धर्मनिरपेक्ष शब्द की व्याख्या भारतीय संविधान में नहीं है ! – चेतन राजहंस, प्रवक्ता, सनातन संस्था

श्री. चेतन राजहंस

मुझफ्फरनगर (उत्तरप्रदेश) – आज भारतीय संविधान के शब्द धर्मनिरपेक्ष द्वारा राज्यव्यवस्था के लोग हिन्दुआें को दबाने का काम कर रहे हैं । प्रसारमाध्यमों के स्वयंघोषित बुद्धिवादी हिन्दुआें पर वैचारिक अन्याय कर रहे हैं । वास्तव में संविधान में धर्मनिरपेक्ष शब्द की व्याख्या अथवा अर्थ नहीं दिया गया है, इसलिए उसके धर्मनिरपेक्षता, सर्वधर्मसमभाव, लौकिकवाद आदि विविध अर्थ लगाए जाते हैं । भारतीय संविधान से यह अर्थहीन शब्द हटाकर सनातन धर्माधिष्ठित शब्द जोडा जाए, एेसी मांग हिन्दुआें को करनी चाहिए । सरकार को ही संविधान की धारा ३६८ का उपयोग कर भारत को हिन्दू राष्ट्र स्थापित करने का संवैधानिक मागर् खोल देना चाहिए, एेसा आवाहन सनातन संस्था के प्रवक्ता श्री. चेतन राजहंस ने किया । वे मुझफ्फरनगर में धर्मनिरपेक्षतावाद आैर उसकी हानि इस विषय पर बोल रहे थे । .

श्री. राजहंस आगे बोले, धर्मनिरपेक्ष र्इसार्इ विचार है । भारत में वह अनावश्यक है । वर्ष १९७६ में आपातकाल के समय विरोधी पक्षों के नेताआें को कारागृह में डालकर कांग्रेस ने संविधान में ४२ वां संशोधन कर संविधान के प्रास्ताविक में धर्मनिरपेक्ष शब्द घुसाया था । उसी प्रकार संसदीय अधिकारों का उपयोग कर उसे हटाया जा सकता है । यह वास्तविकता देश के तथाकथित धर्मनिरपेक्षतावादियों को बताने की आवश्यकता है । .

इस कार्यक्रम में अध्यक्ष रा.स्व. संघ के श्री. रवींद्र गौड, प्रमुख अतिथि डॉ. एम्.के. तनेजा थे । सूत्रसंचालन बन्सल कोचिंग क्लासेस की संचालिका डॉ. प्रीती चौधरी ने किया ।

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