‘मीनार (टॉवर) मुद्रा’ द्वारा शरीर पर आया आवरण निकालने की पद्धति

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१. ‘मीनार मीनार (टॉवर) मुद्रे’ का अविष्कार सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के द्वारा किया जाना

दोनों हाथों के मध्य की उंगलियां एक-दूसरे के साथ जोडकर तथा कलाईयों को सिर के दोनों बाजुओं से टिकाकर ‘मीनार मुद्रा’ दिखाते हुएं (सद्गुरु) डॉ. मुकुल गाडगीळजी

‘सितंबर २०१८ में एक दिन एक साधक को अनिष्ट शक्तियों का बहुत कष्ट होने से मैं उसके लिए नामजप के द्वारा उपाय कर रहा था । किसी भी शारीरिक कारण से नहीं, अपितु केवल अनिष्ट शक्तियों के कष्ट के कारण उसे असहनीय उदरशूल हो रहा था तथा ३ घंटे उपाय करने पर भी उसका कष्ट थोडा भी अल्प नहीं हुआ । मैंने जब यह बात सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी को बताई, तब उन्होंने एक अभिनव ‘मीनार (टॉवर) मुद्रा’ मणिपुरचक्र के सामने उदरशूल दूर होनेतक पकडने के लिए कहा । तब मैंने उस साधक का कष्ट दूर होने के लिए स्वयं के मणिपुरचक्र के सामने वह मुद्रा कर नामजप किया । वह मुद्रा करते समय मैंने अपने दोनों हाथों की कलाईयां पेट पर टिकाकर रखीं । उस पद्धति से आधे घंटेतक उपाय करने से उस साधक का उदरशूल पूर्णतया रुक गया । इस प्रकार नवीनतापूर्ण ‘मीनार मुद्रा’ का महत्त्व मेरी समझ में आया ।

२. शरीर पर आई आवरण की पट्टिका  दूर करने के लिए गुरुकृपा से ‘मीनार मुद्रा’ का उपयोग करने का प्रथम अविष्कार होना

दूसरे दिन पुनः उस साधक को असहनीय उदरशूल हो रहा था । उस समय मेरी यह समझ में आया कि उस साधक के आज्ञाचक्र से लेकर मणिपुरचक्र तक आवरण की पट्टिका बनी है । मैं प्रथम बार ही ऐसे आवरण का अनुभव कर रहा था । मैं उस आवरण की पट्टिका को ‘मुट्ठियों से आवरण निकालने’ की पद्धति से निकालने का प्रयास कर रहा था; परंतु वह दूर नहीं हो रहा था । उस समय भगवान ने मुझे नामजप करते हुए सिर से लेकर पेटतक ‘मीनार मुद्रा’ करते हुए घुमाने के लिए सुझाया । इस प्रकार उपाय करने से शरीर पर आया आवरण १० मिनट में दूर हुआ तथा उस साधक का कष्ट भी बडी मात्रा में अल्प हुआ । तभी मैंने प्रथम बार आवरण निकालने के लिए ‘मीनार मुद्रा’ के उपयोग की खोज की; यह गुरुदेवजी की ही कृपा थी ।

३. ‘मीनार मुद्रा’ को शरीर के ऊपर से घुमाने की आवश्यकता

पहले जब अनिष्ट शक्तियां शरीर पर आवरण लाती थीं, उस समय वह आवरण किसी एक चक्र पर अथवा अधिकतम २ चक्रों पर होता था; परंतु आज के समय में सूक्ष्म के युद्ध का स्तर बढ गया है । अब छठे एवं सांतवें पाताल की अनिष्ट शक्तियां आक्रमण कर रही हैं । उसके कारण वे शरीर के दूसरे चक्रों पर ही आवरण न लाकर सिर से लेकर छातीतक अथवा सिर से लेकर कमरतक आवरण डालकर क्रमशः ४ (सहस्रार से अनाहतचक्र तक) अथवा ६ चक्र (सहस्रार से स्वाधिष्ठानचक्र तक) आवरण से भारित करते हैं, साथ ही उनके द्वारा लाया गया आवरण ऊपर से नीचेतक निरंतर होता है । उनके द्वारा यह निर्गुण स्तर का आक्रमण होता है । उसके कारण यह आवरण ‘मुट्ठियों से आवरण निकालने’ की पद्धति से दूर नहीं होता, अपितु उसके लिए ‘मीनार (टॉवर) मुद्रा’ को शरीर के ऊपर से घुमाने’ की पद्धति का ही उपयोग करना पडता है ।

४. शरीर पर ‘मीनार मुद्रा’ को घुमाने की पद्धति

दोनों हाथों के मध्य की उंगलियां एक-दूसरे के साथ जोडकर तथा कलाईयों को सिर के दोनों बाजुओं से टिकाकर ‘मीनार मुद्रा’ करें तथा उस मुद्रा को कुंडलिनीचक्र के ऊपर से (सहस्रार से स्वाधिष्ठानचक्र पर से ) ‘ऊपर से नीचे तथा नीचे से ऊपर’ इस पद्धति से ७-८ बार घुमाएं ।

५. ‘मीनार मुद्रा’ को शरीर पर घुमाते समय नामजप करना आवश्यक

‘मीनार मुद्रा’ को शरीर पर घुमाने से पूर्व ‘प्राणशक्ति वहन उपाय पद्धति’ से (‘शरीर एवं शरीर के चक्रों पर हाथ की उंगलियां घुमाकर उंगलियों से प्रक्षेपित होनेवाली प्राणशक्ति के द्वारा आध्यात्मिक पीडा अथवा बीमारी के लिए कारण शरीर में स्थित बाधा का स्थान ढूंढना ! उसके उपरांत उस स्थान पर बाधा की तीव्रता के अनुसार हाथ की उंगलियों की मुद्रा एवं नामजप ढूंढकर उनके द्वारा उपाय करना’) ‘कौन सा नामजप करना है ?’, यह ढूंढें । ‘मीनार मुद्रा’ को शरीर पर घुमाते समय खोजकर निकाला हुआ नामजप करें । वह नामजप करने से मुद्रा करते समय दोनों हाथों की एक-दूसरे के साथ जुडी मध्य की उंगलियों के सिरों से (मीनार किए हुए उंगलियों की रचना से) नामजप के स्पंदन दोनों हाथ की हथेलियों के मध्य भाग में आकर शरीर पर फैल जाते हैं, साथ ही चक्रों के माध्यम से शरीर में भी प्रवेश करते हैं । नामजप के स्पंदनों के कारण शरीर में स्थित आवरण नष्ट होने में सहायता मिलती है । उसके कारण शरीर में तथा शरीर पर आया हुआ आवरण भंग हो जाता है । मीनार बनाकर की  हुई मुद्रा को शरीर पर ७-८ बार घुमाने के कारण अधिकांश आवरण नष्ट हो जाते हैं । आगे जाकर हम ‘मुट्ठियों से आवरण निकालने’ (‘शरीर पर आया हुआ कष्टदायक शक्तियों के आवरण को दोनों हाथों की मुट्ठियों में लेकर एकत्रित करना तथा उसे शरीर से दूर फेंक देना’) को इस पद्धति से दूर कर सकते हैं ।’

मीनार मुद्रा करते समय आखें बंद रखें ।

– (सद्गुरु) डॉ. मुकुल गाडगीळजी, पीएच.डी., महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा (२९.६.२०२३)

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