खग्रास चंद्रग्रहण (२७.७.२०१८) के दिन क्या करें आैर क्या न करें ?

१. भारत में दिखाई देनेवाला खग्रास चंद्रग्रहण शुक्रवार, आषाढ पूर्णिमा (२७.७.२०१८) को खग्रास चंद्रग्रहण है ।

१ अ. खग्रास चंद्रग्रहण

सूर्य एवं चंद्र के मध्य पृथ्वी के आने पर, पृथ्वी की छाया चंद्र पर पडती है और चंद्र का तेज न्यून होता है । उस समय चंद्र लालिमायुक्त भूरे रंग का दिखाई देता है । पृथ्वी की छाया में पूर्ण चंद्र आने पर खग्रास चंद्रग्रहण होता है ।

 

२. २७.७.२०१८ को भारत में सर्वत्र दिखाई देनेवाले खग्रास चंद्रग्रहण के समय, उस कालावधि में पाले जानेवाले नियम तथा राशि अनुसार फल

आषाढ पूर्णिमा को (२७.७.२०१८) चंद्रग्रहण है । यह ग्रहण भारत में सर्वत्र ‘खग्रास’ दिखाई देनेवाला है । ग्रहण २७.७.२०१८ की रात्रि  ११.५४ से ३.४९ तक है । ग्रहणकाल में की गई साधना का फल सहस्रों गुना अधिक प्रमाण में मिलता है । इसलिए ग्रहणकाल में साधना को प्रधानता देना महत्त्वपूर्ण है ।

२ अ. चंद्रग्रहण दिखाई देनेवाले प्रदेश

भारत सहित संपूर्ण एशिया खंड, यूरोप, अफ्रिका  खंड, दक्षिण अमेरिका, रूस, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, पैसिफिक  महासागर, हिंद महासागर और अटलांटिक महासागर

२ आ. संपूर्ण भारत में चंद्रग्रहण का समय

२ आ १. स्पर्श (आरंभ) : २३.५४ (रात्रि ११.५४)

२ आ २. संमीलन (ग्रहणस्पर्श (ग्रहण का आरंभ) होने के उपरांत धीरे-धीरे बिंंब का ग्रास होते-होते वह पूर्ण ग्रस्त हो जाए, तो उसे ‘संमीलन’ कहते हैं ।) : रात्रि १.०० (२७.७.२०१८)

२ आ ३. मध्य :  रात्रि  १.५२

२  आ  ४.  उन्मीलन  (खग्रास  ग्रहण के उपरांत बिंबदर्शन के प्रारंभ को ‘उन्मीलन’ कहते हैं ।) :  रात्रि २.४४

२ आ ५. मोक्ष (अंत) : उत्तररात्रि ३.४९

२ आ ६. पर्व (टिप्पणी १) (ग्रहण आरंभ से अंत तक की कुल कालावधि) : ३.५५ घंटे टिप्पणी १  – पर्व अर्थात पर्वणी अर्थात पुण्यकाल ! ग्रहण स्पर्श से ग्रहण मोक्ष तक का काल पुण्यकाल है । ‘इस काल में ईश्‍वरीय अनुसंधान में रहने पर आध्यात्मिक लाभ  होता है’, ऐसा शास्त्र में बताया है ।

२ इ. ग्रहण का वेध लगना

२ इ १. अर्थ : ग्रहण से पूर्व चंद्र पृथ्वी की छाया में आना आरंभ होने से उसका प्रकाश धीरे-धीरे न्यून होना आरंभ होता है । इसे ही ‘ग्रहण का वेध लगना’, कहते हैं ।

२ इ २. कालावधि : यह चंद्रग्रहण रात्रि के दूसरे प्रहर में (टिप्पणी २) होने से ३ प्रहर पूर्व, अर्थात २७.७.२०१८ की दोपहर १२.४५ से ग्रहण मोक्ष तक उत्तररात्रि ३.४९ तक) वेध का पालन करें । टिप्पणी २ : ३ घंटों का एक प्रहर होता है । दिन के ४ प्रहर और रात्रि के ४ प्रहर मिलकर एक दिन में कुल ८ प्रहर होते हैं ।

२ इ ३. नियम : वेधकाल में स्नान, देवपूजा, नित्यकर्म, जपजाप्य, श्राद्ध कर्म कर सकते हैं । वेधकाल में भोजन निषेध है; इसलिए अन्नपदार्थ न खाएं; मात्र वेधकाल में आवश्यक हो, तो पानी पीना, मल-मूत्रोत्सर्ग, निद्रा लेना इत्यादि कर्म कर सकते हैं । परंतु ग्रहणकाल में ये कर्म निषिद्ध हैं । बच्चे, बीमार, कमजोर व्यक्ति और गर्भवती स्त्रियां सायंकाल ५.३० से ग्रहण का वेध पालें ।

२ ई. वेध का नियम पालने का आरोग्य की दृष्टि से महत्त्व

२  ई  १.  शारीरिक  /  भौतिक  : वेधकाल में विषाणु बढने से अन्न शीघ्र खराब होता है । इस काल में रोग प्रतिकारशक्ति कम होती है । इसलिए जिसप्रकार रात्रि का अन्न अगले दिन बासी हो जाता है, उसी प्रकार ग्रहण से पूर्व भी अन्न ग्रहण होने के उपरांत बासी माना जाता है । वह अन्न फेंक दें । यह नियम केवल दूध और पानी को लागू नहीं होता है । ग्रहण से पूर्व दूध और पानी ग्रहण समाप्त होने के उपरांत भी उपयोग कर सकते हैं ।

२ ई २. मानसिक : वेधकाल में मानसिक आरोग्य पर भी परिणाम होता है । मानसोपचार तज्ञों का कहना है कि कुछ लोगों को निराशा आना, तनाव बढना इत्यादि मानसिक कष्ट भी होते हैं ।

२ ई ३. उपाय : वेधारंभ से ग्रहण समाप्त होने तक नामजप, स्तोत्रपठण, ध्यानधारणा इत्यादि धार्मिक कार्य में मन लगाने पर लाभ होता है ।

२  उ.  ग्रहण के कृत्य  : ग्रहण स्पर्श होते ही स्नान  करें । पर्वकाल में देवपूजा, तर्पण,  श्राद्ध, जप, होम  एवं दान करें । पहले के किसी कारणवश खंडित हुए मंत्र का पुरश्‍चरण का आरंभ इस कालावधि में करने से उसका अनंत गुना फल मिलता है । ग्रहणकाल में (पर्वकाल में) निद्रा, मल-मूत्रविसर्जन, अभ्यंग (संपूर्ण शरीर को गुनगुना तेल लगाकर, वह  शरीर के भीतर जानेतक मर्दन (मालिश) करना), भोजन, खाना-पीना और कामविषयसेवन कर्म न करें । अशौच के रहते ग्रहणकाल में ग्रहणसंबंधी स्नान एवं दान करने तक शुद्धि होती है । ग्रहणमोक्ष के उपरांत स्नान करना चाहिए ।

२ ऊ. ग्रहण का राशि के अनुसार फल

२ ऊ १. शुभ फल : मेष, सिंह, वृश्‍चिक एवं मीन

२ ऊ २. अशुभ फल : मिथुन, तुला, मकर एवं कुंभ

२ ऊ ३. मिश्र फल : वृषभ, कर्क, कन्या एवं धनु

जिन राशियों का अशुभ फल है, वे लोग एवं गर्भवती महिलाएं चंद्रग्रहण न देखें ।’ (संदर्भ : दाते पंचांग)

– श्रीमती प्राजक्ता जोशी (ज्योतिष फलित विशारद), महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय, ज्योतिष विभाग, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (२२.६.२०१८)

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