जीवन तथा साधना की भी हानि करनेवाले भय को मिटाने के लिए श्रीमती श्‍वेता क्लार्क के प्रयत्न और उन्हें श्रीकृष्ण से मिली सहायता

जनवरी २०१५ में स्पिरिचुुअल साइन्स रिसर्च फाउण्डेशन (एस.एस.आर.एफ.) की ओर से आयोजित कार्यशाला में पूज्य लोलाजी, पूज्य सिरियाक, कुमारी एना ल्यु और श्री मिलुटीन से मिले मार्गदर्शन के कारण मैं भय लगने के मूल तक पहुंची और उसकी व्याप्ति ढूंढकर बही में लिख सकी ।

गोपीभाव एवं कृष्णभाव

गोपीभाव का अर्थ है श्रीकृष्णमिलन की तडप अथवा श्रीकृष्णमिलन की आर्तता और कृष्णभाव का अर्थ है केवल शुद्ध आनंद । कलियुग में यह दोनों बातें अत्यंत ही दुर्लभ हो गई हैं ।

सनातन के सभी आश्रमों एवं प्रसारसेवा में सक्रिय साधकों को भावविश्‍व में ले जानेवाले रामनाथी, गोवा के सनातन आश्रम में होनेवाले भावसत्संग !

भाव उत्पन्न करने के लिए किए जानेवाले ऐसे प्रयोगों से साधक अंतर्मुख बनता है । साथ ही, थोडे समय के लिए ही क्यों न हो; वह भावस्थिति का अनुभव करता है । साधक के अंतर्मन में उभरनेवाली प्रतिक्रियाएं, स्वभावदोष एवं अहं के विचार, बाहर आने लगते हैं और उसका मन निर्मल होने लगता है ।

भावुकता, को नियंत्रित करने हेतु सदगुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी का मार्गदर्शन !

किसी प्रसंग में मन भावुक हो जाता है और रोना आता है । तब मन की बहुत ऊर्जा का अपव्यय होता है । इसका परिणाम सेवा पर भी होता है । सेवा की अवधि घट जाती है ।

सर्वत्र बढते जा रहे ‘कोरोना’के प्रकोप के कारण भयभीत न होकर निम्‍नांकित स्‍वसूचनाएं देकर आत्‍मबल बढाएं !

‘आजकल भारत के साथ अन्य कुछ देशों में भी संक्रमणकारी विषाणु ‘कोरोना’का प्रकोप हुआ है । इसके कारण सर्वत्र का जनजीवन अस्तव्यस्त होकर सर्वसामान्य नागरिकों में भय का वातावरण है ।

कृतज्ञताभाव

‘ईश्वर की सृष्टि में एक दाना बोने से उसके सहस्रों दानें मिलेंगे । विश्व की कौनसी बैंक अथवा ऋणको इतना ब्याज देता है ? इसलिए इतना ब्याज देनेवाले ईश्वर का थोडासा तो स्मरण कीजिए । इतनी तो कृतज्ञता होनी दीजिए ।’

आत्मनिवेदन भक्ति

साधना में आत्मनिवेदन का विशेष महत्त्व है; क्योंकि इसी माध्यम से हम अद्वैत की भी अनुभूति कर सकते हैं ।

साधिका द्वारा भावजागृति हेतु किए गए प्रयास

‘स्वयं में भाव उत्पन्न होना ईश्वरप्राप्ति की तडप, अंतकरण में ईश्वर के प्रति बना केंद्र और प्रत्यक्षरूप से साधना, इन घटकोंपर निर्भर होता है । कृती बदलने से विचार बदलते हैं और विचारों को बदलने से कृती बदलती है’, इस तत्त्व के अनुसार मन एवं बुद्धि के स्तरपर निरंतर कृती करते रहने से भाव शीघ्र होने में सहायता मिलती है ।