स्वभावदोष-निर्मूलन सारणी का स्वरूप एवं लिखने की पद्धति

१. स्वभावदोषोंका चयन १ अ. ‘स्वभावदोष सारणी’से तीव्र स्वभावदोष पहचानें प्रत्येक में अनेक स्वभावदोष होते हैं। जो स्वभावदोष तीव्र हैं, उन्हें पहले दूर करना महत्त्वपूर्ण है। तीव्र स्वभावदोष ‘स्वभावदोष सारणी’से पहचानें। मान लो, किसीकी सारणी में ‘आलस्य’ इस दोषसे सम्बन्धित अनेक प्रसंग हों, तो समझ लो कि उसमें ‘आलस्य’ यह दोष तीव्र है । यदि … Read more

मन, संस्कार एवं स्वभाव

आधुनिक मानसशास्त्र के अनुसार मन के दो भाग होते हैं । पहला भाग, जिसे हम ‘मन’ कहते हैं, वह ‘बाह्यमन’ है । दूसरा अप्रकट भाग ‘चित्त (अंतर्मन)’ है । मन की रचना एवं कार्य में बाह्यमन का भाग केवल १० प्रतिशत जबकि अंतर्मन का ९० प्रतिशत है ।

स्वभावदोष (षड्रिपू)-निर्मूलन प्रक्रिया प्रारंभ करने से पूर्व ध्यान देनेयोग्य सूचनाएं

हम इस लेख में स्वभावदोष (षड्रिपू)-निर्मूलन प्रक्रिया में आनेवाली प्रमुख बाधा, सफल प्रक्रिया के लिए आवश्यक गुण एवं स्वभावदोष निर्मूलन प्रक्रियांतर्गत कृति के चरण, यह जानेंगे ।

स्वभावदोष (षड्रिपु)-निर्मूलन प्रक्रिया क्यों महत्त्वपूर्ण है ?

स्वभावदोषों के शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, पारिवारिक, सामाजिक व आध्यात्मिक दुष्परिणामों को दूर कर, सफल व सुखी जीवन जीने हेतु, स्वभावदोषों को दूर कर चित्त पर गुणों का संस्कार निर्माण करने की प्रक्रिया को ‘स्वभावदोष (षड्रिपु)-निर्मूलन प्रक्रिया’ कहते हैं ।

भूतकाल से सीखना, वर्तमान को संवारना और भविष्य में सतर्क रहना, इस त्रिसूत्रीनुसार साधना करें !

साधकों से होनेवाली चूकों अथवा अनुचित विचारों के पीछे उनके स्वभावदोष एवं अहं होते हैं ।

गुरुकृपायोगानुसार करने योग्य साधना का नियम

कर्मयोग, भक्तियोग, ज्ञानयोग आदि किसी भी मार्ग से साधना करने पर भी बिना गुरुकृपा के व्यक्ति को ईश्‍वरप्राप्ति होना असंभव है । इसीलिए कहा जाता है, गुरुकृपा हि केवलं शिष्यपरममङ्गलम् ।,

नामजप कौनसा करें ?

जीवन के दुःखों का धीरज से सामना करने का बल एवं सर्वोच्च श्रेणी का स्थायी आनंद केवल साधनाद्वारा ही प्राप्त होता है । साधना अर्थात् ईश्वरप्राप्ति हेतु आवश्यक प्रयत्न ।

अहं-निर्मूलन

सभी दृष्टिसे परिपूर्ण ईश्वरकी शरणमें जाकर अहं-निर्मूलनकी प्रक्रिया शास्त्रशुद्धरूपसे कार्यान्वित करनेसे अपने जीवनविषयक दृष्टिकोणमें हुआ आमूल परिवर्तन हमें सुखी वैवाहिक जीवन दे सकता है !