सनातन के १ सहस्र साधकों का ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त कर संतत्व की दिशा में मार्गक्रमण !

हिन्दू राष्ट्र की स्थापना हेतु परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा 
बताए गुरुकृपायोगानुसार साधना से मिला आध्यात्मिक बल !

‘हिन्दू धर्म में किसी भी योगमार्ग से साधना करने पर आध्यात्मिक उन्नति हो सकती है । पर यह उन्नति शीघ्र गति से हो, इसके लिए सनातन संस्था के संस्थापक परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने ‘गुरुकृपायोग’ अनुसार साधना बताई । इस साधना के कारण आज तक ६५ साधक संतपद पर विराजमान हुए हैं और १ सहस्र साधकों ने ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त कर संतत्व की दिशा में यात्रा आरंभ की है । इस प्रकार इतनी बडी संख्या में साधकों का आध्यात्मिक उन्नति करना, किसी संप्रदाय अथवा आध्यात्मिक संस्था के लिए अति दुर्लभ उदाहरण है । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा बताए अनुसार आज देश-विदेश के लाखों साधक साधना कर रहे हैं । इस कारण आगामी कुछ वर्षों में यह संख्या अनेक गुना बढेगी, यह निश्‍चित है ! हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए समाज का सत्त्वगुण बढना आवश्यक है । १ सहस्र साधकों ने आध्यात्मिक उन्नति की, जिसका आध्यात्मिक परिणाम समाज की सात्त्विकता बढने में होगा और इस माध्यम से हिन्दू राष्ट्र की स्थापना का मार्ग सुगम होगा । धन्य हैं परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी और धन्य है उनके द्वारा बताया गया गुरुकृपायोग साधना का मार्ग !’

 

१ सहस्र साधकों का ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक
स्तर पाना, सत्त्वगुणी समाज निर्मिति की प्रतीति है !

सोलापुर, महाराष्ट्र की श्रीमती जयश्री जावळकोटी (आयु ४६ वर्ष) ने दिनांक १८.२.२०१७ को ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त किया । वे सनातन की ६१ प्रतिशत सतर प्राप्त करनेवाली १ सहस्त्र वीं साधिका बनीं ! ‘साधना करनेवालों के लिए ‘गुरुकृपा हि केवलं शिष्यपरममङ्गलम् ।’, इसका अर्थ है ‘शिष्य का परममंगल, अर्थात मोक्षप्राप्ति केवल गुरुकृपा से ही हो सकती है ।’ गुरुकृपा प्राप्त करना, आध्यात्मिक प्रगति की गुरुकुंजी है । सनातन के और सनातन के मार्गदर्शन में साधना करनेवाले अन्य संगठनों के साधक ‘गुरुकृपायोगानुसार साधना’ करते हैं । उनका सौभाग्य है कि उन्हें साधना के लिए परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी का मार्गदर्शन मिलता है और ‘स्वयं की साधना-यात्रा कहां तक पहुंची’, यह भी समझ में आता है । इस कारण उन्हें गुरु के प्रति कृतज्ञता अनुभव होती है । सनातन के मार्गदर्शन की विशेषता यह है कि उसमें केवल व्यष्टि साधना नहीं, समष्टि साधना भी है । अर्थात राष्ट्र और धर्म के उत्कर्ष का भी विचार है । ऐसे व्यापक विचार के कारण ही और हिन्दू राष्ट्र की स्थापना (सनातन धर्म राज्य की स्थापना) का ध्येय होने के कारण ही ईश्‍वर के कृपाशीर्वाद गुरुकृपा से मिलते हैं । यही साधकों की शीघ्र उन्नति होने का वास्तविक कारण है । इसका पहला महत्त्वपूर्ण चरण है ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त करना । आज १ सहस्र साधकों ने यह चरण प्राप्त कर लिया है, इसलिए परात्पर गुरुदेव द्वारा प्रतिपादित हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के ध्येय की दिशा में पहला महत्त्वपूर्ण पग उठा लिया गया है । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त करने का महत्त्व समय समय पर सनातन के ग्रंथ और सनातन प्रभात में विशद किया है । इसमें इसका महत्त्व, उसे पाने हेतु किए जानेवाले प्रयत्न, पाने के उपरांत आध्यात्मिक उन्नति के लिए किए जानेवाले प्रयत्न और यह स्तर न पा सकनेवाले साधक निराश हुए बिना क्या दृष्टिकोण रखे, इस विषय में अब तक लिखकर परात्पर गुरुदेव ने सभी को उचित दिशा दी है । परात्पर गुरुदेव द्वारा दिए अनमोल दृष्टिकोण सभी को दिशा देंगे और उन्हें अपेक्षित हिन्दू राष्ट्र का स्वप्न शीघ्र साकार होगा, इसकी प्रतीति होती है ।’

 

६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर का महत्त्व !

‘ईश्‍वर का आध्यात्मिक स्तर यदि १०० प्रतिशत और निर्जीव वस्तुआें का ० प्रतिशत मानें, तो सामान्य मनुष्य का आध्यात्मिक स्तर २० प्रतिशत होता है । इस स्तर का व्यक्ति केवल अपने सुख-दु:ख का विचार करता है । समाज से उसका कोई लेना-देना नहीं रहता । ‘मैं ही सब करता हूं’, ऐसा विचार करता है । आध्यात्मिक स्तर ३० प्रतिशत होता है, तब वह ईश्‍वर का अस्तित्व कुछ मात्रा में स्वीकारने लगता है, तथा साधना और सेवा करने लगता है । – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले

‘६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त करना, असामान्य घटना ही है; क्योंकि इससे ब्रह्मांड का एक जीव जन्म-मृत्यु के फेरों से मुक्त होता है ।’ – पू. डॉ. चारुदत्त पिंगळे, हिन्दू जनजागृति समिति

 

६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त करने के प्रयत्न

१. ६१ प्रतिशत स्तर कैसे पाएं ?

१ अ. ‘पढाई करने पर परीक्षा में उत्तीर्ण होते ही हैं । उसी प्रकार साधना अच्छे से की, तो ६१ प्रतिशत स्तर मिलता ही है ।

१ आ. सांसारिक परीक्षा और साधना की परीक्षा

‘साधना के अतिरिक्त अन्य सभी विषयों की वार्षिक परीक्षा होती है । परीक्षा के पूर्व केवल २ – ३ मास पढाई करके भी अनेक लोग उत्तीर्ण हो जाते हैं । परंतु साधना में प्रतिदिन, प्रत्येक क्षण परीक्षा होती है । उसमें उत्तीर्ण होना पडता है, तभी ६१ प्रतिशत और अगला स्तर प्राप्त होता है ।’

१ इ. साधक आश्रम में अथवा प्रसार में वही सेवा करते बाह्यतः दिखाई दें, तब भी वह सेवा अधिकाधिक परिपूर्ण, भावपूर्ण और अहंरहित होने पर उनकी प्रगति होती है ।

२. साधकों का स्तर समझ पाना

‘किसी साधक का स्तर ६१ से ७० प्रतिशत है, यह कुछ साधकों को समझ में आता है । कुछ को समझ में आने पर भी निश्‍चिति नहीं रहती और अन्य साधक समझ नहीं पाते ।

२ अ. स्तर समझ न पाने के कारण

१. जितने व्यक्ति उतनी प्रकृति और उतने प्रकार का बोल-चाल, व्यवहार होता है । इसलिए इनसे स्तर नहीं पहचाना जा सकता ।

२. प्रत्येक की व्यष्टि साधना के अंतर्गत स्वभावदोष-निर्मूलन, अहं-निर्मूलन, नाम, सत्संग, सत्सेवा, त्याग, प्रीति और भावजागृति ये घटक भिन्न मात्रा में होती है । साथ ही समष्टि साधना का क्षेत्र भी भिन्न होता है । इसलिए स्तर पहचाना नहीं जा सकता ।

२ आ. स्तर समझ पाने हेतु उपयुक्त घटक

१. साधक का चेहरा सात्त्विक अथवा आनंदी दिखना
२. साधक की सेवा भावपूर्ण और परिपूर्ण होना
३. साधक की बातें सुनकर, उसके सान्निध्य में अथवा उसके छायाचित्र की ओर देखकर अच्छा लगना
४. उसमें अंतर्मुखता अनुभव होना

इन घटकों को ध्यान में रख अन्य साधकों का अभ्यास करें । इससे धीरे-धीरे किसका स्तर कितना है, तथा स्तर बढाने के लिए किसने क्या प्रयत्न करने चाहिए, यह ध्यान में आएगा और अन्यों की सहायता कर पाएंगे । साथ ही जिनका स्तर अधिक है, उनके गुण भी ध्यान में आएंगे और उन्हें आत्मसात करने की दृष्टि से प्रयत्न कर पाएंगे ।’
– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले (वर्ष २०१२)

 

साधको, ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त करना हो, तो यह ध्यान रखो !

‘जब तक ‘मैंने सेवा अच्छे से की’, ‘मेरी प्रगति’, ‘मेरा स्तर’ ऐसे विचार रहते हैं, तब तक ६१ प्रतिशत स्तर नहीं पा सकते । वे विचार समाप्त होने पर सेवा अथवा नामजप का आनंद अनुभव होने पर स्तर ६१ प्रतिशत होता है ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवलेजी (वर्ष २०१२)

 

६१ प्रतिशत और ६५ प्रतिशत स्तर का चरण पाने का महत्त्व

१. ६१ प्रतिशत स्तर के साधक

१ अ. अनिष्ट शक्तियों से पीडित साधकों का उपचार करने की क्षमता : ४ थे पाताल की अनिष्ट शक्तियों से लगभग ४ मास लड सकते हैं ।

१ आ. अगली उन्नति : ये साधक साधना में निरंतरता बनाए रखें और अहं न बढने दें, तो ४-५ वर्षों में संत बन सकते हैं । (७० प्रतिशत स्तर पर साधक संत बनता है ।)

२. ६५ प्रतिशत स्तर के साधक

२ अ. अनिष्ट शक्तियों से पीडित साधकों का उपचार करने की क्षमता : ६५ प्रतिशत स्तर का एक साधक ६१ प्रतिशत स्तर के ३० साधकों के बराबर है । ये साधक ४ थे पाताल की बलवान अनिष्ट शक्तियों से लगभग ७ मास लड सकते हैं और ५ वें पाताल की बलवान अनिष्ट शक्तियों से लगभग २ मास लड सकते हैं । इस दृष्टि से अनिष्ट शक्तियों के साथ हो रहे सूक्ष्म स्तरीय युद्ध में हमें बल प्राप्त हो रहा है ।

२ आ. अगली उन्नति : ये साधक साधना में निरंतरता बनाए रखें और अहं न बढने दें, तो २-३ वर्षों में संत बन सकते हैं ।

३. ६१ प्रतिशत स्तर के साधकों में स्वर्गप्राप्ति की
इच्छा न रहकर महर्लोक से मोक्ष तक मार्गक्रमण होने के कारण

३ अ. ६१ प्रतिशत स्तर तक साधकों के चित्त पर त्याग का संस्कार दृढ हो जाता है । वह उन्हें माया में फंसने नहीं देता ।

३ आ. ६१ प्रतिशत स्तर के आगे आनंद की अनुभूति आने के कारण माया के सुख का विचार नहीं रहता ।

३ इ. उनके मन में ईश्‍वरप्राप्ति की तीव्र इच्छा उत्पन्न होने के कारण आगे का मार्गक्रमण जारी रहता है ।

३ ई. कुछ लोगों की वृत्ती शीघ्र उन्नति करने की होती है । पृथ्वी की १०० वर्षों की साधना, महर्लोक में १०००० (दस सहस्र) वर्षों की साधना होती है । इसलिए पृथ्वी पर जन्म लेकर अधिकाधिक साधना कर शीघ्र मोक्ष तक जाने का विकल्प वे चुनते हैं; इसलिए महर्लोक में गए कुछ जीव पृथ्वी पर पुनः जन्म लेते हैं ।

४. ६१ प्रतिशत स्तर के साधकों की विशेषताएं

१. माया से अलिप्त रह सकते हैं ।

२. शरीर से तथा उपयोग की कुछ वस्तुआें से सुगंध आती है ।

३. मनोलय आरंभ होता है । विश्‍वमन के विचार ग्रहण कर पाते हैं ।

४. ४ थे पाताल तक की अनिष्ट शक्तियों से पीडित साधकों का आध्यात्मिक उपचार कर सकते हैं ।

५. मृत्युपरांत जन्म-मृत्यु के फेरे से छूटकर महर्लोक में स्थान पाते हैं ।’

– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले (वर्ष २०१२)

अन्य संप्रदायों की तुलना में सनातन संस्था
के साधकों की शीघ्र प्रगति होने का कारण

‘अध्यात्म में ‘जितने व्यक्ति उतनी प्रकृतियां और उतने साधनामार्ग’, यह एक सिद्धांत है; इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को उसके मार्गानुसार साधना की दिशा मिले; इसके लिए भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कर्मयोग, ज्ञानयोग, भक्तियोग जैसे विविध योगमार्ग बताए हैं । किसी चिकित्सक (डॉक्टर) के पास जिस प्रकार विविध रोगों की औषधियां होती हैं, उसी प्रकार यह है । किसी चिकित्सक के पास एक ही औषधि हो, और वह अपने पास आनेवाले प्रत्येक रोगी को वही औषधि दे, तो उसे ‘चिकित्सक’ नहीं कहा जा सकता । उसी प्रकार एक ही साधनामार्ग बतानेवाले विविध संप्रदाय साधना के संदर्भ में उचित मार्गदर्शन नहीं कर पाते; इसलिए उनके भक्तों की विशेष प्रगति होती दिखाई नहीं देती । इसलिए अनेक स्थानों पर गुरु के देहत्याग के उपरांत उनकी पादुकाआें की स्थापना करनी पडती है । इसके विपरीत सनातन संस्था प्रत्येक साधक को उसकी प्रकृति के अनुसार भिन्न साधना बताती है । इसलिए साधकों की शीघ्र प्रगति होती है । इसी कारण अब तक १ सहस्र साधकों का स्तर ६१ प्रतिशत से अधिक हुआ है और ६५ साधक संत बने हैं ।’

 – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले

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