गोमाता का आध्यात्मिक महत्त्व, उसकी सेवा करने से लाभ और रक्षा करनेवालों को मिलनेवाला फल

१. हिन्दू धर्मशास्त्र में वर्णित गाय का महत्त्व

हिन्दू धर्मशास्त्रों ने गाय, नदी और भारतभूमि को ‘देवी’ कहकर उन्हें माता का स्थान दिया है । इसलिए, प्रत्येक हिन्दू के लिए गोमाता पूजनीय है ।

२. गाय का आध्यात्मिक महत्त्व

अ. सब प्राणियों में ‘गाय’ सबसे सात्त्विक है ।

आ. गोमाता के शरीर के विविध स्थानों में विविध देवता सूक्ष्मरूप (तत्त्वरूप) में निवास करते हैं । गाय में ३३ करोड देवताआें के तत्त्व ग्रहण और प्रक्षेपण करने की क्षमता होती है ।

इ. गाय का दूध, गोबर और गोमूत्र ये तीनों बहुत सात्त्विक तथा चैतन्यमय होते हैं । इसलिए, इनसे पंचगव्य (दूध, दही, घी, गोमूत्र और गोबर का मिश्रण) बनाया जाता है । पंचगव्य पीने से शरीर शुद्ध होता है । अनके धार्मिक कृत्यों में पंचगव्य का उपयोग किया जाता है ।

ई. गाय के निवास से भूमि और आसपास का वायुमंडल शुद्ध होता है ।

३. गोवंश हत्या का दुष्परिणाम

अ. सात्त्विकता बढानेवाले प्राणी की हत्या करने से भूतल की सात्त्विकता घटती है । इसलिए, गो-हत्यारे को ‘समष्टि पाप’ लगता है ।

आ. गोमाता की हत्या करनेवाले को मृत्यु के पश्‍चात पांचवें नरक में जाना पडता है । (टिप्पणी)

इ. गोमाता की हत्या में अप्रत्यक्ष सहायता करनेवाले, उदा. वृद्ध गाय कसाई को बेचनेवाले, गोहत्या होते देखकर भी चुप रहनेवाले, गाय को वाहनों में भरकर पशुवधगृह की ओर ले जाते हुए देखने पर भी कुछ न करनेवाले, महापापी हैं । (टिप्पणी)

ई. गोमांस खानेवाला मनुष्य महापापी है और उसका अगला जन्म असुर योनि में होता है । (टिप्पणी)

४. गो-सेवा का फल

गाय की पूजा और सेवा मन से करनेवालों को गोमाता बहुत आशीर्वाद देती है और पुण्य भी बहुत मिलता है । इस पुण्य के बल पर गो-सेवक को मृत्यु के पश्‍चात देवलोक में स्थान मिलता है । (टिप्पणी)

५. गो-रक्षा करनेवालों को मिलनेवाला फल

गो-रक्षकों को ‘सलोक मुक्ति’ मिलती है (टिप्पणी) और देवता आशीर्वाद देते हैं ।’

टिप्पणी – सूक्ष्म से / सूक्ष्म जगत से प्राप्त ज्ञान

– कुमारी मधुरा भोसले, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा (१४.६.२०१७)

सूक्ष्म : व्यक्ति के नाक, कान, आंखें, जीभ और त्वचा ये पांच ज्ञानेंद्रियां हैं । इन पांच ज्ञानेंद्रियों, मन और बुद्धि से जिसे समझा, देखा अथवा अनुभव नहीं जा सकता, वह ‘सूक्ष्म’ है । साधना में जो लोग बहुत आगे निकल चुके हैं, उनमें से कुछ लोगों को सूक्ष्म-ज्ञान की संवेदना होती है । सूक्ष्म-ज्ञान का उल्लेख अनेक धर्मग्रंथों में भी हुआ है ।

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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