पादसेवन भक्ति
भक्ति की इस पद्धति में भक्त को ईश्वर के सामने नतमस्तक होना, उनके चरणों के पास होना, ईश्वर के सामने मैं कुछ भी नहीं हूं और मेरा कोई अस्तित्व नहीं है, यह भान होता रहता है ।
भक्ति की इस पद्धति में भक्त को ईश्वर के सामने नतमस्तक होना, उनके चरणों के पास होना, ईश्वर के सामने मैं कुछ भी नहीं हूं और मेरा कोई अस्तित्व नहीं है, यह भान होता रहता है ।
जिस प्रकार हम भगवान का स्मरण करते हैं अथवा हमारे जीवन की अच्छी घटनाओं का स्मरण करते हैं, तब हमारे जीवन में एक अलग ही आनंद उत्पन्न होता है । केवल उनका स्मरण करना ही एक शक्ति है, यह हमारे ध्यान में आता है ।
भगवान के स्मरण में सब कुछ है । अन्य सभी बातें, सत्कर्म, दानधर्म, तीर्थयात्रा, पारायण जैसी बातें अन्य अंगों जैसी हैं । इन सभी को अंग माना जाए, तो भगवान का स्मरण प्राण है ।
समर्थ जी ने साधना का मुख्य साधन श्रवण बताया है । अनेक विषयों का श्रवण करें, ऐसा उन्होंने बताया है कर्ममार्ग, ज्ञानमार्ग, सिद्धांतमार्ग, योगमार्ग, वैराग्यमार्ग, विविध व्रत, विविध तीर्थ, विविध दान, विविध महात्मा, योग, आसन, सृष्टीज्ञान, संगीत, चौदह विद्या, चौसंठ कला, यह सब श्रवण करने के लिए बताते हैं ।
‘श्रवणभक्ति’ कहते ही राजा परिक्षित का स्मरण होता है । राजा परीक्षित, अर्जुनपुत्र अभिमन्यु के पुत्र ! राजा परीक्षित धर्मात्मा और सत्यनिष्ठ थे ।
नवविधा भक्ति का श्रवण, कीर्तन यह क्रम सृष्टिक्रम के अनुरूप है । मनुष्य जब जन्म लेता है, तब वह जो सीखना आरंभ करता है, वह श्रवण से सीखता है
सच्चे भक्तों के मन में ईश्वर के स्मरण के अतिरिक्त दूसरी कोई भी इच्छा नहीं होती । वे मोक्षप्राप्ति की इच्छा भी नहीं रखते । भक्तों के हृदय में भक्ति की ज्योत, गुरुकृपा से तथा साधकों के और संतों के सत्संग से सदैव प्रज्वलित रहती है । यही नवविधा भक्ति में पहली भक्ति है श्रवण भक्ति ।
इसलिए यदि हम अपने आसपास सभी में गुण देखने की वृत्ति बढा लें, तो हमें ध्यान में आएगा कि भगवान में अनंत गुण हैं और उन्होंने अपने सभी गुण हमारे आसपास की ही सृष्टि में बिखेर दिए हैं ।
भाव जागृति में कर्तापन को त्याग कर, सब ईश्वर की इच्छा से ही हो रहा है, एसा भाव रखना चाहिए । जैसे मैंने कुछ अच्छा किया, तो यह बुद्धि तो ईश्वर ने ही दी है ।
समर्थ रामदास स्वामीजी ने दासबोध में ‘कीर्तन कैसे होना चाहिए, कीर्तन में कौनसे विषय लेने चाहिए । कीर्तन के लक्षण, महत्त्व एवं फलोत्पत्ति’ के संदर्भ में अत्यंत सुंदरता से बताया है ।