रामनाथी, गोवा के आश्रम में सौरयाग संपन्न !

परात्पर गुुरु डॉ. आठवलेजी को स्वास्थ्यपूर्ण दीर्घायु प्राप्त हो, हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के कार्य में उत्पन्न सभी बाधाएं दूर हों तथा साधकोंसहित सभी हिन्दुत्वनिष्ठों के कष्ट दूर हों, यह याग का संकल्प होना !

श्री सूर्यनारायण की कृपा होकर परात्पर गुुरु डॉ. आठवलेजी को स्वास्थ्यपूर्ण दीर्घायु प्राप्त हो, हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के कार्य में उत्पन्न सभी बाधाएं दूर हों तथा इस कार्य में सहभागी साधकोंसहित सभी हिन्दुत्वनिष्ठों के शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक कष्ट दूर हों, साथ ही सभी का आयुवर्धन हो, यह संकल्प लेकर महर्षि भृगुजी की आज्ञा के अनुसार यहां के सनातन के आश्रम में २१ अक्टूबर २०१८ को भावपूर्ण वातावरण में सौरयाग संपन्न हुआ ।

याग की पूर्णाहुति के समय बाईं ओर से पुरोहित श्री. सिद्धेश करंदीकर, श्री. दामोदर वझे । पूर्णाहुति देते हुए श्री. अमर जोशी, सद्गुुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी, पुरोहित श्री. ईशान जोशी तथा श्री. चैतन्य दीक्षित
सूर्यदेवता की प्रतिमा

सद्गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी ने इस याग का संकल्प लिया । तत्पश्‍चात श्री गणेशपूजन, आचार्यवरण, सूर्यनारायण का आवाहन तथा पूजन किया गया । याग के समय सौरसूक्त का भी पठन किया गया । सौरसूक्त में सूर्यदेव की स्तुति तथा कार्य का वर्णन किया गया है । याग में समिधा, घी तथा चरू (घी) की आहुति दी गई । सद्गुुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी ने अष्टदिग्पालों की पूजा की । इसमें ८ दिशाआें की (४ मुख्य दिशाएं तथा ४ उपदिशाएं) देवताएं इंद्र, अग्नि, निऋति, वरुण, वायु, सोम एवं ईशान इन ८ देवताआें का पूजन किया गया । पूर्णाहुति से याग का समापन किया गया । सनातन के साधक-पुरोहित श्री. दामोदर वझेसहित अन्य पुरोहितों ने धार्मिक विधियों में सहभाग लिया ।

क्षणिकाएं

१. याग के समय साधकों ने ‘॥ ॐ श्री सवितृ सूर्यनारायणाय नमो नमः ॥’ नामजप किया ।

२. सौरयाग की पूर्णाहुति के पश्‍चात आकाश में जमें बादलोंपर सुनहरी आभा दिखाई दे रही थी ।

पृथ्वीपर विद्यमान जीवसृष्टि का नियमन करनेवाले श्री सूर्यनारायण !

नवग्रहों में सूर्य प्रमुख देवता हैं । जिस प्रकार से श्रीविष्णुजी ब्रह्मांड का नियमन करते हैं, उसी प्रकार से सूर्य पृथ्वी का नियमन करते हैं; इसलिए सूर्य को सूर्यनारायण भी कहा जाता है, साथ ही सूर्यनारायण शरीर में विद्यमान ऊर्जा का भी नियमन करते हैं । सौरयाग का अर्थ श्री सूर्यनारायण की उपासना है । श्‍वसनरोग, नेत्ररोग, हृदयरोग आदि शारीरिक विकार (रोग) दूर होकर स्वास्थ्यपूर्ण दीर्घायु प्राप्त हो, साथ ही सूर्यनारायण की कृपा हो; इसके लिए यह याग किया जाता है ।

यज्ञकर्म के समय अज्ञानवश होनेवाली कृतियों के
कारण प्रायश्‍चित्त का अवसर प्रदान करनेवाला महान वैदिक हिन्दू धर्म !

सौर याग में आहुति के पश्‍चात पुरोहितों ने प्रायश्‍चित होम किया । यज्ञ की ज्वालाआें में अज्ञानवश कृमी, कीटक, मख्खी, चींटी अथवा अन्य कीटकों के मृत होने से होनेवाले पापकर्म के क्षालन हेतु, साथ ही यज्ञ के मंत्रों का ठीक से उच्चारण न होने के कारण अज्ञानवश अयोग्य प्रकार से मंत्रों का उच्चारण किए गए हों अथवा मंत्रों को आगे-पीछे कहा गया हो, तो उसका भी पाप न लगे तथा उसके कारण संकल्प के सफल बनने में बाधा उत्पन्न न हो; इसके लिए प्रायश्‍चित होम किया जाता है ।

वैदिक हिन्दू धर्म द्वारा मनुष्य की प्रकृति तथा उसके स्वभाव से मूलतक जाकर अध्ययन किए जाने के कारण मनुष्य द्वारा अज्ञानवश हुई चुकों के कारण उसे हानि न पहुंचे, इसकी ओर भी ध्यान दिया गया है । इसके लिए यज्ञकर्मों मे प्रायश्‍चित्तादि विधि भी बताए गए हैं । इसी से हिन्दू धर्म की महानता ध्यान में आती है ।

२१.१०.२०१८ को रामनाथी आश्रम में
संपन्न सौरयाग के समय एक संतजी को प्राप्त अनुभूतियां

१. श्‍लोकों के उच्चारण के समय छातीपर शक्ति प्रतीत हो रही थी ।

२. ‘स्वाहा’ शब्द के उच्चारण के समय अधिक आनंद प्रतीत हुआ ।

३. पुरोहित साधक दामोदर वझे जब श्‍लोक का उच्चारण कर रहे थे, तब अधिक भाव प्रतीत हुआ । पूर्णाहुति के समय के उच्चारण को ऊंचे स्वर में करते समय सबसे अधिक भाव प्रतीत हुआ । – एक संत

स्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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