तथाकथित साधु-संत तथा गुरु के संदर्भ में सनातन संस्था तथा हिन्दू जनजागृति समिति द्वारा भविष्य में किया जानेवाला कार्य

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के तेजस्वी विचार

सनातन संस्था गत १८ वर्षों से सत्संगों के माध्यम से हिन्दुओं को साधना की ओर मुड रही है । हिन्दू जनजागृति समिति गत १५ वर्ष हिन्दु तथा हिन्दूत्वनिष्ठ संगठनों को राष्ट्र एवं धर्म की रक्षा हेतु इकठ्ठा कर रही है । संस्था तथा समिति का भविष्य का कार्य तथाकथित साधु-संत एवं गुरु के संदर्भ में भी होगा । इस का कारण यह है कि, तथाकथित साधु-संत एवं गुरु की सद्यस्थिती !  – परात्पर गुरु डॉ. आठवले

परात्पर गुरु डॉ. आठवले

१. तथाकथित साधु-संत एवं गुरु की सद्यस्थिती

१ अ. अज्ञान

१. तथाकथितों में अध्यात्म के अभ्यास का अभाव रहता है तथा उनमें सीखने की वृत्ति भी नहीं होती; इसलिए उनका ज्ञान अत्यंत न्यून रहता है । अतः उनके मार्गदर्शन के समय लिखने जैसा कोई भी न होने के कारण उनके भक्त भी कुछ भी नहीं लिखते ।

२. अध्यात्म सूक्ष्म विषय का, अर्थात् पंचज्ञानेंद्रिय, मन तथा बुद्धी से दूर का शास्त्र है; किंतु दुःख की बात यह है कि, तथाकथितों को सूक्ष्म का ज्ञान ही नहीं होता ।

२ अ. अहंभाव

मुझे सब समझता है, मैं सभी अडचनें दूर कर सकता हूं, ऐसा उन्हें प्रतीत होता है । अहंभाव होनेवाली व्यक्ति क्या कभी ईश्वर के पास जा सकती है ? साधक की भक्ति के कारण ईश्वर साधु-संतों का रूप लेकर उन्हें अनुभूति देता है । ऐसा होते हुए भी स्वयं में अतंर्भूत अहंभाव के कारण तथाकथित सभी को बताते हैं तथा उनके भक्त को भी बताने के लिए कहते हैं कि, ‘मेरे कारण साधक को अनुभूति आई है ।’

२ आ. तथाकथितों के नाम

अधिकांश तथाकथितों के नाम ब्रह्मानंद, नित्यानंद, परमानंद, तुरियानंद, १०८ श्री श्री इस प्रकार होते हैं; विंâतु ये नाम उनके व्यक्तिमत्त्व को शोभा नहीं देते; क्योंकि उन्हें उनके नामानुसार अनुभूति नहीं आती । जिस प्रकार बालकों के श्रीकृष्ण, राम, लक्ष्मी, पार्वती इत्यादि नाम रहते हैं, उसीप्रकार तथाकथितों के नाम अर्थहीन रहते हैं; किंतु भक्तों के यह बात ध्यान में न आने के कारण वे उनके नाम से उनकी ओर आकर्षित होते हैं तथा उन्हें महान समझते हैं ।

 

२ इ. तथाकथितों की दाढी, मूंछ, तथा भगवे वस्त्रों के कारण अधिकांश भक्त उनकी ओर आकृष्ट होकर उन्हे पसंत करते हैं ।

 

२ ई. भक्तों से प्रीतिशून्य आचरण

प्रीति के कारण परमेश्वर भक्तों के साथ महाराज की अनुसार आचरण करने की अपेक्षा पिता के अनुसार आचरण करता है । ईश्वर का सब से महत्त्वपूर्ण गुण प्रीति, अर्थात् निरपेक्ष प्रेम; किंतु तथाकथितों में उसी का अभाव रहने के कारण वे ईश्वर से अधिकांश दूर जाते हैं । ऐसे समय क्या उन्हें भक्तों का भला (अच्छा) करना संभव होगा ?

 

२ उ. अनुचित मार्गदर्शन

तथाकथितों के पास आनेवाले उनके संप्रदाय की साधना उपयुक्त है अथवा नहीं, इसका विचार करने की अपेक्षा उन्हें ज्ञात होेनेवाली उनके संप्रदाय की केवल तााqत्त्वक जानकारी देते हैं, साथ ही भक्तों द्वारा साधना का प्रायोगिक हिस्सा भी नहीं करवाया जाता । अतः भक्तों की साधना तथा जीवन के मूल्यवान वर्ष व्यय होते हैं ।

३. कार्य की फलनिष्पत्ती

उपर्युक्त दोषों के कारण तथाकथितों के तथा उनके सम्मेलनों की फलनिष्पत्ति शून्य रहती है ।

४. परिणाम

अ. तथाकथितों के कारण हिन्दुओं की परिस्थिती परमावधी की अधोगती की ओर गई है ।

आ. तथाकथितों द्वारा वास्तविक हिन्दु साधु-संतों को तथा हिन्दु धर्म को अपकीर्त किया जा रहा है ।

 

५. तथाकथित कैसे पहचान सकते हैं ?

वास्तविक संतों की ओर सहायता मांगने की आवश्यकता नहीं होती । पात्र व्यक्ति को वे स्वयं ही सहायता करते हैं । इसके विपरित यदि हम तथाकथितों के अहंभाव की रक्षा करेंगे, तो ही वे कुछ मात्रा में सहायता करते हैं ।

 

६. उपाय

६ अ. तात्त्विक

हिन्दु राष्ट्र में वास्तविक संतों को ही स्वयं को महाराज, स्वामी, इत्यादि कहलवाने का अधिकार होगा ! यदि यह उपाधी प्राप्त करना है, तो तथाकथितों को साधना कर अध्यात्म का वह स्तर प्राप्त करना बाध्य होगा ।

६ आ. प्रत्यक्ष कृती

यह साध्य करने के लिए धर्मप्रेमियों ने सर्वत्र के तथाकथितों का अभ्यास करना चाहिए तथा उनके नाम तथा त्रुटियां सनातन संस्था तथा हिन्दू जनजागृति समिति को सूचित करना चाहिए । विषय का अभ्यास तथा साधना न होने के कारण बुद्धिप्रामाण्यवादियों को जो असंभव था, वह हम संभव करेंगे !

– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवलेजी

Leave a Comment