भारत का लोकतंत्र अर्थात हिन्दुओं की मूर्खता की चरम सीमा !

‘जिस समय आधुनिक वैद्य (डॉक्टर),अभियंता, अधिवक्ता, लेखा परीक्षक इत्यादि की बैठक होती है, उस समय उन क्षेत्रों के विशारदों की बैठक होती है; परंतु भारत की लोकसभा में राष्ट्र एवं धर्म, इन विषयों के विशारद नहीं होते । इसके विपरीत, इन विषयों से जिनका कोई भी देना-लेना न हो, उनके लिए यह बैठक होती है; … Read more

‘स्वार्थी राजनीतिज्ञ राजनीति करते हैं, जबकि निःस्वार्थी सनातन संस्था के…

‘स्वार्थी राजनीतिज्ञ राजनीति करते हैं, जबकि निःस्वार्थी सनातन संस्था के साधक एवं हिन्दू जनजागृति समिति के कार्यकर्ता निःस्वार्थ भाव से धर्मकार्य करते हैं !’

बुद्धिप्रामाण्यवादियों के जीवनभर के कार्य की फलनिष्पत्ति शून्य रहने का कारण

यदि किसी विषय का अभ्यास उस विषय की पद्धति के अनुसार न कर कोई उसके संदर्भ में निश्चित रूपसे कहता है कि मेरा ही कहना उचित है, तो उसपर कोई गम्भीरता से ध्यान नहीं देता । यही स्थिति है बुद्धिप्रामाण्यवादियों की । अध्यात्म का अभ्यास अर्थात बिना साधना किए वे इस संदर्भ में भाष्य करते … Read more

हास्यास्पद लोकतन्त्र

राज्यकर्ता पक्ष निर्वाचनमें पराजित हो जाता है अर्थात निर्वाचनसे पूर्व १-२ वर्षतक जनमत उसके विरोधमें होते हुए भी वह पक्ष राज्य करता रहता है ।

नागरिको, राजनीतिक पक्षोंकी तत्त्वहीनताको जानें !

अबतक हुए चुनावसे यह सिद्ध हो गया है कि चुनावसे पूर्व एक-दूसरेंके विरोधमें लडनेवाले एवं सभाओंके माध्यमसे एक-दूसरेपर आलोचना करनेवाले राजनीतिक पक्ष चुनावके पश्चात राष्ट्र एवं धर्महितके लिए नहीं, अपितु सत्ता एवं उसके माध्यमसे अपने स्वार्थके लिए एकत्रित आते हैं । इससे इन पक्षोंकी तत्त्वहीनता ध्यानमें आती है । ऐसे तत्त्वहीन राजनीतिक पक्षोंको सत्तामें लानेवाले … Read more

औषधि कौन सी लेनी है, साधारणतया, यह बहुमत से निश्चित…

औषधि कौन सी लेनी है, साधारणतया, यह बहुमत से निश्चित नहीं किया जाता; किंतु कौनसा दल राज्य करे, यह बहुमत से निश्चित किया जाता है । विश्व में इससे हास्यास्पद बात क्या हो सकती है !’

क्या भ्रष्टाचार एवं अहंभाव रहित तथा साधना करनेवाला कोई भी…

क्या भ्रष्टाचार एवं अहंभाव रहित तथा साधना करनेवाला कोई भी व्यक्ति राजनीतिक दल का नेता अथवा कार्यकर्ता है ? इसका उत्तर ‘नहीं’ ही है । उनके कारण ही राष्ट्र एवं धर्म की ऐसी अधोगति हुई है । इस पर एक ही उपाय है, कि त्यागी एवं नम्र साधक मिलकर राष्ट्र की पुन:स्थापना करें !’

निरर्थक लोकतंत्र

लोकतंत्र में किसी भी समस्या के मूल में जाकर समाधान नहीं ढूंढा जाता, ऊपरी समाधान ढूंढा जाता है । भ्रष्टाचार के कारण यह भी निरर्थक सिद्ध होता है,उदा. किसी अपराधी का अपराध ध्यान में आने पर उसे पकडा जाता है । तदुपरांत अनेक वर्षों तक न्यायालयीन प्रक्रिया चलती है और अंत में उसे दंड दिया … Read more