दक्षिण भारत के कुंभमेला महामहम महोत्सव का इतिहास

ब्रह्मदेव ने नदियों के पाप धोने के लिए उन्हें एकत्रित कुंभकोणम के तालाब में स्नान करने के लिए कहा । तब से इस महोत्सव का आरंभ हुआ ।

अखिल भारतवर्ष के कुंभपर्व का धार्मिक महत्त्व !

कुंभपर्व अत्यंत पुण्यकारी होने के कारण इस पर्व में प्रयाग, हरद्वार (हरिद्वार), उज्जैन एवं त्र्यंबकेश्‍वर-नासिक में स्नान करने से अनंत पुण्यलाभ मिलता है । इसीलिए करोडों श्रद्धालु और साधु-संत यहां एकत्रित होते हैं ।

ब्रह्मा, विष्णु एवं शिवजी का रूप है प्रयागराज का लाखों वर्ष प्राचीन परमपवित्र अक्षयवट !

अमेरिका अथवा अन्य किसी देश में कोई प्राचीन वस्तु मिलनेपर उसका विश्व में ढिंढोरा पीटा जाता है; किंतु अतिप्राचीन अक्षयवट की महिमा संपूर्ण विश्व को गर्व प्रतीत होनेयोग्य होते हुए भी भारत के तत्कालीन कांगेस सरकार ने उसे दर्शन हेतु नहीं खोला ।

विश्‍व का सबसे बडा धार्मिक मेला : कुम्भ मेला

कुम्भ मेला एक प्रकार का धार्मिक मेला है । करोडों हिन्दुओं के जनसमूह की उपस्थिति में संपन्न होनेवाला कुम्भ क्षेत्र का मेला विश्व का सबसे बडा धार्मिक मेला है । कुम्भ मेले में सभी पंथों तथा संप्रदायों के साधु-संत, सत्पुरुष तथा सिद्धपुरुष लाखों की संख्या में एकत्र आते हैं ।

कुंभमेले में विद्यमान कुछ परंपराएं तथा उनका इतिहास !

कुंभपर्व के समय आयोजित धार्मिक सम्मेलन में शस्त्र धारण करने के विषय में निर्णय होकर एकत्रित होने के अखंड आवाहन किया गया ।

कुंभमेलेमें सहभागी होनेवाले विभिन्न अखाडे !

सर्वत्रके कुंभमेलेमें एकत्र होनेवाले सर्व अखाडे उत्तर भारतके हैं । प्रत्येक अखाडेमें महामंडलेश्वर, मंडलेश्वर, महंत जैसे कुछ प्रमुखोंकी श्रेणी होती है । नम्र, विद्वान तथा परमहंस पद प्राप्त ब्रह्मनिष्ठ साधुका चयन इस पदके लिए किया जाता है ।

श्रद्धालुओ, कुंभक्षेत्रकी पवित्रता तथा वहांकी सात्त्विकता बनाए रखनेका प्रयास करें !

कुंभक्षेत्र तीर्थक्षेत्र हैं । वहांकी पवित्रता तथा सात्त्विकता बनाए रखनेका प्रयास करना, यह स्थानीय पुरोहित, देवालयोंके न्यासी तथा प्रशासनके साथ ही वहां आए प्रत्येक तीर्थयात्रीका भी कर्तव्य है ।

हरद्वार (हरिद्वार) स्थित विविध क्षेत्रोंकी महिमा

यह उत्तराखंड राज्यके गंगातटपर बसा प्राचीन तीर्थक्षेत्र है । हिमालयकी अनेक कंदराओं एवं शिलाओंसे तीव्र वेगसे नीचे आनेवाली गंगाका प्रवाह, यहांके समतल क्षेत्रमें आनेपर मंद पड जाता है ।

सिंहस्थ पर्वमें गोदावरीस्नान अत्यंत पवित्र क्यो माना गया है?

६० सहस्त्र वर्ष भागीरथी नदीमें स्नान करनेसे जितना पुण्य मिलता है, उतना पुण्य गुरुके सिंह राशिमें आनेपर गोदावरीमें किए केवल एक स्नानसे प्राप्त होता है ।