संत मुक्ताबाई !

संतश्रेष्ठ ज्ञानेश्वर महाराज की बहन संत मुक्ताबाई ने जलगांव जिले के एदलाबाद (आज का मुक्ताईनगर) में समाधि ली थी । मुक्ताबाई का जन्म इंद्रायणी नदी के तट पर बसे आळंदी गांव के निकट सिद्धबेट पर अश्विन शुद्ध प्रतिपदा शुक्रवार शके १२०१ अर्थात इ. सन. १२७९ में हुआ ।

संतश्रेष्ठ ज्ञानेश्वर महाराज

इनका जीवन अद्वैतरूपी धर्मसिद्धांत प्रस्तुत करनेवाला होता है । अत: इनके जीवन और इनकी मार्गदर्शनात्मक शैली को ब्रह्मरूपी कर्मसिद्धांत प्राप्त हाेने से ये सिद्धांत ब्रह्मवाक्य समान अनुकरणीय हो गए हैं ।

प.पू. भक्तराज महाराज की छायाचित्रात्मक स्मृतियां (भाग १) !

प.पू. भक्तराज महाराज के मध्यप्रदेश स्थित मोरटक्का एवं इंदौर के आश्रमों में जहां उनका वास्तव्य था, उस चैतन्यमयी वास्तु का छायाचित्रात्मक दर्शन लेंगे ।

प.पू. भक्तराज महाराजजी की छायाचित्रात्मक स्मृतियां (भाग २) !

प.पू. भक्तराज महाराज सनातन के संस्थापक परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के गुरु थे । उन्हीं के कृपाशीर्वाद से सनातन की स्थापना हुई । सनातन को प.पू. बाबा के उत्तराधिकारी प.पू. रामानंद महाराज का भी कृपाछत्र मिला । उनके आशीर्वाद से वर्ष १९९१ में स्थापित हुए सनातन के कार्य का विस्तार किसी ‍विशाल वटवृक्ष समान हो गया है । सनातन परिवार प.पू. बाबा के श्रीचरणों में कोटि-कोटि कृतज्ञ है !

महान संत विसोबा खेचर का शिष्य नामदेव को सिखाना

एक बार संत नामदेव महाराजजी से पांडुरंग बोले, ‘‘तुम्हारे जीवन में सद्गुरु नहीं हैं । जब तक तुम पर सद्गुरु की कृपा नहीं होती, तब तक तुम्हें मेरे निराकार सत्य स्वरूप की पहचान नहीं होगी । तुम विसोबा खेचर से जाकर मिलो । वे महान सत्पुरुष हैं । वे तुम्हें दीक्षा देंगे ।

संतश्रेष्ठ ज्ञानेश्वर महाराज एवं संत नामदेव !

संत नामदेव समान प्रिय भक्त की संगत (सत्संग) सभी को मिले; इसलिए ज्ञानेश्वर महाराजजी ने स्वयं पंढरपुर में आकर नामदेव की भेंट ली और वे उनके साथ तीर्थयात्रा के लिए निकले ।

समर्थ रामदास स्वामी का प्रवृत्तिवाद के विषय में मार्गदर्शन

मनुष्य पहले अपना व्यवहार भली-भांति करे और फिर परमार्थ का विचार करे । हे विवेकी जन ! इसमें आलस न करना । प्रपंच को अनदेखा कर यदि तुम परमार्थ साधने का प्रयत्न करोगे, तो तुम्हें कष्ट होगा । यदि तुम प्रपंच और परमार्थ दोनों ठीक से करोगे, तब तुम विवेकी कहलाओगे ।

महाज्ञानी महर्षि पिप्पलाद

पिप्पलाद प्रतिदिन भगवान का ध्यान एवं गुरुमंत्र का जप करने लगा । कुछ ही समय में उस बालक के तप से संतुष्ट होकर भगवान श्रीविष्णु वहां प्रगट हो गएं ।

महान योगी परम तपस्वी अग्निस्वरूप संत प.पू. रामभाऊस्वामी !

तंजावूर (तंजौर), तमिलनाडु के श्री गणेश उपासक एवं समर्थ रामदासस्वामी की परंपरा के महान योगी प.पू. रामभाऊस्वामी ! ईश्वरीय संकेतानुसार वे विविध स्थानों पर यज्ञयाग करते हैं । गत ४० वर्षों से उनका आहार केवल २ केले एवं १ कप दूध है । प.पू. रामभाऊस्वामी की एक विशेषता यह है कि उन्होंने अपनी अखंड योगसाधना से तेजतत्त्व पर प्रभुत्व पा लेने के कारण वे प्रज्ज्वलित यज्ञकुंड में १० से १५ मिनटों तक सहजता से बैठ सकते हैं ।