चेहरे पर कष्टदायक शक्ति का आवरण प्रतीत होने पर किए जानेवाले आध्यात्मिक स्तर के उपाय !

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अनिष्ट शक्तियां साधकों की पंचज्ञानेंद्रियां अपने नियंत्रण में लेने के लिए साधकों के मुख पर कष्टदायक (काला) आवरण निर्माण करती हैं । इससे साधकों का मुखमंडल काला-सा दिखाई देना, चेहरा अस्पष्ट दिखाई देना, आंखों में आग होना, चेहरे पर फुंसियां आना, चेहरे पर काले दाग-धब्बे पडना अथवा चेहरा निस्तेज अथवा थका दिखाई देने समान कष्ट होते हैं । इससे यह समझ लें कि साधकों के मुख पर पाताल की अनिष्ट शक्तियों द्वारा सूक्ष्म से आक्रमण होने से चेहरे पर कष्टदायक आवरण आया हुआ है । इसके लिए साधक आगे दिए अनुसार प्रक्रिया स्थूल से कर अपने चेहरे पर आध्यात्मिक स्तर पर उपाय कर सकते हैं ।

कु. मधुरा भोसले

१. चाय का १ अथवा पौन चम्मच सनातन-निर्मित उबटन एक कटोरी में लें ।

२. उसमें चाय का आधा चम्मच नारियल तेल डालें ।

३. इस मिश्रण में आधा चम्मच गोमूत्र डालें ।

४. इस मिश्रण में थोडा सा कपूर को उंगलियों से दबाकर उसका चूरा मिलाएं ।

५. इन सर्व घटकों को उंगली से अच्छे से मिलाकर,  मिश्रण तैयार करे लें ।

६. मुंह को पानी  से धोकर यह मिश्रण पूरे मुखमंडल पर लगाएं ।

७. मिश्रण लगाने के पश्चात श्रीकृष्ण अथवा उपास्य देवता को ‘अपने मुखपर आया कष्टदायक शक्ति का संपूर्ण आवरण नष्ट होने दें’, ऐसी प्रार्थना करें ।

८. तदुपरांत ३ से ५ मिनटों के पश्चात मुखमंडल स्वच्छ पानी से धोएं ।

इस प्रकार स्वयं को अच्छा लगने तक, अर्थात २ – ३ सप्ताह तक मुखमंडल पर आध्यात्मिक स्तर पर उपाय करने से मुख पर संपूर्ण कष्टदायक आवरण नष्ट होकर मन को हलकापन, उत्साह एवं आनंद लगता है । ऊपर दिए अनुसार मुख पर किए उपाय से देह की सप्तकुंडलिनीचक्रों पर कष्टदायक आवरण दूर करने के लिए भी कर सकते हैं ।

 

कृतज्ञता

भगवान की कृपा से सूझा यह उपाय मैं गत ३ – ४ माह से कर रही हूं । इससे मुझे बहुत लाभ हुआ है । यह उपाय सुझाने के लिए मैं श्रीगुरुचरणों में कृतज्ञ हूं ।

– कु. मधुरा भोसले (आध्यात्मिक स्तर ६३ प्रतिशत) (सूक्ष्म से मिला ज्ञान), सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (३१.३.२०२२)

 

अनिष्ट शक्ति

वातावरण में अच्छी एवं अनिष्ट शक्तियां कार्यरत होती हैं । अच्छी शक्तियां कार्य के लिए मानव की सहायता करती हैं, तो अनिष्ट शक्तियां उन्हें कष्ट देती हैं । पूर्व के काल में ऋषि-मुनियों के यज्ञों में राक्षसों द्वारा विघ्न लाने की अनेक कथाएं वेद-पुराणों में हैं । अथर्ववेद में अनेक स्थानों पर अनिष्ट शक्तियां,  उदा. असुर, राक्षसों को प्रतिबंधित करने हेतु मंत्र दिए गए हैं । अनिष्ट शक्तियों के कष्टों के निवारणार्थ विविध आध्यात्मिक उपाय वेदादि धर्मग्रंथों में बताए हैं ।

आध्यात्मिक कष्ट

इसका अर्थ है व्यक्ति में नकारात्मक स्पंदन होना । व्यक्ति में नकारात्मक स्पंदन ५० प्रतिशत अथवा उससे भी अधिक मात्रा में होना, अर्थात तीव्र कष्ट, नकारात्मक स्पंदन ३० से ४९ प्रतिशत होना, अर्थात मध्यम कष्ट, तो ३० से भी कम होना अर्थात मंद आध्यात्मिक कष्ट है । आध्यात्मिक कष्ट, यह प्रारब्ध, पूर्वजों के कष्ट आदि आध्यात्मिक स्तर के कारणवश होते हैं । आध्यात्मिक कष्ट का निदान संत अथवा सूक्ष्म स्पंदन जाननेवाले साधक कर सकते हैं ।

इसमें प्रकाशित हुई अनुभूति‘ जहां भाव वहां भगवान’ इस उक्ति के अनुसार साधकों की व्यक्तिगत अनुभूतियां है । वैसे सभी को ही आएगी,  ऐसा कदापि नहीं है ! – संपादक

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