नागपंचमी (Nagpanchami 2023)

नागपंचमी के पूजन से ‘सभी प्राणिमात्र में परमेश्वर हैं’ यह सिखानेवाला हिन्दू त्यौहार !

नागपंचमी श्रावण मास का पहला त्यौहार है ! यह त्यौहार श्रावण शुुक्ल पंचमी को मनाया जाता है । इस साल यह त्यौहार २१ अगस्त २०२३ को है । इस दिन स्त्रियां उपवास करती हैं । नए वस्त्र, अलंकार परिधान कर नागदेवता की पूजा करती हैं तथा दूध का भोग लगाती हैं । नाग देवता के पूजन से सर्प भय नहीं रहता तथा विषबाधा का संकट दूर होता है । नागपंचमी के दिन क्या करें एवं क्या न करें, इतिहास तथा मनाने का शास्त्र आगे दिया है ।

नागपंचमी ऐसे मनाएं !

  • उपवास रखना ।
    उपवास करने से शक्ति बढती है और उपवास का फल मिलता है । – श्रीकृष्ण, कु. मेघा नकाते के माध्यम से, २.८.२००५, दिन ४.०५
  • नाग देवता की पूजा करें ।
    जो स्त्री नाग की आकृतियों का भावपूर्ण पूजन करती है, उसे शक्तितत्व प्राप्त होता है । नागपंचमी के दिन नाग की पूजा करना अर्थात नागदेवता को प्रसन्न करना । इस दिन पूजा करने से शिव की सगुण रूप में पूजा करने के समान है । इसलिए इस दिन वातावरण में आई हुई शिवतरंगें आकर्षित होती हैं तथा वे जीव के लिए ३६४ दिन उपयुक्त सिद्ध होती हैं ।
  • नाग को भाई मानकर पूजा करें ।
    इस विधि में स्त्रियां नागों का पूजन ‘भाई’ के रूप में करती हैं, जिससे भाई की आयु बढती है ।
  • नए वस्त्र एवं अलंकार परिधान करें ।
    नए वस्त्र और अलंकार परिधान करने से आनंद और चैतन्य की तरंगे आकर्षित होती हैं ।
  • लडकियां अथवा महिलाएं झूला झूलें ।
    झूला झूलने से क्षात्रभाव और भक्तिभाव बढकर सात्विकता की तरंगे मिलती हैं ।
  • प्रार्थना करें ।
    नागपंचमी का दिन सात्त्विकता ग्रहण करने के लिए उचित एवं उपयुक्त काल होने से, इस दिन आगे दी गई प्रार्थना करें – ‘आपकी कृपा से इस दिन शिवलोक से प्रक्षेपित होनेवाली तरंगें मेरे द्वारा अधिकाधिक ग्रहण होने दीजिए । मेरी आध्यात्मिक प्रगति में आनेवाली सर्व बाधाएं नष्ट होने दीजिए । मेरे पंचप्राणों में देवताओं की शक्ति समाए तथा उसका उपयोग ईश्वरप्राप्ति और राष्ट्ररक्षा के लिए होने दीजिए । मेरे पंचप्राणों की शुदि्ध होने दीजिए ।’

    नागपंचमी के दिन जो बहन भाई की उन्नति के लिए ईश्वर को लगन से भावपूर्ण प्रार्थना करती है, उस बहन की पुकार ईश्वर तक पहुंचती है । इसलिए प्रत्येक बहन प्रार्थना करें कि ‘भाई को सद्बुदि्ध, शक्ति और सामर्थ्य प्रदान करें ।’

नागपंचमी : इतिहास

१. सर्प यज्ञ का समाप्ति दिन : सर्पयज्ञ करनेवाले जनमेजय राजा को आस्तिक नामक ऋषि ने प्रसन्न कर लिया था । जनमेजय ने जब उनसे वर मांगने के लिए कहा, तो उन्होंने सर्पयज्ञ रोकने का वर मांगा एवं जिस दिन जनमेजय ने सर्पयज्ञ रोका, उस दिन पंचमी थी ।

२. कालियामर्दन की तिथि : श्रीकृष्ण ने यमुना के कुंड में कालिया नाग का मर्दन किया । वह तिथि श्रावण शुक्ल पक्ष पंचमी थी ।

३. पांच युगों से पूर्व सत्येश्वरी नामक एक कनिष्ठ देवी थी । सत्येश्वर उसका भाई था । सत्येश्वर की मृत्यु नागपंचमी से एक दिन पूर्व हो गई थी । सत्येश्वरी को उसका भाई नाग के रूप में दिखाई दिया । तब उसने उस नागरूप को अपना भाई माना । उस समय नागदेवता ने वचन दिया कि, जो बहन मेरी पूजा भाई के रूप में करेगी, मैं उसकी रक्षा करूंगा । इसलिए प्रत्येक स्त्री उस दिन नाग की पूजा कर नागपंचमी मनाती है ।

४. नाग परमेश्वर के अवतारों से अर्थात सगुण रूप से संबंधित है । सागरमंथन के लिए भगवान विष्णु के कूर्मावतार को वासुकी नाग ने सहायता की थी । श्रीविष्णु के तमोगुण से शेषनाग की उत्पत्ति हुई । भगवान शंकर की देह पर नौ नाग हैं इत्यादि । इसलिए नागपंचमी के दिन नाग का पूजन करना अर्थात नौ नागों के संघ के प्रतीक की पूजा करना है ।

५. सागरमंथन के समय जब भगवान शिव ने हलाहल विष प्राशन किया तब उनकी सहायता के लिए नौ नाग आए । उन्होंने भी हलाहल का अंश प्राशन किया । इससे शिव नागों पर प्रसन्न हुए । नागों ने समस्त सृष्टि की रक्षा के लिए दिए योगदान के लिए ‘मानव सदैव नागों के प्रति कृतज्ञ रहकर उनकी पूजा करेगा’, ऐसा आशिर्वाद नागाें को दिया । तब से नौ नाग मानव को पूजनीय हुए । नौ नाग नौ प्रकार के पवित्रक (चैतन्य तरंगें) ग्रहण करनेवाले घटक है ।

नागपंचमी की पूजा

नागपंचमी के दिन पीढे पर हलदी से नौ नागोंकी आकृतियां बनाई जाती हैं । श्लोक में बताए अनुसार अनंत, वासुकी इस प्रकार कहकर एक-एक नाग का आवाहन किया जाता है । उसके उपरांत उनका षोडशोपचार पूजन किया जाता है । उन्हें दूध एवं खीलोंका अर्थात पफ रैस का नैवेद्य निवेदित किया जाता है । कुछ स्थानोंपर हलदी के स्थानपर रक्तचंदन से नौ नागोंकी आकृतियां बनाई जाती हैं । रक्तचंदन में नाग के समान अधिक शीतलता होती है ।

मंत्र एवं उनके अर्थसहित

नाग पूजन

पूजा भावपूर्ण हो तथा नागदेवता की कृपा हो,
इस हेतु से नागपंचमी के दिन की जानेवाली
पूजाविधि यहां विस्तार में दी है । मंत्र एवं उनके
अर्थसहित संपूर्ण नाग पूजन जानने के लिए…

नाग पूजन

पूजा भावपूर्ण हो तथा नागदेवता की कृपा हो, इस हेतु से नागपंचमी के दिन की जानेवाली पूजाविधि यहां विस्तार में दी है । मंत्र एवं उनके अर्थसहित संपूर्ण नाग पूजन जानने के लिए…

हिन्दू धर्म हमें सिखाता है कि निर्जीव वस्तुओं से लेकर प्राणिमात्र तक, सभी पूजनीय है । उनमें स्थित ईश्वरीय अंश का सम्मान करना सिखाता है । इसलिए हम भगवान के प्रेम को निरंतर अनुभव कर सकते है । इस भाव का अनुभव करना अर्थात ईश्वर के अनुसंधान में रहना । भगवान की कृपा हम पर कैसे बनी रहे, ईश्वर के अनुसंधान में कैसे रहे, यह जानने के लिए…

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नागपंचमी के दिन क्या न करें ?

नागपंचमी के दिन कुछ न काटें, न तलें, चूल्हे पर तवा न रखें इत्यादि संकेतों का पालन बताया गया है । इस दिन भूमिखनन न करें ।

इस दिन सब्जी काटना, चीरना, तलना, भूमि जोतना अथवा भूमिखनन इत्यादि कृत्य निषिद्ध हैं; परंतु वर्ष भर में अन्य दिन ये कृतियां करने में कोई बंधन नहीं । इस दिन निषिद्ध कृति न करने का आधारभूत शास्त्र एवं वैसा करने से होनेवाली हानि के विषय में अब हम जानकर लेंगे ।

नागदेवता इच्छा से संबंधित कनिष्ठ देवता हैं । नाग इच्छा का प्रवर्तक है । इच्छा का प्रवर्तक, अर्थात इच्छा को गति देनेवाला अथवा सकाम इच्छा की पूर्ति करनेवाला । नागपंचमी के दिन संबंधित तत्त्व की देवताजन्य इच्छातरंगें भूमि पर अवतरित होती है । इसलिए वायुमंडल में नागदेवताजन्य तत्त्व की मात्रा अधिक होती है । इस दिन भूमि के समीपवर्ती इच्छाजन्य देवतास्वरूप तरंगें घनीभूत होने की मात्रा अधिक होती है । काटना एवं तलना, इन प्रक्रियाओं से रज-तम से संबंधित इच्छातरंगें निर्मित होती है । वे देवताजन्य इच्छातरंगों के कार्य को अवरोध करती है । जिससे इस दिन अधिक मात्रा में होनेवाली नागदेवताजन्य तरंगों के कार्य करने में बाधा उत्पन्न हो सकती है । इस कारण नागपंचमी के दिन इसप्रकार कृत्य करने से पाप लग सकता है । अतः नागपंचमी के दिन काटना, चीरना, तलना, भूमि जोतना, भूमिखनन जैसे कृत्य निषिद्ध माने गए हैं ।

अन्य दिन ऐसे देवताजन्य इच्छातरंगों का वास भूमि के निकट न होने से ऐसी कृतियां करने से समष्टि पाप लगने की मात्रा अल्प होती है । इससे यह ध्यान में आता है कि वायुमंडल में किसी एक विशेष दिन अधिक मात्रा में होनेवाली देवताओं की कार्यरत तरंगों को आधारभूत मानकर, उस दिन उस देवता का त्योहार एवं उत्सव मनाने की पद्धति हिन्दू धर्म में है । इससे हिन्दू धर्म की महानता भी समझ में आती है ।

प्राचीन काल में कंदमूल भूनकर, अथवा उबालकर खाने की पद्धति थी । इस प्रक्रिया में काटना या तलने जैसी कृतियां नहीं होती थीं । इसलिए उनसे पातक लगने की संभावना भी कम थी । कलियुग में पुरानी परंपराओं का पालन करना कठिन होने से प्रत्येक कृति से निर्माण होनेवाले पाप नष्ट होने हेतु वह कृत्य साधना के स्तर पर, अर्थात नामजप के साथ करना आवश्यक है । इससे कलियुग में साधना का महत्त्व ध्यान में आता है ।
– एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळ के माध्यम से, आषाढ कृष्ण ३, कलियुग वर्ष ५१११ (१०.७.२००९))

नागपंचमी के दिन उपवास करने का महत्त्व

सत्येश्वर की मृत्यु नागपंचमी के एक दिन पूर्व हुई थी । इसलिए भाई के शोक में सत्येश्वरी ने अन्न ग्रहण नहीं किया । अतः इस दिन स्त्रियां भाई के नाम से उपवास करती हैं । उपवास करने का एक कारण यह भी है कि भाई को चिरंतन जीवन एवं आयुधों की प्राप्ति हो तथा वह प्रत्येक दुःख और संकट से पार हो जाए ।’ नागपंचमी से एक दिन पूर्व प्रत्येक बहन यदि भाई के लिए देवताओं को आर्त भाव से पुकारे, तो भाई को ७५ प्रतिशत लाभ होता है और उसकी रक्षा होती है ।

एक मत के नुसार, नागपंचमी के एक दिन पूर्व केवल दोपहर का भोजन ग्रहण कर सीधे दूसरे दिन रात्रि का भोजन ग्रहण करते है, ऐसा उपवास का स्वरूप होता है । (टिप्पणी : किन्तु इसमें प्रांतानुसार भेद हो सकते है ।)

नागपंचमी के दिन मेहंदी लगाना, तथा नए वस्त्र एवं अलंकार परिधान करने का कारण

भाई के लिए सत्येश्वरी का शोक देखकर नागदेव प्रसन्न हो गए । उसका शोक दूर करने और उसे आनंदी करने के लिए नागदेव ने उसे नए वस्त्र परिधान करने हेतु दिए तथा विभिन्न अलंकार देकर उसे सजाया । उससे सत्येश्वरी संतुष्ट हो गई । इसलिए नागपंचमी के दिन स्त्रियां नए वस्त्र और अलंकार परिधान करती हैं ।

नागराज सत्येश्वर के रूप में सत्येश्वरी के सामने प्रकट हुए । ‘वह चले जाएंगे’, ऐसा मानकर सत्येश्वरी ने उनसे अर्थात नागराज से अपने हाथों पर वचन लिया । वह वचन देते समय सत्येश्वरी के हाथों पर वचनचिन्ह बन गया । उस वचन के प्रतीक स्वरूप नागपंचमी से एक दिन पूर्व प्रत्येक स्त्री स्वयं के हाथों पर मेहंदी लगाती है ।

नागपंचमी के दिन झूला झूलने का महत्त्व

नागपंचमी के दिन नागदेवता का शास्त्रीय पूजन करने के पश्चात आनंद के प्रतीक स्वरूप झूला झूलने की प्रथा परंपरांगत चली आ रही है ।

झूला झूलने का इतिहास – नागराज सत्येश्‍वरी के सामने सत्येश्‍वर का रूप लेकर प्रकट हुए । तब वह आनंद से पेडों की टहनियों पर झूला झूलने लगी । इसलिए महिलाएं उस दिन झूला झूलती है ।

झूला झूलने का उद्देश है – जैसे झूला ऊपर जाता है वैसे भाई प्रगति के शिखर तक पहुंचे, तथा जैसे झूला नीचे आता है वैसे भाई के जीवन में आयी सभी बाधाएं एवं दुख कम हों । जब बहन इस भाव से प्रत्येक विचार एवं कृति करती है, तब उसके भाई की ५ प्रतिशत आध्यात्मिक तथा ३० प्रतिशत व्यावहारिक प्रगती होती है ।

नागपंचमी के दिन की जानेवाली कुछ कृतियों का महत्त्व

नाग पूजन का महत्त्व

१. ‘नागों में श्रेष्ठ ‘अनंत’ मैं ही हूं’, इस प्रकार श्रीकृष्ण ने गीता (अध्याय १०, श्लोक २९) में अपनी विभूति का कथन किया है ।

अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम् ।
शंखपालं धृतराष्ट्रं तक्षकं, कालियं तथा ।। – श्रीमद्भगवद्गीता

अर्थ: अनंत, वासुकी, शेष, पद्मनाभ, कंबल, शंखपाल, धृतराष्ट्र, तक्षक एवं कालिया, इन नौ जातियों के नागों की आराधना करते हैं । इससे सर्पभय नहीं रहता और विषबाधा नहीं होती ।’

२. हिन्दू धर्म नागपंचमी के दिन नाग पूजन के माध्यम से ‘सभी प्राणिमात्र में परमेश्वर है’, यह सिखाता है ।’ – कु. प्रियांका लोटलीकर, सनातन संस्था, गोवा.
विश्व के सभी जीव विश्व के कार्य के लिए पूरक है । नागपंचमी के दिन नागों की पूजा द्वारा ‘भगवान उनके माध्यम से भी कार्य कर रहा है’, यह विशाल दृष्टिकोण सीखने मिलता है ।’ – प.पू. परशराम माधव पांडे महाराज, सनातन आश्रम, देवद, पनवेल.

३. ‘नागाें में नागपंचमी छोडकर अन्य दिन तत्त्व अप्रकट स्वरूप में कार्यरत होता है; किन्तु नागपंचमी के दिन वह प्रकट स्वरूप में कार्यरत रहने से पूजा करनेवाले को उसका अधिक लाभ होता है ।

४. ‘७.८.२००७  को दोपहर ४.४५ बजे प्रदक्षिणा करते समय मुझे नागपंचमी के विषय में आगे दिए गए विचार सूझे । ‘नाग देवता ब्रह्मा, विष्णु और महेश से एकरूप हुए देवता हैं । नागदेवता पृथ्वी का मेरूदंड हैं । नागपंचमी के दिन नाग की पूजा करने का महत्त्व है । अध्यात्म में नागदेवता को महत्त्व होता है; क्योंकि कुंडली भी सूक्ष्म-सर्प ही है । शरीर में विद्यमान सूक्ष्म-सापों को जागृत करने के लिए साधना आवश्यक होती है ।’ – श्रीमती क्षिप्रा

कुंडलिनी जागृति के विषय में बहुत से लोगों के मन में शंकाएं एवं प्रश्न रहते है । वे उनके निरसन के लिए सनातन के सत्संग से जुड सकते है ।

​नागपंचमी के दिन बमीठे का पूजन करना

नाग का वास्तव्य बमीठे में अर्थात ऐंटहिल में होता है। कुछ लोग बमीठे का भी पूजन करते हैं ।

नागों का आध्यात्मिक महत्त्व

कश्यप ऋषी एवं कद्रू से सभी नागों की उत्पत्ति हुई । भगवान शिव सभी नागों के अधिपति है । अधिकांश नाग शिव की ही उपासना करते है । कुछ नाग विष्णु की, तो कुछ नाग भगवान श्री गणेश की उपासना करते है ।

त्रिगुणाें के अनुसार नागों के प्रमुख तीन प्रकार है ।

तामसिक नाग : ये नाग प्रमुखता से काले रंग के होते हैं और पाताल के नागलोक में निवास करते हैं । बडी अनिष्ट शक्तियां सूक्ष्म युद्ध में शत्रुपर विषप्रयोग करने हेतु इन नागों का शस्त्र की भांति उपयोग करती हैं । पाताल के नाग पृथ्वी के नागों की तुलना में लाख गुना अधिक सामर्थ्यवान और सहस्रों गुना विषैले होते हैं ।

राजसिक नाग : ये नाग पृथ्वीपर निवास करते हैं । नागयोनी में जन्म होने से इन सागों का आचरण सर्वसाधारण नागों की भांति होता है । ये काले, नीले, कत्थई आदि रंगों के होते हैं ।

सात्त्विक नाग : ये नाग दैवीय होने से वे शिवलोक के पास स्थित दैवीय नाग लोक में निवास करते हैं । उनका रंग पीला होता है और उनके मस्तक पर लाल अथवा नीले रंग का नागमणि होता है । सात्त्विक नाग पाताल के नागों की तुलना में लाख गुना अधिक सामर्थ्यवान होते हैं । विविध देवताओं ने इन सात्त्विक नागों को धारण किया है । भगवान शिव के गले में वासुकी नाग होता हैं । भगवान श्री गणेश के पेट को कुंडली बनाए हुए विश्‍वकुंडलिनी का प्रतिक पीला पद्मनाभ नाग होता हैं । श्रीविष्णु शेष नाग की शय्या पर लेटते हैं । सात्त्विक नाग सिद्ध पुरुष एवं ऋषि-मुनियों के अधीन होते हैं । वे उनकी आज्ञा का पालन करते हैं । पीले नाग उच्च देवताओं के उपासक होने से उनके पास दैवीय बल है । उसके कारण उन्हें आशीर्वाद प्रदान करने का अर्थात संकल्प के अनुसार कार्य करने का सामर्थ्य प्राप्त है ।

भुवर्लोक एवं पितृलोक में फंसे हुए पूर्वज अधिकांश रूप से काले नागों के रूप में अपने वंशजों को दर्शन कराते हैं । सात्त्विक पूर्वज पीले रंग के नागों के रूप में दर्शन एवं आशीर्वाद देते हैं । देवता के कार्य में सहभागी तथा सज्जन प्रवृत्ति के लोग पितृलोक में निवास करने के पश्‍चात शिवलोक के पास स्थित दैवीय नागलोक में पीले नागों के रूप में वास करते हैं । घर, संपत्ति एवं परिजनों के प्रति बहुत ही आसक्तिवाले पूर्वजों को पृथ्वी पर नाग योनी में जन्म मिलता है ।

कलियुग के आरंभ तक विविध देवताओं को स्वतंत्र स्थान दिया जाता था, उदा. स्थानदेवता, ग्रामदेवता, क्षेत्रपाल देवता इत्यादि । उसी प्रकार से भारत के प्रत्येक गांव में नागों को रहने के लिए नागवन थे । यहां बडे-बडे घने वृक्ष पास-पास होते थे और उनके तने में बाँबी होती थी । प्रत्येक गांव के नाग वहां रहते थे । (आज भी कर्नाटक राज्य के मुल्की, सूरतकल आदि स्थानोंपर हमें नागबन देखने को मिलते हैं ।) नागों को स्वतंत्र स्थान दिए जाने से वे मनुष्य को कष्ट नहीं पहुंचाते थे । वे मनुष्य और उसकी संपत्ति की रक्षा करते थे । विज्ञानयुग के मनुष्य ने अपने भौतिक विकास हेतु गांव-गांव में स्थित नागवनों को नष्ट कर वहां बडी-बडी इमारतें बनाईं । उसके कारण अब मनुष्य को नागों का उपद्रव सहन करना पड रहा है । – कु. मधुरा भोसले (सूक्ष्मातून प्राप्त झालेले ज्ञान)

नागों के प्रकार

त्रिगुणाें के अनुसार नागों के प्रमुख तीन प्रकार है ।

तामसिक नाग : ये नाग प्रमुखता से काले रंग के होते हैं और पाताल के नागलोक में निवास करते हैं । बडी अनिष्ट शक्तियां सूक्ष्म युद्ध में शत्रुपर विषप्रयोग करने हेतु इन नागों का शस्त्र की भांति उपयोग करती हैं । पाताल के नाग पृथ्वी के नागों की तुलना में लाख गुना अधिक सामर्थ्यवान और सहस्रों गुना विषैले होते हैं ।

राजसिक नाग : ये नाग पृथ्वीपर निवास करते हैं । नागयोनी में जन्म होने से इन सागों का आचरण सर्वसाधारण नागों की भांति होता है । ये काले, नीले, कत्थई आदि रंगों के होते हैं ।

सात्त्विक नाग : ये नाग दैवीय होने से वे शिवलोक के पास स्थित दैवीय नाग लोक में निवास करते हैं । उनका रंग पीला होता है और उनके मस्तक पर लाल अथवा नीले रंग का नागमणि होता है । सात्त्विक नाग पाताल के नागों की तुलना में लाख गुना अधिक सामर्थ्यवान होते हैं । विविध देवताओं ने इन सात्त्विक नागों को धारण किया है । भगवान शिव के गले में वासुकी नाग होता हैं । भगवान श्री गणेश के पेट को कुंडली बनाए हुए विश्‍वकुंडलिनी का प्रतिक पीला पद्मनाभ नाग होता हैं । श्रीविष्णु शेष नाग की शय्या पर लेटते हैं । सात्त्विक नाग सिद्ध पुरुष एवं ऋषि-मुनियों के अधीन होते हैं । वे उनकी आज्ञा का पालन करते हैं । पीले नाग उच्च देवताओं के उपासक होने से उनके पास दैवीय बल है । उसके कारण उन्हें आशीर्वाद प्रदान करने का अर्थात संकल्प के अनुसार कार्य करने का सामर्थ्य प्राप्त है ।

पूर्वज एवं नागों का एक-दूसरे से संबंध

भुवर्लोक एवं पितृलोक में फंसे हुए पूर्वज अधिकांश रूप से काले नागों के रूप में अपने वंशजों को दर्शन कराते हैं । सात्त्विक पूर्वज पीले रंग के नागों के रूप में दर्शन एवं आशीर्वाद देते हैं । देवता के कार्य में सहभागी तथा सज्जन प्रवृत्ति के लोग पितृलोक में निवास करने के पश्‍चात शिवलोक के पास स्थित दैवीय नागलोक में पीले नागों के रूप में वास करते हैं । घर, संपत्ति एवं परिजनों के प्रति बहुत ही आसक्तिवाले पूर्वजों को पृथ्वी पर नाग योनी में जन्म मिलता है ।

कलियुग में मानव ने नागवन अर्थात नागों के स्थान नष्ट करने से, उसे नागों के उपद्रव का सामना करना पड रहा है

कलियुग के आरंभ तक विविध देवताओं को स्वतंत्र स्थान दिया जाता था, उदा. स्थानदेवता, ग्रामदेवता, क्षेत्रपाल देवता इत्यादि । उसी प्रकार से भारत के प्रत्येक गांव में नागों को रहने के लिए नागवन थे । यहां बडे-बडे घने वृक्ष पास-पास होते थे और उनके तने में बाँबी होती थी । प्रत्येक गांव के नाग वहां रहते थे । (आज भी कर्नाटक राज्य के मुल्की, सूरतकल आदि स्थानोंपर हमें नागबन देखने को मिलते हैं ।) नागों को स्वतंत्र स्थान दिए जाने से वे मनुष्य को कष्ट नहीं पहुंचाते थे । वे मनुष्य और उसकी संपत्ति की रक्षा करते थे । विज्ञानयुग के मनुष्य ने अपने भौतिक विकास हेतु गांव-गांव में स्थित नागवनों को नष्ट कर वहां बडी-बडी इमारतें बनाईं । उसके कारण अब मनुष्य को नागों का उपद्रव सहन करना पड रहा है । – कु. मधुरा भोसले (सूक्ष्मातून प्राप्त झालेले ज्ञान)

संदर्भ ग्रंथ

उपरोक्त जानकारी सनातन के ‘त्योहार मनानेकी उचित पद्धतियां एवं अध्यात्मशास्त्र’ ग्रंथ में दी गई है । नागपंचमी समान अन्य त्योहारों की जानकारी देनेवाला यह ग्रंथ अवश्य पढें ।

नागपंचमी की जानकारी देनेवाला वीडियो देखें !

‘नागों से हमारे परिजनों की सदैव रक्षा हो तथा नागदेवता की कृपा हो’, इस हेतु प्रति वर्ष श्रावण शुक्‍ल पंचमी अर्थात नागपंचमी को नागदेवता की पूजा की जाती है । इस दिन कुछ स्‍थानों पर मिट्टी से बनी नाग की मूर्तियां लाकर उनकी पूजा की जाती है, तो कुछ स्‍थानों पर बांबी (बमीठा) की पूजा की जाती है ।

१. नागदेवता का पूजन

१ अ. नागदेवता का चित्र बनाना : हलदी मिश्रित चंदन से दीवार अथवा पूजा की चौकी पर नाग का चित्र (अथवा नौ नागों का चित्र) बनाकर, ‘सपत्नीकनागदेवताभ्‍यो नमः’ मंत्र से उनकी पूजा करें ।

१ आ. षोडशोपचार पूजन : जिनके लिए नागदेवता की ‘षोडशोपचार पूजा’ करना संभव है, वे षोडशोपचार पूजा करें ।

१ इ. पंचोपचार पूजन : जो नागदेवता की ‘षोडशोपचार पूजा’ नहीं कर सकते, वे ‘पंचोपचार पूजा’ करें और दूध, चीनी, खीलें (लाई), कुल की परंपरा के अनुसार खीर इत्‍यादि का नैवेद्य (भोग) चढाएं । (पंचोपचार पूजा : गंध (चंदन), हलदी-रोली, पुष्‍प, धूप, दीप और नैवेद्य, इस क्रम से पूजा करना ।)

२. पूजन के उपरांत नाग देवता से प्रार्थना करें !

‘हे नागदेवता, श्रावण शुक्‍ल पक्ष पंचमी को मैंने जो यह नाग पूजन किया है, इस पूजन से आप प्रसन्‍न होकर मुझे सदैव सुख प्रदान करें । हे नागदेवता, इस पूजन में जाने-अनजाने कुछ भूल-चूक हुई हो, तो आप मुझे क्षमा करें । आपकी कृपा से मेरे सभी मनोरथ पूर्ण हों । मेरे कुल में कभी किसी को नागविष से भय उत्‍पन्‍न न हो’, ऐसी आपके चरणों में प्रार्थना है ।’