सनातन संस्था की सद्गुरु (कु.) अनुराधा वाडेकरजी की साधनायात्रा विशद करनेवाले चरित्र ग्रंथ का भावपूर्ण वातावरण में प्रकाशन

मराठी ग्रंथ ‘सद्गुरु (कु.) अनुराधा वाडेकरजी यांचे साधनापूर्व जीवन आणि साधनाप्रवास’ का लोकार्पण करते हुए डॉ. विजय जंगम और साथ में सद्गुरु (कु.) अनुराधा वाडेकरजी

मुलुंड : अखिल भारतीय वीरशैव लिंगायत महासंघ के कार्याध्यक्ष डॉ. विजय जंगम ने कहा, ‘‘आज के इस समारोह में ग्रंथ के लोकार्पण हेतु उपस्थित रहना मेरे लिए बडे सौभाग्य की बात है ! गुरु अपने शिष्य का चरित्र लिखते हैं, यह भारत की इतिहास में पहली बार हो रहा है ! मेरे गुरुदेवजी ने मुझे साधनारत रहने के लिए कहा और उसके कारण ही आज मुझे यह अनुभव करना संभव हुआ । यह मेरे जीवन का परमोच्च क्षण है । यह कोई संयोग नहीं, अपितु ईश्‍वरीय संयोग है ।’’ मुलुंड सेवासंघ में २१ अक्टूबर २०१९ को आयोजित भावसमारोह में डॉ. विजय जंगम के हस्तों मराठी चरित्रग्रंथ ‘सद्गुरु (कु.) अनुराधा वाडेकरजी यांचे साधनापूर्व जीवन आणि साधनाप्रवास (साधना की अंतर्मुखता एवं उन्नति हेतु किए गए प्रयासोंसहित)’ का भावपूर्ण वातावरण में लोकार्पण किया गया । इस अवसरपर सद्गुरु (कु.) अनुराधा वाडेकरजी एवं सनातन संस्था की पू. (श्रीमती) संगीता जाधवसहित लष्कर-ए-हिन्द के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री. ईश्‍वरप्रसाद खंडेलवाल उपस्थित थे । साथ ही हिन्दुत्वनिष्ठ श्री. सुभाष अहिर एवं श्री. किशोर खंडेलवालसहित सनातन प्रभात के पाठक तथा मुंबई, ठाणे एवं रायगढ के साधक उपस्थित थे ।

ग्रंथ के लोकार्पण के पश्‍चात सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी द्वारा (कु.) अनुराधा वाडेकरजी के साथ की गई भेंटवार्ता का वीडियो दिखाया गया । उससे सभी को साधना के कई सूत्र सिखने का अवसर मिला ।

सनातन संस्था की सद्गुरु (कु.) अनुराधा वाडेकर की साधनायात्रा दर्शानेवाले ग्रंथ का मुखपृष्ठ

 

संत एवं मान्यवरों द्वारा व्यक्त मनोगत

१. साधकों के लिए ही स्वयं का जीवन होने की बात
कहनेवाली सद्गुरु अनुदीदी ! – पू. (श्रीमती) संगीता जाधव, सनातन संस्था

पू. (श्रीमती) संगीता जाधव

आज के इस समारोह का अनुभव अवर्णनीय है ! इस समारोह के माध्यम से ईश्‍वर हम सभी को एक अलग ही अवस्था में लेकर गए हैं । सद्गुरु अनुदीदी सदैव यह कहती हैं कि मेरा जीवन साधकों के लिए ही है । वे साधकों का साधना के संदर्भ में मार्गदर्शन करती हैं, साथ ही उनकी साधना में उत्पन्न बाधाओं का निवारण करती हैं । वे साधकों की वर्तमान स्थिति जानकर लेती हैं और उनका क्षेमकुशल पूछती हैं ।

२. १०० से भी अधिक संत बनानेवाली संस्था है
सनातन संस्था ! – श्री. ईश्‍वरप्रसाद खंडेलवाल, राष्ट्रीय अध्यक्ष, लष्कर-ए-हिन्द

श्री. ईश्‍वरप्रसाद खंडेलवाल

सनातन आश्रम जानेपर ईश्‍वरी राज्य के मुख्यालय में जाने जैसा लगता है । बहुत ही महत्त्वपूर्ण बात यह कि १०० से भी अधिक संत बनानेवाली संस्था है सनातन संस्था ! सभी को इस संस्था से जुडना चाहिए । सभी लोग सनातन आश्रम का अवश्य अवलोकन करें । सनातन संस्था के साधकों की ओर देखनेपर निर्मलता प्रतीत होती है । सनातन संस्था के संस्थापक परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने वर्ष २०१३ में ईश्‍वरीय राज्य स्थापना की बात कही है । ईश्‍वरीय राज्य तो आकर रहेगा; किंतु हमें इस गोवर्धन पर्वत को अपनी लाठियां लगाने का काम करना है । सनातन संस्था के अध्यात्मप्रसार के कार्य की जितनी प्रशंसा की जाए, उतनी अल्प ही है । सनातन संस्था हिन्दू समाज के कई युवक-युवतियों को साधनापथपर अग्रसर करने का कार्य कर रही है ।

मिट्टी का भी स्वर्ण में रूपांतरित करनेवाले गुरुदेवजी हमें
प्राप्त हुए हैं; इसलिए उनका सदैव स्मरण करें ! – सद्गुरु (कु.) अनुराधा वाडेकरजी

सद्गुरु (कु.) अनुराधा वाडेकरजी

आज गुरुदेवजी की कृपा से ही मैं इन क्षणों का अनुभव कर पा रही हूं । आज मैं अभिभूत हूं । भर-भर के देना, इसका अर्थ क्या होता है, इसका मैं शब्दों में वर्णन नहीं कर सकती । परिस के स्पर्श से लोहे का सोना बनता है; किंतु हमें तो मिट्टी को भी स्वर्ण में रूपांतरित करनेवाले गुरुदेवजी मिले हैं ! हमें उनका सदैव स्मरण करना चाहिए । उनके द्वारा बताए जाने के अनुसार साधना करने से हमें इसी जन्म में मोक्षप्राप्ति करना संभव है । गुरुदेवजी इतने सामर्थ्यवान हैं कि वहीं हमें साधना की नई-नई बातें सिखाते हुए आगे ले जा रहे हैं । जब हम चूकते हैं, तब गुरुदेवजी ही पुनःपुनः हमारा आध्यात्मिक दिशादर्शन करते हैं । परात्पर गुरु पांडे महाराज सदैव कहते थे, ‘‘पत्थर को जब सिंदुर पोता जाता है, तब पत्थर को वह पत्थर है, यह भलीभांति ज्ञात होता है ।’’ इस अवसरपर इस पत्थर को आकार देने के लिए गुरुदेवजी द्वारा उठाए गए परिश्रम मेरी आंखों के सामने दिखाई दे रहे हैं ।

स्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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