नागपंचमी : सब्जी काटना, तलना, चूल्हे पर तवा रखना, भूमि जोतना अथवा भूमिखनन न करने का आधारभूतशास्त्र

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नागपंचमी के दिन काटना एवं चीरना निषिद्ध होना

नागपंचमी के दिन सब्जी काटना, चीरना, तलना, भूमि जोतना अथवा भूमिखनन इत्यादि कृत्य निषिद्ध हैं; परंतु वर्ष भर में अन्य दिन ये कृतियां करने में कोई बंधन नहीं । नागपंचमी के दिन निषिद्ध कृति न करने का आधारभूत शास्त्र एवं वैसा करने से होनेवाली हानि इस विषय पर विवेचन इस लेख में किया है ।

 

१. नागदेवता की विशेषता एवं कार्य

१.अ. नाग इच्छा का प्रवर्तक है । इच्छा का प्रवर्तक, अर्थात इच्छा को गति देनेवाला अथवा सकाम इच्छा की पूर्ति करनेवाला ।
१.आ. नागदेवता इच्छा से संबंधित कनिष्ठ देवता हैं ।

 

२. नागपंचमी का आध्यात्मिकदृष्टि से महत्त्व

२.अ. नागपंचमी के दिन संबंधित तत्त्व की देवताजन्य इच्छातरंगें भूमि पर अवतरित होने से वायुमंडल में नागदेवताजन्य तत्त्व की मात्रा अधिक होती है ।
२.आ. इस दिन भूमि के समीपवर्ती इच्छाजन्य देवतास्वरूप तरंगें घनीभूत होने की मात्रा अधिक होती है ।

 

३. नागपंचमी के दिन काटना, चीरना एवं
तलना, इन क्रियाओं के निषिद्ध होने के कारण

काटना, चीरना एवं तलना, इन प्रक्रियाओं से रज-तम से संबंधित इच्छातरंगें, अर्थात देवताजन्य इच्छातरंगों के कार्य का अवरोध करनेवाली तरंगों के वायुमंडल में ऊत्सर्जित होने की मात्रा अधिक होने से इस दिन नागदेवताजन्य तरंगों के कार्य करने में बाधा उत्पन्न हो सकती है । इस कारण नागपंचमी के दिन इसप्रकार कृत्य करने से पाप लग सकता है; इसलिए नागपंचमी के दिन काटना, चीरना, तलना, भूमि जोतना, भूमिखनन जैसे कृत्य निषिद्ध माने गए हैं ।

 

४. अन्य दिन काटने, चीरने, तलने इत्यादि कृत्यों से पाप लगने की मात्रा अल्प होना

अन्य दिन ऐसे देवताजन्य इच्छातरंगों का वास भूमि के निकट न होने से ऐसी कृतियां करने से समष्टि पाप लगने की मात्रा अल्प होती है । इससे यह ध्यान में आता है कि वायुमंडल में अमुक-अमुक दिन होनेवाले देवताओं की कार्यरत तरंगों को आधारभूत मानकर, उस अमुक दिन पर ही वे त्योहार एवं उत्सव मनाने की पद्धति हिन्दू धर्म में है । उसका विशेष महत्त्व भी समझ में आता है ।

 

५. पहले के काल में कंदमूल भूनकर अथवा
उबालकर खाने से पातक लगने की मात्रा अल्प होना

पूर्व के काल में कंदमूल भूनकर, इसके साथ ही उसे उबालकर खाने की पद्धति थी । इस प्रक्रिया में काटना, चीरना, तलने जैसी कृतियां नहीं होती थीं । इसलिए उनसे पातक लगने की संभावना भी कम थी ।

 

६. कलियुग में प्रत्येक कृति नामसहित करने का महत्त्व

कलियुग में पुरानी परंपराओं का पालन करना कठिन होने से प्रत्येक कृति से निर्माण होनेवाले पाप नष्ट होने हेतु वह कृत्य साधना के स्तर पर, अर्थात नामसहित करना आवश्यक है । इससे कलियुग में नामसाधना का महत्त्व ध्यान में आता है ।

– एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळ के माध्यम से, आषाढ कृष्ण ३, कलियुग वर्ष ५१११ (१०.७.२००९))

 

७. नागपंचमी के दिन काटना, चीरना,
तलना जैसी निषिद्ध कृतियां करने से होनेवाले परिणाम

अ. काटना अथवा चीरना

७.अ.१. ‘नागपंचमी के दिन वायुमंडल में चैतन्य एवं शक्ति कणों के रूप में अस्तित्व में होना
७.अ.२. नागपंचमी के दिन काटने की (अथवा चीरने के) कृत्यों के कारण चाकू (अथवा हंसिए के) घर्षण से तमोगुणी तरंगें निर्माण होना
७.अ.२.अ. काटने में (अथवा चीरने में) वस्तु के सर्व ओर तमोगुणी वलय निर्माण होने से, उससे तमोगुणी वलयों का वातावरण में प्रक्षेपण होना

७.अ.२.आ. वातावरण में काले तमोगुणी कण फैलना

७.अ.३. नागपंचमी के दिन वातावरण में कार्यरत पवित्रक होना एवं काटने (अथवा चीरना) ये तमोगुणी कृत्य करने से वातावरण में तमोगुण प्रक्षेपित होने से वातावरण दूषित होना
काटना, तलना, चीरने जैसे कृत्यों से रज-तमप्रधान स्पंदनों की निर्मिति होती है एवं उसका व्यक्ति पर परिणाम होता है । इसलिए नागपंचमी के दिन इन्हें करना टालें ।’

– कु. प्रियांका लोटलीकर, सनातन संस्था, गोवा, आषाढ कृ. १, कलियुग वर्ष ५१११ (८.७.२००९)

संदर्भ : सनातन-निर्मित ग्रंथ ‘त्योहार, धार्मिक उत्सव एवं व्रत’

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