महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की ओर से परात्पर गुरु डॉ. आठवले लिखित यदि पशु-पक्षी आध्यात्मिक स्पंदन पहचान सकते हैं, तो मनुष्य क्यों नहीं पहचान सकता ? इस विषय पर शोधप्रबंध प्रस्तुत

मेक्सिको में ‘धर्ममीमांसा तथा पंथ के बीच
पशुओं का स्थान’ इस विषय पर अंतर्राष्ट्रीय परिषद

मेक्सिको – यहां १७ से २४ जनवरी २०१८ को ‘धर्ममीमांसा तथा पंथ के बीच पशुओं का स्थान (एनिमल्स इन थिओलॉजी एण्ड रिलीजन)’ इस विषय पर मायंडींग  निमल्स इंटरनॅशनल इन कॉर्पोरेटेड ने अंतर्राष्ट्रीय परिषद का आयोजन किया था । इस परिषद में २० जनवरी को महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की ओर से ‘यदि पशु-पक्षी आध्यात्मिक स्पंदन पहचान सकते हैं, तो मनुष्य क्यों नहीं पहचान सकता ?’ (इफ एनिमल्स कॅन परसिव स्पिरिच्युअल वायब्रेशन्स, वाय कान्ट हयूमन्स ?) इस विषय पर विश्वविद्यालय के संस्थापक परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी तथा सहलेखक पू. डॉ. मुकुल गाडगीळ द्वारा लिखा गया शोधप्रबंध मेक्सिको की साधिका कु. मारीआला ने प्रस्तुत किया ।

शोधप्रबंध प्रस्तुत करते हुए कु. मारीआला ने व्यक्त किए कुछ निश्चित सूत्र

१. वर्ष २००४ में सुनामी आने से कुछ घंटे पूर्व पशु-पक्षियों ने समुद्रसपाटी से अधिक ऊंचाई के क्षेत्र में सहारा प्राप्त किया था । इस प्राकृतिक आपदा में १४ देशों के साधारण २ लाख से अधिक व्यक्तियो की मृत्यु हुई; किन्तु उसकी तुलना में पशु-पक्षियों की मृत्यु की मात्रा अत्यंत अल्प थी । इससे यह प्रश्न उत्पन्न होते हैं कि, पशु-पक्षियों में ऐसी कौनसी क्षमता है, जो मनुष्य के समझ में नहीं आती; किन्तु पशु-पक्षियों के ध्यान में आती है ? उनमें उपस्थित निसर्ग के परिवर्तन के संदर्भ में होनेवाली सजगता के कारण अथवा सूक्ष्म का पहचानने की क्षमता के कारण या इन दोंनों के कारण उनके ध्यान में आता है ?

२. त्सुनामी तथा उसी प्रकार की कुछ अन्य घटनाओं के कारण पशु-पक्षियों में आध्यात्मिक स्पंदन पहचानने की क्षमता के संदर्भ के संशोधन करने की महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय को प्रेरणा प्राप्त हुई । यदि आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखते हैं, तो सत्त्व, रज तथा तम यह त्रिगुण विश्व के प्रत्येक वस्तु के महत्त्वपूर्ण घटक हैं । पशु-पक्षियों को सूक्ष्म का पहचनने की क्षमता के कारण ये स्पंदन ध्यान में आएं ।

३. सात्त्विक पशु-पक्षी सात्त्विक, तो असात्त्विक पशु-पक्षी असात्त्विक संगीत, खाद्यपदार्थ, वस्तु, वास्तु तथा व्यक्ति को चुनते हैं । साथ ही असात्त्विक पशु-पक्षियों को सात्त्विक वातावरण में तथा सात्त्विक पशु-पक्षियों को असात्त्विक वातावरण में अधिक कालावधी के लिए रहना असभंव रहता है । यह संशेधन कुत्ता, गाय, घोडा, ससा, इत्यादि प्राणी तथा मुर्गा, पोपट इत्यादि पक्षियों के संदर्भ में महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय द्वारा किए गए विशेष संशोधन में स्पष्ट हुआ है ।

४. गोवा के सनातन आश्रम में निरंतर आनेवाली एक गाय सनातन के दक्षिण भारत के सेवाकेंद्र में मुक्त संचार करनेवाला मोर, अन्यथा व्यक्तियो से दूर रहनेवाली; किन्तु सनातन आश्रम में साधकों के सहवास में सहजता से विचरण करनेवाले तितलियां, सात्विक तथा असात्त्विक वस्तुओं के बीच होनेवाला अंतर पहचान कर सात्त्विक वस्तुओं को चुननेवाला पोपट इत्यादि का चित्रीकरण भी उपस्थितो को दिखाया गया ।

५. पशु-पक्षियों के अनुसार मनुष्य में भी सूक्ष्म स्पंदन पहचानने की क्षमता जन्म से ही रहती है; किन्तु व्यावहारिक बातों पर अधिक ध्यान केंद्रित करने के कारण वह इस क्षमता को खो चुका है । नियमित रूप से आध्यात्मिक साधना करने के पश्चात् वह यह क्षमता पुनः प्राप्त कर सकेगा तथा उससे उसे आसपास का विश्व व्यापक दृष्टिकोण से अधिक अच्छी तरह से समझने की क्षमता प्राप्त होगी ।

क्षणिकाएं

१. शोधप्रबंध प्रस्तुत करनेवाली कु. मारीआला विदेशी है; किन्तु भारतीय संस्कृति का आध्यात्मिक स्तर पर होनेवाला महत्त्व ध्यान में आने के कारण शोधप्रबंध प्रस्तुत करते समय उन्होंने साडी परिधान की थी ।

२. जब कु. मारीआला यह शोधप्रबंध प्रस्तुत कर रही थी, उस समय भूकंप की घंटी बजी; इसलिए त्वरित सभागृह से सभी को सुरक्षित स्थान पर जाना पडा । कुछ देर पश्चात् परिस्थिति देखकर सभी पुनः सभागृह में आएं तथा तत्पश्चात् कु. मारीआला ने उनका प्रस्तुतीकरण पुनः आरंभ किया । इस प्रकार १५ मिनटों के प्रस्तुतीकरण में कुल मिलाकर ३ बार हुआ । शोधप्रबंध प्रस्तुत करते समय आनेवाली बाधाओं के कारण आयोजकों ने कु. मारीआला को २२ जनवरी को पुनः एक बार शोधप्रबंध प्रस्तुत करने की संधी दी ।

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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