प्रभु श्रीराम का जन्म होने के पीछे अनेक उद्देश्य होना !

वाल्मीकि-रामायण के उत्तरकांड के ९१ वें सर्ग की कथा में आया है, ‘प्राचीन काल की बात है । एक बार देवासुर-संग्राम में देवताओं से  पीडित दैत्यों ने महर्षि भृगु की पत्नी से आश्रय मांगा । भृगुपत्नी ने उन्हें आश्रय दिया और वे दैत्य उनके आश्रम में निर्भयता से रहने लगे ।

रामभक्तशिरोमणी भरत की आध्यात्मिक गुणविशेषताएं !

इस लेख में हम रामभक्त भरत की आध्यात्मिक गुणविशेषताएं देखेंगे और भरत समान असीम रामभक्ति को अपने हृदय में निर्माण होने के लिए भगवान के श्रीचरणों में प्रार्थना करेंगे ।

प्रभु श्रीराम के अस्तित्व का स्मरण करवानेवाले रामसेतु के चैतन्यमय पत्थर एवं श्रीरामकालीन सिक्के

प्रभु श्रीराम के अस्तित्व का स्मरण करवानेवाले रामसेतु के चैतन्यमय पत्थर एवं श्रीरामकालीन सिक्के

हिन्दुओं के आस्थास्थान प्रभु श्रीराम पर हुए आरोपों का खंडन

जब तक प्रभु श्रीराम पर हुए मिथ्या आरोप हम सुनेंगे, तब तक हमें भी सत्य का पता नहीं होगा, तो हमारे मन में श्रीराम के प्रति भाव निर्माण होना कठिन है । इसलिए आज हम इन मिथ्या आरोपों की वास्तविकता आपके सामने रखेंगे । इससे निश्‍चित ही आपके मन की शंका दूर होगी और आप भी ऐसे आरोप करनेवालों का सामना आत्मविश्‍वास के साथ कर सकते हैं ।

रामायण जीवन जीने की सबसे उत्तम शिक्षा देती है ।

रामकथा भोग की नहीं त्याग की कथा हैं । यहां त्याग की प्रतियोगिता चल रही हैं और सभी प्रथम हैं, कोई पीछे नहीं रहा ।चारों भाइयों का प्रेम और त्याग एक दूसरे के प्रति अद्भुत-अभिनव और अलौकिक है ।

रामायण के प्रसंगों के संदर्भ में शंका निरसन

लंकाकांड के बातों से हम समझ सकते हैं कि रावण की बुद्धि को अहंकार तथा अभिमान ने संपूर्णत: ग्रसित कर लिया था । इस कारण रामसेतु बनने का समाचार सुनने पर भी रावण ने कुछ नहीं किया ।

श्रीरामजीके कुछ नामोंका अर्थ तथा विशेषताएं एवं तदनुसार उनका कार्य

श्री अर्थात शक्ति, सौंदर्य, सद्गुण इत्यादि, लंका विजयके पश्चात्, राम जब सीतासहित अयोध्यानगरी लौटे, तब सर्व अयोध्यावासी उन्हें ‘श्रीराम’ के नामसे संबोधित करने लगे । श्रीरामजी राजधर्मका पालन करनेमें तत्पर थे ।