व्यक्तिगत स्वतंत्रता की बातें करनेवाले ध्यान रखें !

१. व्यक्ति से समाज और समाज से राष्ट्र श्रेष्ठ होता है । इसलिए, राष्ट्र जीवित रहने पर ही समाज जीवित रहता है और समाज जीवित रहने पर व्यक्ति जीवित रहता है । २. व्यक्तिगत स्वतंत्रताका अर्थ स्वैराचार नहीं अथवा मैं जो चाहूं करूं अथवा वैसा ही वर्तन करूं, यह भी नहीं ! ३. व्यक्ति, समाज, … Read more

जगतके आदर्श धर्मयुद्धका एकमेव उदाहरण है, महाभारत युद्ध !

महाभारत युद्धके समय कौरव एवं पांडव सूर्योदय से सूर्यास्ततक के कालमें युद्ध करते थे । वे रात्रिकी बेलामें एक दूसरे के पडावमें जाकर निडर हो एक दूसरेसे संपर्क करते थे । ऐसा उदाहरण किसी अन्य देश एवं धर्ममें नहीं दिखाई देगा । इतना ही नहीं, अपितु कोई ऐसी कल्पना भी नहीं कर सकता ।

संस्कृत भाषाका अनादर करनेवाले भारतीयोंका घोर अधःपतन !

भारतीयोंका प्राचीन वाङ्मय, अर्थात वेद, उपनिषद, ब्राह्मण ग्रंथ, पुराण; कालिदास तथा भवभूति, आदिके संस्कृत नाटक, काव्य, रामायण, महाभारतादि वाङ्मय एवं कला जाननेकी उत्कट इच्छा तथा लगन जर्मनीमें है; किंतु भारतके नेता, समाजकल्याणकर्ता तथा सुधारक किसीको भी संस्कृतका कुछ भी ज्ञान नहीं है । Sanskrit is dead language अर्थात संस्कृत मृत भाषा है, ऐसा कहकर, वे … Read more

राष्ट्रकी स्थिति मरणासन्न रोगीकी भांति होना ।

अनादि कालसे चला आ रहा हिंदु धर्म ऋषि-मुनियोंने बताया, आगे उसे सहस्रों वर्षोंतक ब्राह्मणोंने बनाए रखा । अंग्रेजोंके भारतमें आनेपर उन्होंने ‘फूट डालो और राज करो’ की अपनी नीतिके अनुसार विविध जातियोंमें द्वेष उत्पन्न किया । केवल ब्राह्मणोंके कारण ही हिंदु धर्मका अस्तित्त्व बना हुआ था । इसलिए उनपर टूट पडनेके लिए उन्होंने अन्य जातियोंको … Read more

‘इच्छाशक्ति, क्रियाशक्ति और ज्ञानशक्ति तथा राष्ट्र एवं धर्मकी स्थिति’ ।

‘इच्छाशक्तिके कारण ‘कुछ करना चाहिए’ ऐसी इच्छा उत्पन्न होती है । क्रियाशक्तिके कारण प्रत्यक्ष कृति करनेकी प्रेरणा मिलती है । कुछ करनेकी इच्छा उत्पन्न होने और प्रत्यक्ष कृति करनेके लिए ज्ञानशक्तिकी सहायता होनेपर ही योग्य इच्छा उत्पन्न होती है जिसके परिणामस्वरूप योग्य कृति होती है । अन्य पंथियोंको उनकी साधनाके कारण ज्ञानशक्ति सहायता करती है … Read more

धर्म ही मोक्ष प्रदान कर सकता है..

‘व्यक्ति से परिवार, परिवार से गांव, गांव से राष्ट्र और राष्ट्र से धर्म श्रेष्ठ है । क्योंकि, धर्म ही मोक्ष प्रदान करवा सकता है, अन्य विषय तो माया में उलझाते हैं ! इसलिए, साधना करें !’

वर्तमान की राजनीति..

‘कदाचित कोई एक ही सात्त्विक, पापभीरु व्यक्ति वर्तमान की राजनीति में रह सकता है । शेष सभी राजनीति से चार हाथ दूर रहते हैं । क्योंकि वर्तमान की राजनीति बहुत गंदी हुई है !’

यदि हिन्दुओं को धर्म सिखाया, तभी अन्यधर्मियों समान उनके मत एकगुट होंगे !

‘मुसलमान एवं ईसाई उनका हित देखनेवालों को मतप्रदान करते हैं, जब कि बुद्धिप्रामाण्यवाद, समाजवाद, साम्यवाद इत्यादि विविध मानसिकता के अनुसार मत देते हैं । इसलिए उनके मत विभाजित होते हैं तथा भारत में उनका कोई मूल्य नहीं रह जाता ! हिन्दुओं को धर्म सिखाया तभी उनके मत अन्य धर्मियों समान एकगुट होंगे ।-’

राजनीतिक पक्ष एवं विविध संगठनों के समान सनातन संस्था एवं…

राजनीतिक पक्ष एवं विविध संगठनों के समान सनातन संस्था एवं हिन्दू जनजागृति समिति में पद न होते हुए पद का त्याग करनेवाले तथा दास्यभाव में रहनेवाले सेवा करते हैं ।

राजनीतिज्ञ का अर्थ

‘राजनीतिज्ञ का अर्थ है, राष्ट्र एवं धर्म के विषय में कोई कर्तव्य न रहनेवाला एवं केवल स्वार्थ देखनेवाला व्यक्ति !’