‘कोरोना महामारी के इस कठिन काल में समाज के लोगों को प्रेम से आधार देना’,समष्टि साधना ही है !

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इतनी शीघ्र कोरोना का प्रकोप न्यून होने की संभावना नहीं लग रही । राज्यकर्ता, प्रशासन, वैद्यकीय क्षेत्र ऐसे सर्व संबंधित घटक अपने-अपने ढंग से यह प्रकोप कम करने का प्रयत्न कर रहे हैं । समाज के लोग भयभीत हैं । उसका परिणाम समाजमन पर भारी मात्रा में हो रहा है । कुछ लोग आत्महत्या तक करने की भूमिका अपनाने की सोच रहे हैं । दूरदर्शन की विविध वाहिनियां, समाचारपत्र, ‘वॉट्सप’पर आनेवाले संदेश, पडोसियों से होनेवाला संवाद इत्यादि में प्रतिदिन ‘कोरोना’ विषय ही होता है । इसलिए समाजमन अधिक ही भयभीत हो रहा है । आज समाज को आधार की नितांत आवश्यकता है ।

पू. अशोक पात्रीकर

 

१. ‘भयभीत हुए समाज को प्रेम एवं आधार देने की नितांत आवश्यकता है, यह ध्यान में आना

कुटुंब के सदस्य अथवा सगे-संबंधियों को कोरोना होने की बात सुनकर कुटुंब के अन्य सदस्यों को चिंता होने लगती है । ऐसे समय में रोगी को प्रेम से आधार देने की आवश्यकता होती है । उसे कहना चाहिए ‘तुम अवश्य ठीक हो जाओगे । भगवान तुम्हारे साथ हैं । तुम भगवान का नाम लो । कुछ भी सहायता लगेगी, तो मैं करूंगा ।’ ऐसा प्रेमपूर्वक आधार देने की नितांत आवश्यकता है’, ऐसा ध्यान में आया है । केवल कोरोना होने पर ही नहीं, वैसे भी भयभीत हुए समाज को कोई भी इसप्रकार से आधार दे सकता है । समाज के विविध घटक यदि ऐसा प्रयत्न करेंगे, तो वह भगवान को निश्चित ही अच्छा लगेगा और उससे भी उनकी समष्टि साधना होगी ।

 

२. वैद्य, अधिवक्ता, शिक्षक, उद्योजक एवं
पुजारी समाज के लोगों को आधार देने का प्रयत्न करना चाहिए !

आधुनिक वैद्य रोगियों के लिए भगवान ही होता है । आज समाज में विविध चिकित्सापद्धतियों अनुसार उपचार करनेवाले वैद्य हैं । उन सभी का कोरोना उपचारों की सेवा में भले ही प्रत्यक्ष सहभाग न हो, तब भी वे यह सेवा कर सकते हैं । ऐसे वैद्य उनके पास सदैव आनेवाले रोगी अथवा परिसर की जनता को आधार देने की सेवा कर सकते हैं । ऐसे ही प्रयत्न अधिवक्ता अपने पक्षकार, अन्य अधिवक्ता अथवा परिचितों के लिए कर सकते हैं । शिक्षक उनके सहकारी एवं विद्यार्थियों के लिए ‘ऑनलाईन’ वर्ग लेते समय भी यह सेवा कर सकते हैं । मंदिर के पुजारी अथवा विश्वस्तों के मंदिर में आनेवाले भक्तों के लिए ‘ऑनलाईन’ बैठक लेकर अथवा व्यक्तिगत संपर्क कर उन्हें आधार दे सकते हैं । उद्योजक उनके कामगारों के लिए भी ऐसे प्रयत्न कर सकते हैं ।

 

३. सेवाभाव से अथवा कर्तव्य समझकर निरपेक्षता से
लोगों को आधार देने का प्रयत्न करनेवालों की उस कृति से समष्टि साधना होती है ।

आज केवल विविध घटकों के लोग ही नहीं, अपितु प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य है । आज समाज में अनेक समाजसेवी संस्थाएं हैं । ‘भगवान ने समाजसेवा का यह अवसर दिया है’, ऐसा भाव रखकर वे यह सेवा कर सकते हैं । यह सर्व निरपेक्षभाव से करने पर उससे उनकी साधना होनेवाली है । यह सेवा करनेवालों को अन्यों को निरपेक्षता से सहायता करने का आनंद मिलेगा और समाज की भगवान और अध्यात्म पर श्रद्धा बढने में सहायता होगी ।

 

४. सनातन संस्था एवं हिन्दू जनजागृति समिति समाज को दे रही है आधार !

‘समाज के लोगों को मानसिक बल मिले’, इस हेतु दी जानेवाली स्वसूचना सनातन संस्था द्वारा दैनिक ‘सनातन प्रभात’में प्रकाशित की गई हैं । सनातन संस्था एवं हिन्दू जनजागृति समिति ‘तनावमुक्ति के लिए साधना की आवश्यकता’, इसके साथ ही ‘आपातकाल में साधना की आवश्यकता’, ऐसे विषयों पर प्रवचन आयोजित करती है । समाज के लोग उसका भी लाभ उठा सकते हैं ।

परात्पर गुरु डॉक्टरजी द्वारा सुझाए ये शब्दसुमन उनके श्रीचरणों पर कृतज्ञताभाव एवं शरणागतभाव से समर्पित करता हूं ।’

– पू. अशोक पात्रीकर, धर्मप्रचारक सनातन संस्था.
संदर्भ : दैनिक सनातन प्रभात

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