प्रभु श्रीरामचंद्रजी के सान्निध्य के कारण पवित्र अयोध्यानगरी की पवित्रमय वास्तु !

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श्री हनुमानगढी

श्री हनुमानगढी में स्थित हनुमानजी की मूर्ति

श्री हनुमानगढी का अर्थ है श्री हनुमानजी का मंदिर ! प्रभु श्रीरामचंद्रजी ने जब अवतारसमाप्ति का निर्णय लिया, तब उन्होंने हनुमानजी को अपने साथ आने के लिए कहा । निस्सीम रामभक्त हनुमानजी ने इसे विन्रमता से अस्वीकार किया । हनुमानजी ने कहा, ‘‘जबतक पृथ्वीपर श्रीरामजी का नाम है, तबतक मैं यहीं रुकूंगा ।’’ तब श्रीरामजी ने हनुमानजी को तिलक लगाकर सिंहासनपर बिठाया । श्रीरामचंद्रजी ने अयोध्यानगरी की रक्षा का दायित्व हनुमानजी को सौंपा तथा अयोध्या के बाहर के गांवों को लक्ष्मण, भरत एवं शत्रुघ्न के पुत्रों को सौंपा । तब से इस मंदिर को हनुमानगढी के नाम से जाना जाता है । धन्य वे प्रभु श्रीराम एवं धन्य वे श्रीरामभक्त हनुमानजी !

 

श्रीरामजी की राजगद्दी

जिस पवित्र स्थानपर प्रभु रामचंद्रजी का राज्याभिषेक हुआ, उस पवित्र स्थान को अब ‘राजगद्दी’ कहा जाता है । यहां वर्तमान में श्रीरामजी की मूर्ति विराजमान है । महाराज समुद्रगुप्त ने उसकी प्रतिष्ठापना की है । जिस समय अयोध्यापर मुसलमान आक्रांताओं का शासन था, तब के समय भी जो अभियोग अन्य स्थानोंपर सुलझ नहीं सकते थे, उन्हें इस स्थानोंपर सुलझाया जाता था । राजगद्दी भले ही प्रत्येक हिन्दू के लिए आत्मियता की वास्तु हो; परंतु आज केवल उसके अवशेष ही बचे हैं ।

 

श्री देवी देवकाली मंदिर

श्री देवी देवकालीमाता

अयोध्या स्थित श्री देवकाली माता प्रभु श्रीरामजी के वंश की कुलदेवी है । श्रीरामजी के पूर्वज महाराजा रघु ने श्री देवकाली मंदिर की स्थापना की थी । देवी भागवत में भी श्री देवकाली देवी का वर्णन किया गया है । प्रभु श्रीरामजी के जन्म के पश्‍चात कौसल्या माता रामलला और उनके भाईयों को लेकर श्री देवकाली माता के दर्शन करने आई थीं । तब से लेकर अयोध्या परिसर में किसी के भी घर में बालक का आगमन होता है, तब उसे श्री देवकाली माता के दर्शन के लिए लाया जाता है । उस बालक के मंगलकार्यों का आरंभ देवी के दर्शन से होता है । हम रामराज्य की अनुभूति करानेवाले हिन्दू राष्ट्र स्थापना के लिए वचनबद्ध हैं । इस कार्य के लिए श्री देवकाली माता के आशीर्वाद प्राप्त हों, यह उनके चरणों में प्रार्थना है ।

 

कनक भवन


कनक भवन महारानी कैकयी का महल था ! उस समय इस महल को संपूर्णरूप से सोने से बनाया गया था । जनककन्या सीतामाता जब विवाह के पश्‍चात अयोध्या आईं, तब कैकयी ने बहुमुख देखने के समय इस महल को सीतामाता को भेंट किया । प्रभु श्रीरामजी एवं सीतामाता का यह विशेष महल था । कुछ काल पश्‍चात राजा विक्रमादित्य ने इस महल का पुनर्निर्माण किया । उसके पश्‍चात सय्यद मसूद सालार ने उसे तोडा । उसके पश्‍चात टिकमगढ की महारानी श्री वृषभानू कुंवर ने इस महल का पुनर्निर्माण किया । यहां २ प्राचीन शिलालेख हैं ।

 

मोक्षदायिनी अयोध्या !

प्रत्येक भक्त के हृदयसिंहासनपर विराजमान प्रभु श्रीरामजी ! उनकी बाललीलाओं ने जिस नगरी का मन मोह लिया, जिनके आज्ञापालन के कारण जिसे उच्च कोटि की सीख मिली, जिनके प्रशासन के कारण जहां ईश्‍वरीय राज्य की स्थापना हुई तथा जिनके अवतारकार्य के कारण जो नगरी कृतार्थ बन गई; उस दैवीय, परममंगल, अतिभाग्यशाली नगरी है अयोध्या ! इस नगरी के कणकण में आज भी प्रभु श्रीरामजी का निवास है । यहां के सूक्ष्म दैवीय स्पंदन उसकी साक्ष्य दे रहे हैं । इसके साथ ही इस नगरी में स्थित अनेक वास्तुएं और मंदिर आज भी लाखों वर्षों का इतिहास बडे गौरव के साथ विशद कर रहे हैं । अयोध्या नगरी एवं परिसर में प्रभु श्रीरामजी से संबंधित स्मृतियां संजोनेवाले १५० से भी अधिक तीर्थस्थान हैं । इन तीर्थस्थानों में से कुछ चुनिंदा तीर्थस्थलों के दर्शन कर श्रीरामजन्मभूमि मुक्ति हेतु कृतज्ञता व्यक्त करते हैं ! अयोध्या में भव्य श्रीराम मंदिर के निर्माण हेतु इन दिव्य वास्तुओं के आशीर्वाद अनमोल हैं !

स्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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