स्वीकारने की वृत्ति कैसे बढाना ?
‘चूक न स्वीकारने के सहस्रों कारण रहते हैं; किन्तु ‘गुरु की कृपा प्राप्त करनी है’, यह एक ही कारण सबकुछ स्वीकारने के लिए पर्याप्त है ।
‘चूक न स्वीकारने के सहस्रों कारण रहते हैं; किन्तु ‘गुरु की कृपा प्राप्त करनी है’, यह एक ही कारण सबकुछ स्वीकारने के लिए पर्याप्त है ।
‘आजकल भारत के साथ अन्य कुछ देशों में भी संक्रमणकारी विषाणु ‘कोरोना’का प्रकोप हुआ है । इसके कारण सर्वत्र का जनजीवन अस्तव्यस्त होकर सर्वसामान्य नागरिकों में भय का वातावरण है ।
उचित कर्म कर प्रारब्ध पर मात करने की एवं अपने साथ ही संपूर्ण सृष्टि को सुखी करने की क्षमता ईश्वर ने केवल मनुष्य को दी है । ऐसा होते हुए भी इस क्षमता का उपयोग अपना स्वार्थ साधने, निष्पाप जीवों पर अन्याय करने, अन्यों पर अधिकार जमाने इत्यादि अधर्माचरण करने से समाज का प्रारब्ध दूषित होता है ।
अधिकांशत: सदैव होनेवाली भूल के लिए प्रायश्चित कर्म है नित्यनैमित्तिक कर्म अर्थात दैनिक पूजा-अर्चना, स्नान-संध्या, व्रत इत्यादि । (इन कर्मों के सन्दर्भ में विस्तृत विवरण सनातन के ग्रंथ कर्म का महत्त्व, विशेषताएं व प्रकार में दिया है ।
कौनसा कर्म पाप अथवा पुण्य निर्माण करता है, यह बताने का अधिकार मात्र धर्मशास्त्र का है; क्योंकि कौनसा कर्म अच्छा है अथवा बुरा, यह निर्धारित करने के लिए अपनी बुद्धि अल्प सिद्ध होती है ।
‘ईश्वर की सृष्टि में एक दाना बोने से उसके सहस्रों दानें मिलेंगे । विश्व की कौनसी बैंक अथवा ऋणको इतना ब्याज देता है ? इसलिए इतना ब्याज देनेवाले ईश्वर का थोडासा तो स्मरण कीजिए । इतनी तो कृतज्ञता होनी दीजिए ।’
साधना में आत्मनिवेदन का विशेष महत्त्व है; क्योंकि इसी माध्यम से हम अद्वैत की भी अनुभूति कर सकते हैं ।
प्रत्येक कृती करते समय सद्गुरु (कु.) अनुराधा वाडेकरजी के द्वारा रखा गया भाव सभी को सिखने के लिए योग्य तथा विशेषतापूर्ण है ।
‘स्वयं में भाव उत्पन्न होना ईश्वरप्राप्ति की तडप, अंतकरण में ईश्वर के प्रति बना केंद्र और प्रत्यक्षरूप से साधना, इन घटकोंपर निर्भर होता है । कृती बदलने से विचार बदलते हैं और विचारों को बदलने से कृती बदलती है’, इस तत्त्व के अनुसार मन एवं बुद्धि के स्तरपर निरंतर कृती करते रहने से भाव शीघ्र होने में सहायता मिलती है ।
व्यक्तिने अपने पूर्वजन्मों में जो कुछ अच्छे कर्म, परोपकार एवं दानधर्म किए होंगे, उसका फल पुण्य के रूप में एकत्र होता है और वह आपको अगले जन्म में सुख के रूप में मिलता है ।