दाभोलकर की अंनिस के घोटालों पर मुख्यमंत्री क्या कार्यवाही करेंगे ?

अपराधी नागोरी-खंडेलवाल को जमानत;
तो निष्पाष समीर गायकवाड को कारावास क्यों ?

दाभोलकर की अंनिस के घोटाले सार्वजनिक करनेवाले धर्मादाय आयुक्त कार्यालय के जांच प्रतिवेदन पर मुख्यमंत्री क्या कोई कार्यवाही करेंगे ?

मुंबई – डॉ. नरेंद्र दाभोलकर की महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति (अंनिस) की ट्रस्ट का कार्य देखते हुए उस पर प्रशासक नियुक्त किया जाए, ट्रस्ट के घोटाले देख विशेष लेखा परीक्षण (स्पेशल ऑडिट) किया जाए, ट्रस्ट पर लगे गंभीर आरोपों की ऊपरी जांच की गई, अतएव पुनः जांच की जाए, ऐसी अनेक कठोर टिप्पणियां सातारा के सार्वजनिक न्यास पंजीकरण कार्यालय के अधीक्षक ने जांच प्रतिवेदन में की । इस प्रतिवेदन के कारण डॉ. नरेंद्र दाभोलकर का विवेकवाद, आधुनिकता और बुद्धिवाद का मुखौटा उतर गया है और वास्तविक घोटालेबाज चेहरा समाज के सामने आया है । दाभोलकर परिवार और आधुनिकतावादीयोंके दबाववश सनातन संस्था की जांच करनेवाले मुख्यमंत्री क्या कम से कम अब दाभोलकर की ट्रस्ट पर कार्यवाही करेंगे ? ऐसा प्रश्‍न सनातन संस्था के प्रवक्ता

श्री. अभय वर्तक ने मुंबई मराठी पत्रकार संघ आयोजित पत्रकार परिषद में उपस्थित किया । तथा इस प्रकरण में अधीक्षक के निरीक्षणों के अनुसार घोटालेबाज महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति पर तत्काल प्रशासक नियुक्त किया जाए और सनातन संस्था द्वारा बार-बार बताए अनुसार दाभोलकर की हत्या में उनकी ट्रस्ट के आर्थिक घोटालों का हाथ है क्या ?, इसकी भलीभांति जांच की जाए, ऐसी मांगभी श्री. वर्तक ने की । इस समय पत्रकार परिषद में हिन्दू विधीज्ञ परिषद के राष्ट्रीय सचिव अधिवक्ता संजीव पुनाळेकर, राष्ट्रीय वारकरी सेना के कोंकण प्रांताध्यक्ष ह.भ.प. बापू महाराज रावकर और हिन्दू जनजागृति समिति के प्रवक्ता डॉ. उदय धुरी उपस्थित थे । सातारा के सार्वजनिक न्यास पंजीकरण कार्यालय के निरीक्षक का जांच प्रतिवेदन सूचना अधिकार के अंतर्गत उपलब्ध हुआ । इसमें ये गंभीर बातें सामने आईं । (जांच प्रतिवेदनके विशिष्ट सूत्र अगले पृष्ठपर विस्तृत रूपसे दिए हैं ।)

नागोरी और खंडेलवाल को पकडना, उनके पास से मिली दाभोलकर की हत्या में प्रयुक्त पिस्तौल और उन्हें मिली जमानत से दाभोलकर परिवार और आधुनिकतावादियों को कोई लेना-देना नहीं, ऐसा दिखाई देता है । नागोरी और खंडेलवाल सनातन के नहीं हैं, इसलिए उनकी जमानत का विरोध नहीं किया गया; पर समीर गायकवाड सनातन का साधक होने के कारण उसकी जमानत का विरोध किया जा रहा है, यह कैसा विवेक है ? जिस नागोरी की पिस्तौल की बैलेस्टिक रिपोर्ट स्कॉटलैंड यार्ड से आ रही है, ऐसा कहकर समीर गायकवाड की जमानत रोकी जा रही है; उस नागोरी को ३ महिने में जमानत मिल जाती है । इस नागोरी ने ४० लाख रुपए लेकर एक निर्माणकार्य व्यापारी की हत्या की सुपारी ली, ऐसा समाचार हाल ही में एक विख्यात समाचार-पत्र ने दिया । एक ओर दाभोलकर हत्या प्रकरण में गिरफ्तार हुए अपराधी को अन्य अपराध करने के लिए खुला छोडा जा रहा है । वहीं दूसरी ओर निर्दोष समीर गायकवाड की जमानत का आवेदन स्वीकृत हो जाए, तो अनर्थ हो जाएगा, ऐसी (अ)विवेकवादी रट दाभोलकर मंडली लगा रही है । महाराष्ट्र शासन भी चोर को छोड संन्यासी को फांसी देने का समर्थन करता है ।

मा. मुख्यमंत्री आधुनिकतावादियों के अविवेकी दबाव की बलि न चढें । कम से कम अब तो इस गंभीर प्रकरण पर ध्यान दें और सनातन को न्याय दिलाएं, ऐसी मांग श्री. वर्तक ने की । साथ ही दाभोलकर की हत्या प्रकरण में सर्वप्रथम गिरफ्तार नागोरी और खंडेलवाल की सीबीआइ ने क्या जांच की ? ऐसा गंभीर प्रश्‍न अधिवक्ता पुनाळेकर ने उपस्थित किया ।

डॉ. दाभोलकर के महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति ट्रस्ट के
घोटालों संबंधि जांच प्रतिवेदन में से कुछ विशेष सूत्र

१. शिकायतों की जांच नहीं की गई, अतएव पुनः जांच की जाए, ऐसा जांच प्रतिवेदन में कहा है; ऊपरी जांच में भी इतनी गंभीर बातें सामने आई हैं, अधिक जांच करने पर और घोटाले सामने आएंगे ।

२. वर्ष १९९८-९९ से वर्ष २०११-१२ तक न्यास के न्यासियों संबंधी आवेदन हमारे द्वारा की गई शिकायतों के उपरांत एक साथ २६.४.२०१२ को दर्ज किए हैं । इनमें काटपीट की गई है । इतिवृत्त बार-बार लिखे गए हैं । न्यासियों ने इतिवृत्त में सुविधाजनक रूप से परिवर्तन किए हैं । (संदर्भ – पृष्ठ क्र. ९)

३. हिसाबपत्रक विलंब से प्रविष्ट करने के कारण धर्मादाय आयुक्त ने इसके लिए ट्रस्ट को दंड दिया है । (संदर्भ – पृष्ठ क्र. ९/१०, सूत्र क्र. ५)

४. फर्जीवाडा कर दाभोलकर ने अंशदान अर्थात सरकार की आय की हानि की है । (संदर्भ – पृष्ठ क्र. १२, सूत्र क्र. ९) इन आरोपों के विषय में अंनिस ने इससे पहले फर्जी रूप से कहा था कि हम शैक्षणिक काम करते हैं, इसलिए हमारे लिए अंशदान देना अनिवार्य नहीं । प्रत्यक्ष में धर्मादाय आयुक्त ने अंनिस को अंशदान में कोई भी छूट नहीं दी थी । (संदर्भ – पृष्ठ क्र. १२, सूत्र क्र. ९)

५. लॉटरी पद्धति से न्यासी नियुक्त करने की अंनिस के ट्रस्ट की पद्धति है । २६.४.२०१२ को एक साथ प्रविष्ट किए परिवर्तन आवेदनों में निरंतर चार वर्ष नरेंद्र दाभोलकर की ही लॉटरी कैसे लग गई ? (संदर्भ – पृष्ठ क्र. ५, सूत्र क्र. १ ते ४) यह या तो दाभोलकरजी का चमत्कार है अथवा फर्जीवाडा है ।

६. इसी के साथ धर्मादाय आयुक्त कार्यालय के अधीक्षक द्वारा प्रविष्ट किए गंभीर निरीक्षण आगे दिए अनुसार हैं ।

अ. न्यास की आय वर्ष २००४ से बहुत बढ गई है । न्यास ने बडी पूंजी का निवेश किया । इस शिकायतकर्ता की शिकायत में तथ्य दिखाई देता है । ट्रस्ट ने बचत, सावधि जमा, म्युच्युअल फंड्स, शेयर्स में करोडों रुपयों का निवेश किया, यह स्पष्ट है । साथ ही उसका विस्तृत विवरण दर्शानेवाले रजिस्टर अनुसूची १० अ अ (नियम २१ (२) भाग ३ के अनुसार) नहीं रखे, यह भी पाया गया । साथ ही उस विषय में विहीत परिवर्तन आवेदन कार्यालय को सादर नहीं किए । इससे न्यास ने मुंबई सार्वजनिक विश्‍वस्त व्यवस्था अधिनियम १९५० की धारा ३५ का उल्लंघन किया, यह पहली जांच में दिखाई देता है । (संदर्भ – पृष्ठ क्र.१०, सूत्र क्र. ७)

आ. न्यास द्वारा प्रस्तुत किए हिसाबपत्रक से न्यास को बडी मात्रा में विदेशी अनुदान मिले, ऐसा पाया गया । (संदर्भ – पृष्ठ क्र. ११, सूत्र क्र. ८)

इ. महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति द्वारा संचालित वैज्ञानिक जाणीवा प्रकल्प के नाम से संस्था ने उपक्रम चलाया, यह पाया गया । साथ ही इस प्रकल्प द्वारा पाठशालाआें में स्वयंअध्ययन परीक्षाआें के माध्यम से लाखों रुपयों की संपत्ति जमा हुई, यह न्यास के हिसाब से पाया गया । (संदर्भ – पृष्ठ क्र. ११, सूत्र क्र. ९)

ई. न्यास का पंजीयन विदेशी मुद्रा नियंत्रण कानून के अंतर्गत केंद्र शासन के गृहविभाग के पास पंजीकृत है, यह पाया गया । साथ ही इसके माध्यम से लाखों रुपयों का अनुदान जमा हुआ, यह भी पाया गया । तथापि इसकी जमा पावतियां जांचने पर, इन पावतियों पर एफ.सी.आर.ए. पंजीयन क्रमांक नहीं पाया गया । किंबहुना आयकर कानून धारा ८० (ग) के अंतर्गत पंजीयन क्रमांक भी नहीं पाया गया; परंतु इस प्रकार जमा हुई धनराशि न्यास के उद्देश्य के अतिरिक्त अन्य उद्देश्यों पर खर्च होती दिखाई देती है । जिससे न्यासियों ने बडी मात्रा में मानधन व अन्य संस्थाआें को दान दिया गया । इस विषय का प्रस्ताव पारित हुआ, ऐसा नहीं पाया गया । (संदर्भ – पृष्ठ क्र. ११, सूत्र क्र. ११)

उ. वर्ष २००६ में महाराष्ट्र फाउंडेशन इंडिया (अमेरिका) ने १० लाख रुपए की धनराशि डॉ. नरेंद्र दाभोलकर के नाम से पुरस्कार स्वरूप दी । वह पूरी धनराशि न्यास को दी गई, ऐसा लिखा है । प्रत्यक्ष जांच में व कागदपत्र देखकर वर्ष २००६ की ऑडिट रिपोर्ट में अथवा हिसाब की बही में इस राशि का उल्लेख नहीं पाया गया । (संदर्भ – पृष्ठ क्र. ११, सूत्र क्र. १०)

ऊ. न्यास को विदेश से बडी मात्रा में अनुदान प्राप्त हुए हैं । उनकी जानकारी केंद्रीय गृहविभाग को प्रतिवर्ष दी गई, ऐसा संस्था ने भले ही अपने कथन में उल्लेख किया हो, तब भी दी गई जानकारी और न्यास में उससे संबंधित कागदपत्रों में अंतर पाया गया । साथ ही स्थावर और जंगम संपत्ति की अद्यतन रजिस्टर नहीं; न ही उसके परिवर्तन आवेदन कार्यालय में प्रविष्ट हुए पाए गए । (संदर्भ – पृष्ठ क्र. ११, सूत्र क्र. १०)

ए. न्यास ने जमा खाते की धारा ३५ का उल्लंघन किया है । कुछ राशि रयत सेवक सह. बैंक, शामराव विठ्ठल को-ऑप. बैंक ऐसे अनेक बैंकों में रखी गई है । (संदर्भ – पृष्ठ क्र. १२, सूत्र क्र. ६)

ऐ. हिसाब जांचकर्ता ने हिसाबपत्रक के साथ विदेशी अनुवान के साथ विस्तृत ब्यौरा प्रस्तुत नहीं किया । (संदर्भ – पृष्ठ क्र. १२, सूत्र क्र. ७)

ओ. न्यास ने विविध प्रकार के फंड निर्माण किए हैं; तथापि उनका विहित प्रमाणपत्र प्रस्तुत नहीं किया । कुल मिलाकर शिकायतकर्ता की शिकायत में तथ्य पाया गया । इसी के साथ न्यास के कार्यकलाप में अनियमितता पाई

गई । न्यास का कार्यकलाप कानून के प्रावधानों के अनुसार व पारदर्शक रूप से चल रहा है, ऐसा निष्कर्ष निकालना उचित नहीं होगा । (संदर्भ – पृष्ठ क्र. १२, सूत्र क्र. ८)

ओ. न्यास ने विदेश से बडी मात्रा में अनुदान प्राप्त किए हैं । विविध स्वरूप की राशि शासन और पाठशालाआें से जमा की है । उसका उपयोग जिस कारण के लिए जमा किया, उस कारण के लिए नहीं किया गया । उसका दुरुपयोग किया गया । समय-समय पर ऑडिट किया गया कि नहीं, इस विषय में संभ्रम है, क्योंकि वह विलंब से प्रविष्ट हुए पाए गए । करोडों रुपयों के अनुदान आय में होते हुए । समय पर प्रविष्ट न करने के कारण कार्यालय को भी अंशदान न मिलने से उसकी बडी हानि हुई है । न्यास की स्थापना से न्यास के न्यासी निधिपत्र में बताए अनुसार न्यासियों में परिवर्तन प्रविष्ट नहीं किए गए । (संदर्भ – पृष्ठ क्र. १२, सूत्र क्र. ३)

औ. न्यास के संविधान के अनुसार प्रथम न्यासी पांच वर्ष रहेगा, तदुपरांत प्रतिवर्ष २ न्यासी निवृत्त होकर उनके स्थान पर शेष २ न्यासी पदभार ग्रहण करेंगे, ऐसा उल्लेख है । परंतु उसके अनुसार न्यासियों में परिवर्तन पहले प्रविष्ट न होने के कारण कार्यालयीन रिकॉर्ड के अनुसार न्यास में केवल १/२ न्यासी दिखाई देते हैं । बाकी सर्व मृत हैं । प्रविष्ट परिवर्तन आवेदन स्वीकृत होने तक न्यास का कोई भी न्यासी नहीं । जो व्यक्ति न्यास का कार्यभार संभाल रहे हैं, वे Defacto Managers हैं ।

उपरोक्त वस्तुस्थिति से ऐसा ध्यान में आता है कि, ट्रस्ट पर अधिकृत कार्यकारिणी/न्यासी नहीं है । इसलिए ट्रस्ट का कामकाज देखने के लिए तत्कालिन विधि विशेषज्ञों की प्रशासक के रूप में नियुक्ति आवश्यक है । तथा न्यास प्रविष्ट किया ऑडिट रिपोर्ट एवं शिकायतकर्ताआें की शिकायत का स्वरूप देखते हुए विशेष लेखापरीक्षण (स्पेशल ऑडिट) होना अत्यावश्यक है, ऐसे गंभीर निरिक्षण किए गए हैं ।

उपरोक्त सभी निरीक्षणों को देखते हुए दाभोलकर की घोटालेबाज महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति ट्रस्ट पर तत्काल प्रशासक नियुक्त किया जाए तथा इससे पूर्व जो अनियमितता पाई गई, उसकी राशि निश्‍चित कर सभी संबंधितों से उसे वसूल किया जाए, ऐसी मांग श्री. अभय वर्तक ने की । इससे पहले हमने अनेक बार यह दावा किया है कि दाभोलकर जीवित होते, तो कारागृह में होते, वह आज इन प्रमाणों से सत्य सिद्ध हो रहा है । और यदि दाभोलकर कारागृह जाते, तो किस किस की हानि होती ? दाभोलकर की अंनिस में इतने आर्थिक घोटाले हुए हैं; उनमें किस किस को लाभ हुआ ? क्या उनका दाभोलकर की हत्या से संबंध है ? ऐसे अनेक गूढ प्रश्‍नों के उत्तर पाने के लिए और दाभोलकर के वास्तविक हत्यारे को पकडने के लिए अंनिस ट्रस्ट के सर्व सदस्य और ट्रस्ट के आर्थिक सौदों से संबंधित सभी लोगों की जांच होना अत्यंत आवश्यक है, ऐसी मांग अधिवक्ता संजीव पुनाळेकर ने की ।

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