दान और अर्पण का महत्त्व एवं उसमें भेद

‘पात्रे दानम् ।’ यह सुभाषित सर्वविदित है । दान का अर्थ है ‘किसी की आय और उसमें से होनेवाला व्यय घटाकर, शेष धनराशि से सामाजिक अथवा धार्मिक कार्य में योगदान ।’

त्याग : अर्पण का महत्त्व

हिन्दु धर्म ने त्याग ही मनुष्य जीवन का मुख्य सूत्र बताया है । अर्पण का महत्त्व ध्यान में आने के पश्चात् अपना समर्पण का भावजागृत होकर किए गए अर्पण का अधिक लाभ प्राप्त हो सकता है । उसके लिए अर्पण का महत्त्व स्पष्ट कर रहे हैं ।

सत् के लिए त्याग

६० प्रतिशत स्तरतक पहुंचनेपर खरे अर्थमें त्यागका आरंभ होता है । आध्यात्मिक उन्नति हेतु तन, मन एवं धन, सभीका त्याग करना पडता है । पदार्थविज्ञानकी दृष्टिसे धनका त्याग सबसे आसान है, क्योंकि हम अपना सारा धन दूसरोंको दे सकते हैं; परंतु अपना तन एवं मन इस प्रकार नहीं दे सकते । फिर भी व्यक्ति प्रथम उनका त्याग कर सकता है अर्थात तनसे शारीरिक सेवा एवं मनसे नामजप कर सकता है ।