श्रवणभक्ति द्वारा संगीत का स्वाद चखनेवाले रसिक भक्त खरे अर्थ में जीवनमुक्त हो सकता है !

भगवान के प्रति उत्कट भाव जागृत होने के कारण संतों द्वारा स्वच्छंद रचे हुए ‘अभंग’ ये उत्स्फूर्तता से होनेवाली कला के आविष्कार का मूर्त अथवा साकार उदाहरण है ।

परात्पर गुरु डॉ. आठवलजी ने वादनकला के माध्यम से ईश्वरप्राप्ति की एक अमूल्य संधि दी है !

स्थूल रूप से भारतीय वाद्यों की अपेक्षा पश्चिमी वाद्य अधिक प्रगतिशील प्रतीत होते हैं किंतु सूक्ष्म रूप से देखने पर उसका परिणाम अच्छा नहीं होता । एक कार्यक्रम में इसका प्रयोग किया गया था ।

कलास्वतंत्रता के नाम पर देवी-देवताओं का अनादर करनेवाले धर्मविरोधी !

अनेक देवी-देवताओं के नग्न एवं अश्लील चित्र बनाए हैं । इन चित्रों की बिक्री कर, करोडों रुपये कमाए । ‘हिन्दू जनजागृति समिति’ को इसकी जानकारी मिलते ही उसने इस विषय में जगह-जगह आंदोलन किए

गोटिपुआ

‘नृत्य,’ यह चौंसठ कलाओं में से एक कला है । भारत के विविध प्रांतों में विविध प्रकार की नृत्यकलाएं देखने मिलती हैं । उनमें से ‘गोटिपुआ’ ओडिशा का एक नृत्य है ।

वेदना घटाने और एकाग्रता बढाने में संगीत उपयुक्त है ! – ब्रिटिश विद्यापीठ का संशोधन

ब्रिटन के ‘एंग्लिया रस्किन युनिवर्सिटी’ द्वारा किए शोध के अनुसार स्ट्रोक (आघात) हुए रोगी तथा शारीरिक और मानसिक रोगों पर संगीत उपचारपद्धति (म्युजिक थेरपी) उपयुक्त हो सकती है ।

सरोदवादन, ईश्‍वरप्राप्ति के लिए है तथा वादन करते समय ‘मैं ध्याना कर रहा हूं’, ऐसा भाव रखनेवाले मुम्बई के सुविख्यात सरोदवादक श्री. प्रदीप बारोट !

श्री. प्रदीप बारोट का पूरा परिवार ही संगीतमय है । उनके दादाजी पं. रोडजी बारोट विख्यात सारंगीवादक तथा रतलाम राजघराने के मान्यताप्राप्त संगीतकार थे ।

प्राचीन काल की लकडी से मूर्ति बनाने की अध्यात्मशास्त्रीय पद्धति

‘भारत को ऋषि-मुनियों की महान परंपरा प्राप्त है । ऋषि-मुनियों द्वारा लिखे गए वेद, उपनिषद, पुराण इत्यादि मनुष्य को सर्वांगीण ज्ञान प्रदान करते हैं ।

कलाकारों का कला की ओर देखने का दृष्‍टिकोण, उसके दुष्‍परिणाम और ‘संगीत के माध्‍यम से साधना’ करने की आवश्‍यकता समझ में आना !

‘कला ईश्‍वर की देन है । कला के माध्‍यम से साधना कर ईश्‍वरप्राप्‍ति की जा सकती है ।