ’देवबंद’ ’तबलीघी जमात’ एवं ’अहल-ए-हदीथ’ पर भी प्रतिबंध लगाया जा सकता है, क्योंकि उनके सहस्त्रों अनुयायी जिहादी कार्यवाही में सम्मिलित हो रहे हैं, यह बात स्पष्ट हो गई है । फ्रेंच, अमेरिका, ब्रिटीश एवं भारतीय अन्वेषण संस्थाओं द्वारा लगाए गए आरोपों से इस बात की पुष्टि हो गई है कि आतंकवाद को फैलाने के कार्य में इनके अनेक सदस्यों का सहभाग है ।

२. सनातन संस्था पर प्रतिबंध लगाने की मांग अन्यायपूर्ण है !

हिन्दुओं के प्राचीन सनातन धर्म का प्रचार करनेवाली गोवा की सनातन संस्था पर प्रतिबंध लगाने हेतु देश के पुरोगामी गुट की मांग बढती जा रही है । सनातन संस्था के दो कथित अनुचरोंं को तर्कवादी नरेंद्र दाभोलकर एवं पत्रकार कार्यकर्ती गौरी लंकेश की हत्या के तथाकथित आरोपों में बंदी बनाए जाने से इन गुटों का आवाज और भी चढने लगा है । इसके अतिरिक्त कुछ वर्ष पूर्व ठाणे एवं वाशी के दो नाटयगृहों के बाहर सौम्य पेट्रोल बम फेकने के आरोप में महाराष्ट्र के एक कथित न्यायालय ने दो अनुचरोंं को दोषी सिद्ध किया था । उन अनुचरोंं के मतानुसार इन नाटयगृहों को इसलिए लक्ष्य किया गया था कि इसमें हिन्दूविरोधी माने गए ’आम्ही पाचपूते’ नाटक के प्रयोग होते थे ।

सनातन के कथित साधकों के विरुद्ध यह प्रमाण निश्चित ही संस्था को जागृत करने हेतु किया गया संकेत है । सनातन संस्था की पहचान प्राचीन भारतीय शास्त्रवचनों पर आधारित हिन्दू धर्म के मूलभूत मूल्यों का पालन करने के रुपमें है; परंतु इस संस्था पर प्रतिबंध लगाने हेतु आवश्यकता के रुपमें इस प्रमाण एवं उसके पीछे का तर्कशास्त्र उपयोग में लाना अन्यायपूर्ण है ।

एक ओर संस्था का कोई भी वरिष्ठ पदाधिकारी किसी भी हिंसाचार में सहभागी नहीं पाया गया । उसीप्रकार अब तक किसी भी प्रकार की हिंसक कार्यवाही आरंभ करने का षडयंत्र दर्शानेवाली कोई भी सामग्री नहीं पाई गई । जिन्हें बंदी बनाया गया है अथवा अपराधी सिद्ध किया गया है, वे अधिक से अधिक सनातन संस्था के केवल अनुयायी के रुपमें जाने जा सकते हैं ।

३.जिहादी संगठनों पर प्रतिबंध लगाने की ’पुरोगामी’ मांग ही नहीं ।

सनातन संस्था पर संभाव्य प्रतिबंध के विरुद्ध बताने जैसा दूसरा सूत्र यह कि घटनादत्त्त कानून के सामने सभी को समान मानने का सिद्धांत है । पिछले २५ वर्षो में भारत एवं विदेश में बदी बनाए गए, मारे गए अथवा अपराधी सिद्ध हुए सहस्त्रों आतंकवादियों ने ’देवबंद’ संस्था अथवा उसकी शैक्षणिक शाखा, ’तबलीची जमात’ अथवा ’अहल-ए-हदीथ’ नामक वहाबी तनझीम शाखा का अनुकरण किया है । पाकिस्तान के लष्कर-ए-तोयबा आतंकवादी संगठन में भी ये आतंकवादी कार्यरत थे ।

इन तीनों संगठन के आंतर्राष्ट्रीय मुख्यालय देहली मेंं हैं, अथवा राजधानी से अधिक दूर नहीं है । अमेरिकी एवं फ्रेंच अन्वेषण संस्था एवं तज्ञों ने अनेक बार ऐसा दावा किया है कि इन संगठन के सदस्यों ने आतंकवाद को फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका अपनाई है । तब भी किसीने भी इन संगठनों पर प्रतिबंध लगाने की कोई मांग नहीं की है । फ्रांस की ’तबलीची जमात’ संगठन का अभ्यास रहनेवाले तज्ञ मार्क गॉबरीऊ के मतानुसार जमात का अंतिम हेतु जिहाद के तत्व के अनुसार विश्व पर विजय प्राप्त करना है । फ्रांस के ८० प्रतिशत इस्लामी अतिरेकी ’तबलीची जमात’ संगठन के ही सदस्य हैं । फ्रेंच गुप्तचर अधिकारियों ने ’तबलीची जमात’ का नाम ’कट्टरवाद की जननी’ ऐसा रखा है । अमेरिका के आतंकवादविरोधी दल के अधिकारियों ने इसी सूत्र को दोहराया है । वर्ष २००३ में अमेरिकी जांच तंत्र ’एफबीआई’ के आंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद विभाग के उपप्रमुख ने कहा था कि अमेरिका में तबलीची जमात संगठन का भारी मात्रा में अस्तित्व है । हमें पता चला है कि अल् कायदा संगठन का उपयोग अभी और इससे पूर्व भी आतंकवादियों की भरती करने हेतु किया जा रहा है ।

तकवियात उल इमान (श्रद्धा का मजबूतीकरण ) नामक एक पुस्तक पूरे विश्व में देवबंदी एवंं अहले हदीथ मदरसा में पढाई जाती है । तबलीची जमात एवं सौदी अरेबिया की रुढिवादी मानसिकता में इस पुस्तक को उच्च स्थान प्राप्त हुआ है । इसके द्वारा गैरइस्लामी तथा सूफी धर्म की रुढि एवं परंपराओं के विषय में द्वेष फैलाया जाता है । वहाबी मदरसेंं में यह पुस्तक १५० वर्ष से अधिक समय से पढाई जा रही है । इस पुस्तक का विरोध करनेवाले विद्वानों के मतानुसार यह पुस्तक कट्टरतावाद का मूल कारण माना जाता है । तब भी इस पुस्तक पर कभी प्रतिबंध नही लगाया गया अथवा जिसने उसे समर्थन दिया है, उस के विरुद्ध कार्यवाही नहीं की गई है ।

४. सनातन संस्था का अभूतपूर्व इतिहास !

दूसरी ओर साधकों के नेटवर्क के माध्यम से पवित्रता, सामाजिक सेवा एवं चारित्र्यनिर्मिति पर आधारित मूल हिन्दू मूल्यों का प्रसार करने में सनातन संस्था ने एक अभूतपूर्व इतिहास रचा है । मैं गुजरात में था, तब सनातन संस्था के साधक नियमित रुप से मेरे घरंं आते थे । उनका कार्य देखने पर मैं उनका स्वागत करता गया क्योंकि मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि उन्होंने मेरे छोटे अज्ञानी बालकों को अच्छा प्रभावित किया है ।

तब भी मुझे जाननेवाले अनेक लोगों को ऐसा प्रतीत होता है कि सनातन संस्था का कार्य ही अच्छा एवं सकारात्मक है । तब भी संस्था के साधक बहुत जुनी कार्यपद्धति से कार्य करते हैं एवं प्राचीन भारतीय शास्त्र के अनुसार दी गई उपासना की परिपूर्ण पद्धति पर अधिक जोर देते हैं ।

५. सनातन का लोकतंत्र पर विश्वास !

अनेक वर्ष पूर्व हिन्दू देवी-देवताओं के विकृत छायाचित्र रेखांकित करनेवाले एम.एफ.हुसेन के विरोध में चलाए जानेवाले उपक्रम के एक भाग के रुपमें मेरे घर आत्मविश्वासपूर्ण सनातन की दो साधिकाएं मिलने आईं थीं । उन्हें मिलने पर मुझे बहुत अच्छा अनुभव हुआ । सनातन ने हुसेन के विरुद्ध याचिका प्रविष्ट करने की दृष्टि से उपक्रम चलाने हेतु लोकतंत्र की अत्यंत उचित पद्धति अपनाई थी । इस उपक्रम के लिए सिद्ध ज्ञापन पर किसी को हस्ताक्षर करने पर विवश नही किया गया । साधकों ने लोगों को केवल इतना ही समझाया कि हुसेन की कलाकृतियांं कैसे विडंबनात्मक है । हुसेन का मध्यपूर्व की ओर खाडी देश में पलायन करने के पीछे एवं वे वहां से भारत कभी वापस नही आएंगे इस बात की निश्चित करने में सनातन संस्था ने बहुत बडी भूमिका अपनाई । हाल-ही में हुई घटनाओं संदर्भ में सनातन संस्था को निश्चित रुपसे जागृत होकर ध्यान देना चाहिए ।

– श्री.उदय माहुरकऱ उपसंपादक, इंडिया टुडे

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