१. प्रतिदिन न्यूनतम आधा घंटा व्यायाम करें !

‘आयुर्वेद में वात, पित्त एवं कफ को ‘दोष’ कहा गया है । वात, पित्त तथा दोष के कार्य में बाधा होना, अर्थात व्याधि ! आयुर्वेद के अनुसार उचित समय पर खाना, जितना पचन (हजम) हो, उतना ही खाना, शरीर के लिए अहितकारक पदार्थ टालना, आदि आहार के नियमों का पालन करने से वातादि दोषों के कार्य में संतुलन होकर स्वास्थ्य प्राप्त होता है; किंतु अधिकतर भोजन संबंधी नियम पालन करना संभव नहीं होता । उस समय शरीर निरोगी रखने का सर्वाेत्तम मार्ग है ‘व्यायाम करना ।’ यदि आहार के नियमों का पालन न करने से वातादि दोष असंतुलित हुए, तो नियतिम व्यायाम करने से पुन: उन्हें संतुलित होने में सहायता प्राप्त होती है । अतः शरीर निरोगी रखने के लिए प्रतिदिन न्यूनतम आधा घंटा व्यायाम करें !’
२. आज से नियमित न्यूनतम ३० मिनट व्यायाम करने का ध्येय रखें !
‘व्यायाम नियमित करने से ही उसके लाभ दिखाई देते हैं । ‘व्यायाम करें और उससे कोई लाभ न हो’, ऐसा हो ही नहीं सकता । ‘किसी भी बात को आत्मसात होने हेतु उसे कम से कम २१ दिनों तक प्रतिदिन करना चाहिए’, ऐसा मानसशास्त्र कहता है । इसलिए आज से नियमित व्यायाम करने का ध्येय रखें । ‘सवेरे व्यायाम नहीं किया, तो दोपहर को भोजन नहीं करूंगा’ अथवा शाम को व्यायाम करते हों, तो ‘यदि व्यायाम नहीं किया, तो रात का भोजन नहीं करूंगा’, ऐसा निश्चय करें । आप कितने भी व्यस्त हो, तब भी दिनभर में कम से कम ३० मिनट व्यायाम के लिए अवश्य रखें । एक ही प्रकार का व्यायाम न करते हुए अपनी क्षमतानुसार चलना, दौडना, सूर्यनमस्कार, योगासन, प्राणायाम जैसे विविध प्रकार करें । प्रतिदिन चरण-दर-चरण व्यायाम बढाते जाएं । एक माह के उपरांत निश्चितरूप से आपको अनुभव होगा कि आपकी शारीरिक एवं मानसिक क्षमता में वृद्धि हुई है एवं आप निरोगी जीवन की ओर मार्गक्रमण कर रहे हैं ।’ – वैद्य मेघराज माधव पराडकर, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (६.९.२०२२)