४.११.२०१९ को गुरु (बृहस्पति) ग्रह का धनु राशि में प्रवेश तथा इस कालावधि में होनेवाले परिणाम !

श्रीमती प्राजक्ता जोशी

‘सोमवार ४.११.२०१९ (कार्तिक शुक्ल अष्टमी) की उत्तररात्रि में २९.१८ (मंगलवार ५.११.२०१९, प्रातः ५.१८) को गुरु ग्रह धनु राशि में प्रवेश करेगा । गुरु ग्रह एक राशि में १३ मासोंतक रहता है । इन १३ मासों के मध्यपर स्थिति २ मासों में इसका अधिक परिणामकारी फल मिलता है । २९.३.२०१९ को रात ८.०२ बजे से २२.४.२०१९ की उत्तररात्रि में २५.१५ (रात १.१५) बजेतक गुरु ग्रह का धनु राशि में पहला प्रवेश हुआ । २२.४.२०१९ की उत्तररात्रि में २९.१८ (मंगलवार, ५.११.२०१९, प्रातः ५.१८) बजे गुरु ग्रह पुनः धनू राशि में प्रवेश करेगा ।

 

 

१. गुरु ग्रह का धनु राशि में प्रवेश एवं गुरु ग्रह के बदलाव का ज्योतिशशास्त्रीय महत्त्व

सोेमवार ४.११.२०१९ (कार्तिक शुक्ल अष्टमी) की उत्तररात्रि में २१.१८ (मंगलवार ५.११.२०१९, प्रातः ५.१८) बजे गुरु ग्रह धनु राशि में प्रवेश करेगा । उसका पुण्यकाल सोमवार उत्तररात्रि ३.२७ से लेकर मंगलवार सुबह ७.०९ तक है । पुण्यकाल में जप, दान, पूजा करना आदि पुण्यकारक एवं पीडाहारी कृत्य हैं । गुरु ग्रह के एक राशि से दूसरे राशि में प्रवेश का यह संधिकाल है । संधिकाल में की जानेवाली साधना का फल कई गुना अधिक मिलता है । जिन लोगों को इस संपूर्ण पुण्यकाल में जाप करना संभव नहीं होगा, वे न्यूनतम गुरु ग्रह का राशि में प्रवेश होने से १५ मिनट पहले और राशि में प्रवेश के १५ मिनट पश्‍चात जाप करें ।

 

२. गुरु ग्रह का महत्त्व !

गुरु एक शुभ ग्रह है तथा लौकिकदृष्टि से सभी ग्रहों में इस ग्रह का अनन्यसाधारण महत्त्व है । हिन्दू धर्म में उनपनयन, विवाह आदि जैसे किसी भी शुभकार्य में गुरुबल देखा जाता है । धर्मशास्त्र के अनुसार गुरु के अस्त की कालावधि में कोई शुभकार्य नहीं किया जाता । गुरु सत्स्वरूप का कारक ग्रह है । यह ग्रह आकाशतत्त्व का है तथा पंचतत्त्वों में आकाशतत्त्व ही सबसे श्रेष्ठ है । यह ग्रह सत्त्वगुणी, व्यासंगी, न्यायिक, दयालू, परोपकारी, महत्त्वाकांक्षी एवं आध्यात्मिक वृत्ति का है । साधना के लिए गुरुबल का उत्तम होना आवश्यक होता है ।

 

३. धनु राशि में गुरु के होनेवाले परिणाम !

गुरु ग्रह सूर्यमाला में आकार में सबसे बडा ग्रह है । धनु राशि का राशिस्वामी गुरु ग्रह है । ज्योतिषशास्त्र में ग्रहों की मित्र एवं शत्रुराशियां निर्धारित की गई हैं । ग्रह जब मित्र राशि में होता है, तब वह जिन बातों का कारक होता है तथा जन्मकुंडली में वह जिन स्थानो का स्वामी है, उसके संबंध में फलदायी सिद्ध होता है, यह नियम है । गुरु एक शुभग्रह होने से प्रत्येक कार्य में गुरुबल देखा जाता है । कुंडली में गुरु ग्रह शुभ होना महत्त्वपूर्ण होता है । शुभ गुरु ग्रह के कारण उच्च शिक्षा, विदेशभ्रमण, प्रसिद्धि, तत्त्वज्ञान, धर्म, कीर्ती, आर्थिक, धार्मिक साथ ही आध्यात्मिक इन सभी क्षेत्रों में सफलता मिलती है ।

 

४. राशि के अनुसार गुरु के स्थान

धनु राशि में प्रवेश करनेवाला गुरु राशि में पहला, वृश्‍चिक राशि के लिए दूसरा, तुला राशि में तीसरा, कन्या राशि के लिए चौथा, सिंह राशि के लिए पांचवां, कर्क लिए छटा, मिथुन राशि के लिए सांतवां, वृष राशि के लिए आठवां, मेष राशि के लिए नौवां, मीन राशि के लिए १०वां, कुंभ राशि के लिए ११वां और मकर राशि के लिए १२वां है ।

 

५. धनु राशि के गुरुभ्रमण का राशि के अनुसार परिणाम

अ. गुरु ग्रह कन्या, वृषभ एवं मकर इन राशियों के लिए क्रमशः चौथा, आठवां और १२वां होने से इस राशि के व्यक्तियों को तथा जिस राशी के व्यक्तियों के लिए वह लोहपाद से प्रवेश कर रहा है, वे पीडापरिहार हेतु गुरु ग्रह के संदर्भ में जाप, दान एवं पूजा अवश्य करें ।

आ. गुरु ग्रह धनु, तुला, कर्क एवं मीन इन राशियों के लिए क्रमशः पहला, तीसरा, छठा एवं १० वां आ रहा है; इसलिए वे पुण्यकाल में जाप, दान एवं पूजा करें; जो पुण्यकारी एवं पीडाहारी है ।

इ. सिंह, मकर एवं मीन राशियों के लिए गुरु ग्रह सुवर्णपाद से आ रहा है, जिसका फल चिंता है ।

ई. वृषभ, कन्या एवं धनु इन राशियों के लिए गुरु ग्रह रजतपाद से आया है, जिसका फल शुभ है ।

उ. मेष, कर्क एवं वृश्‍चिक राशियों के लिए गुरु ग्रह ताम्रपाद से आया है, जिसका फल श्रीप्राप्ति अर्थात लक्ष्मीप्राप्ति अर्थात धन की प्राप्ति इत्यादि है ।

ऊ. मिथुन, तुला एवं कुंभ इन राशियों के लिए गुरु ग्रह लोहपाद से आया है, जिसका फल कष्ट है ।

 

६. गुरु ग्रह के बदलाव की कालावधि में करनी आवश्यक साधना !

६ अ. गुरु ग्रह के पीडापरिहारी दान

स्वर्ण, कांसे, पुष्कराज, चने की दाल, घोडा, चीनी, पीला वस्त्र एवं पीले फूल

६ आ. जापसंख्या

१९ सहस्र

६ इ. पूजन हेतु गुरु की स्वर्णप्रतिमा का उपयोग करें ।

६ ई. गुरु ग्रह का पौराणिक मंत्र

देवानां च ऋषीणां च, गुरुं काञ्चनसंनिभम् ।
बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं, तं नमामि बृहस्पतिम् ॥ – नवग्रहस्तोत्र, श्‍लोक ५

अर्थ : देवताओं एवं ऋषियों के गुरु, सोने जैसी अंगकांति से युक्त, अत्यंत बुद्धिमान एवं त्रिलोकों में श्रेष्ठ ऐसे उन बृहस्पतिजी (गुरु) को मैं वंदन करता हूं ।

६ उ. गुरु की स्वर्ण प्रतिमा का पूजन तथा दान का संकल्प्

६ उ १. दान का संकल्प

‘मम जन्मराशे सकाशात् अनिष्टस्थान-स्थित-गुरो पीडापरिहार्थम् एकादश-स्थानवत् शुभफलप्राप्त्यर्थं सुवर्ण-प्रतिमायां बृहस्पतिपूजनं तत्प्रीतिकरं (अमुक) (टिप्पणी) दानं च करिष्ये ।

अर्थ : मेरी जन्मपत्रिका में अनिष्ट स्थान में स्थित गुरु की पीडा दूर हो तथा वे कुंडली के ११वें अर्थात लाभ स्थान में होने की भांति शुभ फल प्रदान करनेवाले बनें; इसके लिए मैं गुरुमूर्ति की पूजा एवं गुरु महाराज प्रसन्न हों; इसके लिए अमुक वस्तु का दान देता हूं ।

६ उ २. ध्यान

अहो वाचस्पते जीवन सिन्धुमण्डलसम्भव
एह्यडगिरससम्भूत हयारूढ चतुर्भूज ।
दण्डाक्षसूत्रवरद कमण्डलुधर प्रभो
महान् इन्द्रेति सम्पूज्यो विधिवन्नाकिनां गुरु ॥

अर्थ : हे वाचस्पति, आपका जन्म आकाशगंगा से हुआ है । आप चिरंजीव हों । हे अंगिरसपुत्र, आप अश्‍वपर आरूढ हैं । आपने अपने ३ हाथों में दण्ड, जपमाला एवं कमण्डलू धारण किया हुआ है । आपका चौथा हाथ वर देने की मुद्रा में है । आप महान हैं । आप ज्ञान के स्वामी हैं । आप देवों के भी गुरु हैं । हम आपका विधिवत् पूजन करते हैं ।

६ उ ३. दान का महत्त्व

बृहस्पतिप्रीतिकरं दानं पीडानिवारकम् । सर्वापत्तिविनाशाय द्वविजाग्र्याय ददाम्यहम् ॥

अर्थ : गुरु महाराज को प्रिय दान देनेपर सभी पीडाएं और सभी संकटों का निवारण होता है । मैं इस श्रेष्ठ ब्राह्मण को यह दान दे रहा हूं ।

 

७. ग्रहों की अशुभ स्थिति में साधना का महत्त्व !

गोचर कुंडली (वर्तमान ग्रहस्थितिपर आधारित कुंडली) में ग्रह अशुभ स्थिति में हो, तो उससे साधना न करनेवाले व्यक्ति को अधिक कष्ट होने की संभावना होती है । इसके विपरीत साधना करनेवाले व्यक्ति को उसकी सात्त्विकता के कारण ग्रहों के कारण होनेवाले अशुभ परिणामों से बहुत कुछ कष्ट नहीं होता । इस कालावधि में यदि अधिक कष्ट होता हो, तो ‘श्री गुरुदेव दत्त’ नामजप करें । उक्त दिए हुए गुरु के पौराण मंत्र का भी पाठ कर सकते हैं ।

अध्यात्म की यह एक विशेषता है कि अनुकूल काल की अपेक्षा प्रतिकूल काल में की गई साधना के कारण तीव्रगति से आध्यात्मिक उन्नति होती है । अतः साधकों को अपने मनपर इस अशुभ ग्रहस्थिति का परिणाम होने न देकर साधना के अधिकाधिक प्रयास करनेपर ध्यान देना चाहिए ।’

– श्रीमती प्राजक्ता जोशी (ज्योतिष फलित विशारद), महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय, ज्योतिष विभाग, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा (२८.१०.२०१९)

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