देवी का महत्त्व !

कुलदेवी, ग्रामदेवी, शक्तिपीठ आदि रूपों में देवी के विविध सगुण रूपों की उपासना की जाती है । हिन्दू संस्कृति में जितना महत्त्व देवता का है उतना ही महत्त्व देवी को भी दिया जाता है,

शक्तिदेवता !

इस वर्ष की नवरात्रि के उपलक्ष्य में हम देवी के इन ९ रूपों की महिमा समझ लेते हैं । यह व्रत आदिशक्ति की उपासना ही है !

चंडीविधान (पाठ एवं हवन)

श्री दुर्गादेवी का एक नाम है चंडी । मार्कडेय पुराण में चंडी देवी का माहात्म्य बताया गया है, जिसमें उसके अवतारों का एवं पराक्रमों का विस्तार से वर्णन किया गया है ।

आद्याशक्ति

महाकाली ‘काल’ तत्त्व का, महासरस्वती ‘गति’ तत्त्व का एवं महालक्ष्मी ‘दिक्’ (दिशा) तत्त्व का प्रतीक है । काल के प्रवाह में सर्व पदार्थों का विनाश होता है ।

वटसावित्री व्रत एवं व्रतका उद्देश्य

सावित्रीको अखंड सौभाग्यका प्रतीक माना जाता है । सावित्री समान अपने पतिकी आयुवृद्धिकी इच्छा करनेवाली सुहागिनोंद्वारा यह व्रत किया जाता है । यह एक काम्यव्रत है । किसी कामना अथवा इच्छापूर्तिके लिए किया जानेवाला व्रत काम्यव्रत कहलाता है ।

सूर्य षष्ठी (छठ) पूजा

हमारे देशमें सूर्योपासनाके लिए प्रसिद्ध पर्व है छठ । मूलत: सूर्य षष्ठी व्रत होनेके कारण इसे छठ कहा गया है । यह पर्व वर्षमें दो बार मनाया जाता है ।

अनंत चतुर्दशी

व्यावहारिक इच्छापूर्तिके उद्देश्यसे किए जानेवाले व्रतको ‘काम्य व्रत’ कहते हैं । श्रद्धाभावसे किया गया व्रत व्यक्तिको संतुष्टि प्रदान करता है एवं आगे व्रती निष्कामताकी ओर बढने लगता है ।

ज्येष्ठा गौरी

श्री महालक्ष्मी गौरीने भाद्रपद शुक्ल पक्ष अष्टमी के दिन असुरों का संहार कर शरण में आईं स्त्रियों के पतियों को तथा पृथ्वी के प्राणियों को सुखी किया ।

ऋषिपंचमी

‘जिन ऋषियोंने अपने तपोबल से विश्‍व के मानव पर अनंत उपकार किए हैं, जीवन को उचित दिशा दी है । उन ऋषियों का इस दिन स्मरण किया जाता है ।

हरितालिका

अनुरूप वर की प्राप्ति के लिए विवाहयोग्य कन्याएं हरितालिका व्रत करती हैं, तो सुुहाग को अखंड बनाए रखने के लिए सुहागन स्त्रियां भी यह व्रत करती हैं ।