रसोईघर कैसा हो ?

अन्न खुला न रखें, अन्न को ढककर रखें । स्थूलरूप से अन्न की रक्षा हेतु, अन्न में कोई जीव-जंतु न जाए आदि कारणों से हम उसे ढककर रखते हैं । स्थूल के साथ सूक्ष्मरूप से भी अन्न की रक्षा हो, इसके लिए उ से ढकना आवश्यक है ।

पानी की शक्ति पहचानकर उसका पूर्ण उपयोग करें !

हमारे तीर्थक्षेत्र अथवा नदियों के कुंड अथवा देवालय में दिया जानेवाला तीर्थ अथवा भोजन से पूर्व पानी से ५ बार ली जानेवाली अपोष्णी आदि सब कुछ हिन्दू संस्कृति ने प्राचीन काल से पानी की असीमित और जीवित शक्ति के अध्ययन से ही हम तक पानी का महत्त्व और लाभ पहुंचाने के लिए तैयार किए हैं ।

भोजन बनाते समय विविध कृतियों में कैसा भाव रखें ?

कहते हैं ‘जैसा अन्न, वैसा मन’। अर्थात भोजन बनाते समय हमारे मन में जैसा भाव होगा, वैसा ही भाव खानेवाले के मन में भी निर्माण होता है । यदि हम भावपूर्ण भोजन बनाएंगे, तो वह भोजन प्रसाद स्वरूप होगा । इसलिए अब हम अपनी रसोई बनाते समय कैसा भाव रखेंगे, यह देखते हैं ।

रसोई के संदर्भ में पुछे जानेवाले प्रश्न

दूध पूर्णान्न है; क्योंकि दूध को सगुण चैतन्य का स्रोत माना गया है । जो घटक सत्त्वगुण के माध्यम से कार्य कर दूसरों के लिए कल्याणकारी सिद्ध होते हैं, उन्हें ‘सात्त्विक’ कहा जाता है ।

तरकारी काटनेकी उचित पद्धति

तरकारी धोनेके उपरांत काटना आरंभ करें । उसे जलसे धोते समय उसमें कुछ मात्रामें सात्त्विक अगरबत्तीकी विभूति मिलाएं । तरकारी अधिक समयतक पानीमें भिगोए रखनेसे उसमें विद्यमान ‘ब’ और ‘क’ जीवसत्त्व घटते हैं ।

घरमें संग्रहित अनाजकी आध्यात्मिक देखभाल कैसे करें ?

आजकल सभी स्थानोंपर काली शक्तिका आवरण बढ गया है । इसलिए घरके अनाजपर भी आवरण आता है । उनपर आवरण न आए, इसलिए घरमें रखे अनाजके संग्रहके निकट किसी देवताकी सात्त्विक नामजप-पट्टी रखें ।

भोजन बनाने के लिए एल्युमिनियम अथवा हिंडालियम के बरतनों का उपयोग न करें !

एल्युमिनियम अथवा हिंडालियम के बरतन शरीर के लिए हानिकारक है । भोजन बनाने के लिए मिट्टी के बरतनों का उपयोग करने से शरीर के लिए आवश्यक खनिज भोजन के माध्यम से मिलते हैं ।