साधको, ‘समर्पणभाव’ बढाकर श्रीरामस्वरूप गुरु के अवतारी कार्य में संपूर्ण समर्पणभाव से उनका आज्ञापालन कर अपना उद्धार कर लें !

‘३०.३.२०२३ को श्रीरामनवमी है । उस उपलक्ष्य में आदर्श रामराज्य के संस्थापक प्रभु श्रीरामचंद्र के दैवीय गुणभंडार का भक्तिमय अवलोकन करते हुए मुझे रामायण काल का आगे दिए प्रसंग का स्मरण हुआ, ‘रामसेतु के निर्माणकार्य के समय प्रभु श्रीराम ने समुद्रतट पर शिवलिंग की स्थापना की । ‘रावणवध कर लंका से सीता को मुक्त करवाने में सफलता मिले’, इस उद्देश्य से श्रीराम ने शिवशंकर की आराधना की । श्रीराम की इस आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शिवशंकर उनके समक्ष प्रगट हो गए । तब इस कार्य की पूर्ति के लिए भगवान शिव से प्रार्थना करते समय भक्तवत्सल प्रभु श्रीराम ने ऐसी भी प्रार्थना की, ‘इस कार्य में मेरी सहायता करनेवाले समस्त वानरों को भी भगवद्भक्ति का वरदान प्राप्त हो ।’
श्रीराम द्वारा की गई इस प्रार्थना से उनकी वानरों के प्रति अपार प्रीति ध्यान में आती है । वास्तव में चिरंतन भक्ति वरदान द्वारा नहीं मिलती, अपितु अंतःकरण में भक्ति निर्माण होने हेतु चित्तशुद्धि होना आवश्यक होता है । यह चित्तशुद्धि भी कठोर तपस्या एवं प्रयत्नों की पराकाष्ठा द्वारा ही साध्य होती है । ऐसा होते हुए भी कृपालु भगवान श्रीराम द्वारा वानरों के लिए भक्ति का वरदान मांगने के पीछे कारण आगे दिए अनुसार हैं ।
१. वानरों ने स्वयं को श्रीराम के कार्य में पूर्णरूप से समर्पित होकर श्रीराम की सेवा की ।
२. वानरों ने स्वयं का कोई भी विचार न करते हुए श्रीराम की प्रत्येक आज्ञा का पूर्ण श्रद्धा से आज्ञापालन किया ।
श्रीरामप्रभु के कार्य में संपूर्ण समर्पित हुए वानरों के इस उदाहरण से सीखने मिलता है कि ‘हम भगवद्कार्य में संपूर्ण समर्पित होकर सेवा करने से भगवान को भी हमारे उत्कर्ष की लगन लगती है । वास्तव में वे ही हमारा उद्धार करते हैं । भक्ति समान अनमोल बात भी वे भक्त को सहजता से प्रदान कर देते हैं ।’
श्रीरामस्वरूप सच्चिदानंद परब्रह्म गुरुदेवजी के अवतारी कार्य में संपूर्णरूप से समर्पित होने पर निश्चित वे हमारी चित्तशुद्धि एवं भक्तिवृद्धि करनेवाले हैं । श्री गुरु का आज्ञापालन कर उनके द्वारा बताई हुई व्यष्टि एवं समष्टि साधना करने पर उससे हममें ‘समर्पणभाव’ बढेगा ।
साधको, ‘करुणावत्सल श्री गुरु के कृपाप्रवाह में हम सभी का उद्धार होनेवाला ही है ’, इस श्रद्धा से अपनी आध्यात्मिक प्रगति के विषय में निःशंक रहकर गुरुसेवारत रहेंगे !’
– श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा नीलेश सिंगबाळ (२९.३.२०२३)