गर्मियों में त्वचा का ध्यान रखने के विषय में कुछ उपाय एवं लिया जानेवाला आहार !

गर्मियों के महीने में अपनी त्वचा की अच्छी देखभाल करने से गर्मियों में होनेवाली हानि टाल सकते हैं । इससे अपनी त्वचा को दीर्घकाल दागमुक्त एवं युवा रखने में सहायता होगी । इस विषय में कुछ सूचनाएं यहां दे रहे हैं ।

त्वचा के दाद-खाज संक्रमण पर (‘फंगल इन्फेक्शन’पर) आयुर्वेद के उपचार

जांघ, कांख, नितंब (कुल्हे) इत्यादि भागों पर जहां पसीने से त्वचा गीली रहती है, वहां कई बार खुजली होने लगती है । फिर छोटी-छोटी फुंसियां आ जाती हैं जो गोलाकार में फैलती जाती हैं और उससे चकत्ते चकंदळे निर्माण होते हैं । इन चकत्तों के किनार उभरे, लालिमा एवं फुंसियों से युक्त और केवल मध्यभाग में सफेद एवं रूसीयुक्त दिखाई देते हैं ।

क्या सतत आनेवाली छींकों से त्रस्त (परेशान) हैं ?

छींकें आने का कारण प्रत्येक बार कोरोना ही होता है’, ऐसा नहीं है । रात्रि की ठंडी हवा के कारण नाक बंद होना, यह भी एक प्राथमिक कारण हो सकता है । ठंडी हवा के कारण नाक की अस्थीविवरों से (सायनस से) प्रवाहित होनेवाला द्रव जमा हो जाता है ।

वर्षाऋतु एवं दूध

वर्षा में पौष्टिक आहार के रूप में दूध के स्थान पर सूखा मेवा, मूंगफली अथव चने खाएं । यह भोजन के उपरांत तुरंत ही अल्प मात्रा में खाएं । देसी घी, दही एवं मठ्ठा जैसे दुग्धजन्य पदार्थ भोजन करते समय भूख की मात्रा में सेवन करें ।’

चालिस के उपरांत घुटनों में वेदना न हो, इसलिए घुटनों पर नियमित तेल लगाएं !

‘चालीस वर्ष की आयु होने के पश्चात आरोग्य की विविध समस्याएं होने लगती हैं । इनमें अनेक लोगों को सतानेवाली समस्या है घुटनों में वेदना । घुटनों में वेदना न हो अथवा वह सुसह्य हो, इसलिए चालीस के उपरांत प्रत्येक को ही प्रतिदिन दिन में कम से कम एक बार घुटनों में तेल लगाना चाहिए … Read more

सोंठ डालकर उबाले हुए पानी में खमीर उठने पर उसका उपयोग न करें !

वर्षाकाल में, सर्दियों के दिनों में, इसके साथ ही वसंत ऋतु में (सर्दियों एवं गर्मियों के बीच के काल में) सोंठ का पानी पीने से स्वास्थ्य अच्छा रहता है । सोंठ का पानी बनाने के लिए लोटे भर पानी में एक पाव चम्मच सोंठ की चूर्ण डालकर पानी उबालें और छान लें । प्यास लगने … Read more

तीखा न खाने पर भी कुछ लोगों को पित्त का कष्ट क्यों होता है ?

‘अपने जठर में पाचक स्राव का रिसाव होता रहता है । इस पाचक स्राव के अन्ननलिका में आने पर, पित्त का कष्ट होता है । खट्टा, नमकीन, तीखा और तैलीय पदार्थ खाने से पित्त बढता है; परंतु ऐसा कुछ न खाते हुए भी कुछ लोगों को गले में और छाती में जलन होती है, अर्थात … Read more

शरीर निरोगी रहने के लिए अयोग्य समय पर खाना टालें !

क्या आयुर्वेद में चटपटा एवं स्वादिष्ट खाना मना है ? इसका उत्तर है नहीं ! इसके विपरीत रुचि लेकर खाने से संतोष होता है ।

साधना अच्छी होने के लिए आयुर्वेद के अनुसार अभ्यास करने की आवश्यकता

मनुष्यजन्म बहुत पुण्य से मिलता है । साधना कर ईश्वरप्राप्ति करने में ही मनुष्यजन्म की सार्थकता है । शरीर निरोगी होगा, तो साधना करना सरल हो जाता है ।