अहं के घटने पर आध्यात्मिक उन्नति के लक्षण एवं कुछ प्रेरणादायी अनुभूतियां

जो कुछ कियो सो तुम कियो, मैं कुछ कियो नाहीं । कहीं कहो जो मैं कियो, तुम ही थे मुझ माहीं ।। अहं के पूर्णतः अंत होनेपर ऐसा अनुभव होता है

अहं को दूर करने के उपाय

जिस ईश्वर के कारण हम श्वास ले पाते हैं, उनके प्रति केवल शाब्दिक कृतज्ञता व्यक्त करने से पूर्ण लाभ नहीं होता । ईश्वर के प्रति कृतज्ञता हमारे आचरण में दिखाई देनी चाहिए । ईश्वर का नाम सदैव मुख में रहे, ईश्वर के बच्चों का अर्थात समस्त जनों का उद्धार हो, अर्थात ईश्वरप्राप्ति हेतु उन्हें अध्यात्मज्ञान अविरत देने से यह ईश्वर के प्रति सच्ची कृतज्ञता होगी ।

अहं को घटाने हेतु साधना के महत्त्वपूर्ण घटक क्या हैं ?

दैनिक जीवन के सर्व कामकाज को सेवा के रूप में ही करने का प्रयत्न करें, उदाहरणार्थ‘ अपने कपडे इस्त्री करना भी गुरु सेवा ही है’, ऐसा भाव रहेगा तो सेवावृत्ति बढाने में सहायता मिलेगी । ‘मैं सेवक हूं’, यह भाव जितना अधिक होगा, उतनी मात्रा में अहं भी शीघ्र घटेगा ।

अहं के कारण क्या हानि होती है और इसे नष्ट करना महत्त्वपूर्ण क्यों है ?

अहं जितना अधिक होगा, व्यक्ति उतना ही दुःखी होगा । मानसिक रोगियों का अहं सामान्य व्यक्ति की तुलना में अधिक होता है; इसलिए वे अधिक दुःखी होते हैं ।

अहं के प्रकार एवं निर्मिति

धन एवं लोकैषणा के कारण अर्थात संपत्ति, पद, अधिकार, राज्य इत्यादि की प्राप्ति से अहं बढता है, उदाहरणार्थ हिरण्यकश्यप एवं रावण, राज्यप्राप्ति के उपरांत मदोन्मत्त हो गए । फल की अपेक्षा रखने से अहं आता है ।

अहं किसे कहते हैं एवं अहं-निर्मूलन का क्या महत्त्व है ?

अहं, खेत में उगनेवाली घास समान है । जब तक उसे जड सहित उखाड न दिया जाए, तबतक खेत की उपज अच्छी नहीं हो पाती । घास को निरंतर काटते रहना आवश्यक है । उसी प्रकार, अहं को पूर्णतः नष्ट किए बिना उत्तम उपज अर्थात परमेश्वरीय कृपा संभव नहीं ।

गुरुकृपायोगानुसार साधना करनेवाले साधकों की मृत्यु के समय एवं मृत्यु के पश्चात प्रगति

गुरुकृपायोग के अनुसार ६० प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर से अधिक उन्नत जीवों का पुनर्जन्म नहीं होता; क्योंकि वह सभी दृष्टि से शिक्षित होता है । व्यष्टियोग में ७० प्रतिशत से आगे पुनर्जन्म नहीं होता, परंतु समष्टियोग में (गुरुकृपायोग में) ईश्वर से अपनेआप अधिक सहायता मिलने के कारण ६० प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर पर ही शिक्षित अवस्था प्राप्त हो जाती है । इसलिए ऐसा शिक्षित जीव पुनः भूतल पर जन्म नहीं लेता ।

गुरुकृपायोग एवं अन्य साधनामार्गों के बारे में कुछ प्रश्न

किसी भी योग से साधना करने पर स्थूल एवं प्राणदेह की अधिकतम शुद्धि २० से ३० प्रतिशत हो सकती है । अत: इन देहों का त्याग किए बिना स्वर्गलोक अथवा अगले लोकों में प्रवेश नहीं किया जा सकता । गुरुद्वारा बताई गई साधना करने से साधना में बाधाएं अल्प आती हैं । इससे साधना में शीघ्र उन्नति होती है ।