प्रायश्चित लेने के लिए बताए गए पातक
जिन पातकों के लिए स्मार्त धर्मशास्त्र में प्रायश्चित बताए गए हैं, वे निम्नानुसार हैं ।
जिन पातकों के लिए स्मार्त धर्मशास्त्र में प्रायश्चित बताए गए हैं, वे निम्नानुसार हैं ।
चाकरी में (नौकरी में) घूस लेना पडता है । न लेने पर ऊपर के एवं नीचे के लोग (वरिष्ठ एवं कनिष्ठ श्रेणी के लोग) बहुत कष्ट देते हैं । ऐसे में मन को बहुत कष्ट होता है । इसके लिए क्या करें ?
धर्मशास्त्र द्वारा निषिद्ध बताए गए कर्म करने से अथवा किसी व्यक्ति द्वारा अपने कर्तव्य न निभाए जाने से जो निर्मित होता है, वह ‘पाप’ है । उदा. चोरी करना, .
मनुष्यजन्म में अधर्माचरण एवं पापाचार कर मनुष्यजन्म का अनुचित उपयोग करने का अर्थ है, ईश्वरीय नियमों के विपरीत व्यवहार करना । जिसका जैसा कर्म होगा, उसके अनुसार ईश्वर उसे न्याय देते हैं; अतः मानव द्वारा होनेवाले अपराध के अनुसार उसे दंड मिलता ही है एवं उसे वह भोगकर ही समाप्त करना पडता है ।
कहीं-कहीं पुजारी उपर्युक्त प्रकार के अनुचित कृत्य करते हैं । इसलिए कुछ लोग पुजारीको पूजा का ‘अरि’, अर्थात शत्रु’ कहते हैं । ऐसे पुजारी अगले जन्म में देवालय के द्वारपर कुत्ता अथवा भिखारी बनकर रहते हैं ।
मनुष्यको पुण्य की मात्रा अनुसार इहलोक में सुखप्राप्ति होती है और अंत में उसी पुण्य के बलपर स्वर्गसुख भी मिलता है । समष्टि पुण्य बढनेपर राष्ट्र आचारविचार संपन्न एवं समृद्ध होता है ।
जीवन कर्ममय है । कर्मफल अटल है । अच्छे कर्म का फल पुण्य है तथा उससे सुख प्राप्त होता है, जबकि बुरे कर्म का फल पाप है और उससे दुःख प्राप्त होता है । पुण्य के निम्न प्रकार हैं …
जीवन कर्ममय है । कर्मफल अटल है । अच्छे कर्म का फल पुण्य है तथा उससे सुख प्राप्त होता है, जबकि बुरे कर्म का फल पाप है और उससे दुःख प्राप्त होता है ।
जो कुछ कियो सो तुम कियो, मैं कुछ कियो नाहीं । कहीं कहो जो मैं कियो, तुम ही थे मुझ माहीं ।। अहं के पूर्णतः अंत होनेपर ऐसा अनुभव होता है
जिस ईश्वर के कारण हम श्वास ले पाते हैं, उनके प्रति केवल शाब्दिक कृतज्ञता व्यक्त करने से पूर्ण लाभ नहीं होता । ईश्वर के प्रति कृतज्ञता हमारे आचरण में दिखाई देनी चाहिए । ईश्वर का नाम सदैव मुख में रहे, ईश्वर के बच्चों का अर्थात समस्त जनों का उद्धार हो, अर्थात ईश्वरप्राप्ति हेतु उन्हें अध्यात्मज्ञान अविरत देने से यह ईश्वर के प्रति सच्ची कृतज्ञता होगी ।