प्रस्तुत लेख में नागपंचमीपूजन विधि का दूसरा भाग दिया है । पूजा के मंत्रों का अर्थ समझने पर नागपंचमीपूजन अधिक भावपूर्ण होने में सहायता होती है ।
इस लेख का पहला भाग, ‘नागपंचमीपूजन (अर्थ सहित) (भाग १)’ पढने के लिए यहां ‘क्लिक’ करें !

हलदीमिश्रित चंदन से दीवार पर अथवा पीढे पर नाग का चित्र बनाएं (अथवा नौ नागों का चित्र बनाएं ।) चित्र के स्थान पर आगे दिए नाममंत्रों से नवनागों का आवाहन करें । दाएं हाथ में अक्षता लेकर ‘आवाहयामि’ कहते हुए नागदेवता के चरणों में अक्षता चढाएं ।
ॐ अनन्ताय नमः । अनन्तम् आवाहयामि ॥
ॐ वासुकये नम: । वासुकिम् आवाहयामि ॥
ॐ शेषाय नम: । शेषम् आवाहयामि ॥
ॐ शङ्खाय नम: । शङ्खम् आवाहयामि ॥
ॐ पद्माय नम: । पद्मम् आवाहयामि ॥
ॐ कम्बलाय नम: । कम्बलम् आवाहयामि ॥
ॐ कर्कोटकाय नम: । कर्कोटकम् आवाहयामि ॥
ॐ अश्वतरये नम: । अश्वतरम् आवाहयामि ॥
ॐ धृतराष्ट्राय नम: । धृतराष्ट्रम् आवाहयामि ॥
ॐ तक्षकाय नम: । तक्षकम् आवाहयामि ॥
ॐ कालियाय नम: । कालियम् आवाहयामि ॥
ॐ कपिलाय नम: । कपिलम् आवाहयामि ॥
ॐ नागपत्नीभ्यो नमः । नागपत्नीः आवाहयामि ॥
ॐ अनन्तादिनागदेवताभ्यो नम: । ध्यायामि ।
(अनंत आदि नागदेवताओं का नमन कर मैं ध्यान करता हूं ।)
१. ॐ अनन्तादिनागदेवताभ्यो नमः । आवाहयामि ।
(अनंतादि नागदेवताओं का आवाहन करता हूं ।)
२. ॐ अनन्तादिनागदेवताभ्यो नमः । आसनार्थे अक्षतान् समर्पयामि ।
(अनंत आदि नागदेवताओं को आसन के प्रति अक्षता अर्पण करता हूं ।)
(अक्षता चित्र पर चढाएं ।)
३. ॐ अनन्तादिनागदेवताभ्यो नमः । पाद्यं समर्पयामि ।
(अनंतादि नागदेवताओं को पैर धोने के लिए पानी अर्पण करता हूं ।)
(ताम्रपात्र में पानी छोडें ।)
४. ॐ अनन्तादिनागदेवताभ्यो नमः । अर्घ्यं समर्पयामि ।
(अनंतादि नागदेवताओं को अर्घ्य के लिए पानी अर्पण करता हूं ।)
(ताम्रपात्र में पानी छोडें ।)
५. ॐ अनन्तादिनागदेवताभ्यो नमः । आचमनीयं समर्पयामि ।
(अनंतादि नागदेवताओं को आचमन के लिए पानी अर्पण करता हूं ।)
(ताम्रपात्र में पानी छोडें ।)
६. ॐ अनन्तादिनागदेवताभ्यो नमः । स्नानं समर्पयामि ।
(अनंतादि नागदेवताओं को स्नान के लिए पानी अर्पण करता हूं ।)
७. ॐ अनन्तादिनागदेवताभ्यो नमः । वस्त्रं समर्पयामि ।
(अनंतादि नागदेवताओं को वस्त्र अर्पण करता हूं ।)
(वस्त्र चढाएं ।)
८. ॐ अनन्तादिनागदेवताभ्यो नमः । उपवीतं समर्पयामि ।
(अनंतादि नागदेवताओं को उपवीत अर्पण करता हूं ।)
(जनेऊ अथवा अक्षता चढाएं ।)
९. ॐ अनन्तादिनागदेवताभ्यो नमः । चन्दनं समर्पयामि ।
(अनंतादि नागदेवताओं को चंदन अर्पण करता हूं ।)
(अनंतादि नवनागों को चंदन-पुष्प अर्पित करें ।)
१०. नागपत्नीभ्योनमः । हरिद्रां समर्पयामि ।
(नागपत्नियों को हलदी चढाता हूं ।)
११. नागपत्नीभ्योनमः । कुङ्कुमं समर्पयामि ।
(नागपत्नियों को कुंकू चढाता हूं ।)
१२. ॐ अनन्तादिनागदेवताभ्यो नमः । अलङ्कारार्थे अक्षतान् समर्पयामि ।
(अनंतादि नागदेवताओं को अलंकार स्वरूप अक्षता अर्पण करता हूं ।)
(अक्षता चढाएं ।)
१३. ॐ अनन्तादिनागदेवताभ्यो नमः । पूजार्थे ऋतुकालोद्भवपुष्पाणि तुलसीपत्राणि बिल्वपत्राणि दूर्वाङ्कुरांश्च समर्पयामि।
(अनंतादि नागदेवताओं को वर्तमान ऋतु में खिलनेवाले पुष्प, तुलसीदल, बेलपत्र, दूर्वा अर्पण करता हूं ।)
(फूल, हार इत्यादि चढाएं ।)
१४. ॐ अनन्तादिनागदेवताभ्यो नमः । धूपं समर्पयामि ।
(अनंतादि नागदेवताओं को धूप दिखाएं ।)
(उदबत्ती दिखाएं ।)
१५. ॐ अनन्तादिनागदेवताभ्यो नमः । दीपं समर्पयामि ।
(अनंतादि नागदेवताओं की दीप से आरती कर रहा हूं ।)
(निरांजन दिखाएं ।)
१६. ॐ अनन्तादिनागदेवताभ्यो नमः । नैवेद्यार्थे पुरतस्थापित नैवेद्यं निवेदयामि ।
(अनंतादि नागदेवताओं के सामने रखा नैवेद्य निवेदन करता हूं ।)
(दूध-शक्कर, खीलें अथवा कुलपरंपरानुसार खीर इत्यादि पदार्थाें का नैवेद्य दिखाएं ।)
(दाएं हाथ में दो तुलसी के पत्ते लेकर पानी में भिगोकर उससे नैवेद्य पर जल प्रोक्षण करें । तुलसी के पत्ते हाथ में रखें एवं बायां हाथ अपनी छाती पर रखें, आगे दिए मंत्र के ‘स्वाहा’ शब्द कहते हुए दायां हाथ नैवेद्य से नागदेवताओं की दिशा में आगे लें ।)
प्राणाय स्वाहा ।
(यह प्राण के लिए अर्पण करता हूं ।)
अपानाय स्वाहा ।
(यह अपान के लिए अर्पण करता हूं ।)
व्यानाय स्वाहा ।
(यह व्यान के लिए अर्पण करता हूं ।)
उदानाय स्वाहा ।
(यह उदान के लिए अर्पण करता हूं ।)
समानाय स्वाहा ।
(यह समान के लिए अर्पण करता हूं ।)
ब्रह्मणे स्वाहा ।
(यह ब्रह्मा के लिए अर्पण करता हूं ।)
(हाथ में लिया एक तुलसीपत्र नैवेद्य पर एवं एक पत्ता नागदेवता के चरणों में चढाएं । आगे दिए मंत्रों में ‘समर्पयामि’ कहते समय आचमनी से दाएं हाथ पर पानी लेकर ताम्रपात्र में छोडें ।)
ॐ अनन्तादिनागदेवताभ्यो नमः । नैवेद्यं समर्पयामि ।
(अनंतादि नागदेवताओं को मैं नैवेद्य अर्पण करता हूं ।)
मध्ये पानीयं समर्पयामि ।
(बीच में पीने के लिए पानी अर्पण करता हूं ।)
उत्तरापोशनं समर्पयामि ।
(आपोशन के लिए पानी अर्पण करता हूं ।)
हस्तप्रक्षालनं समर्पयामि ।
(हाथ धोने के लिए पानी अर्पण करता हूं ।)
मुखप्रक्षालनं समर्पयामि ।
(मुख धोने के लिए पानी अर्पण करता हूं ।)
करोद्वर्तनार्थे चन्दनं समर्पयामि ।
(हाथों में लगाने के लिए चंदन अर्पण करता हूं ।)
मुखवासार्थे पूगीफलताम्बूलं समर्पयामि ।
(मुखवास के लिए पान-सुपारी अर्पण करता हूं ।)
ॐ अनन्तादिनागदेवताभ्यो नमः । मङ्गलार्तिक्यदीपं समर्पयामि ।
(अनंतादि नागदेवताओं को नमस्कार कर मंगलारती अर्पण करता हूं ।)
ॐ अनन्तादिनागदेवताभ्यो नमः । कर्पूरदीपं समर्पयामि ।
(अनंतादि नागदेवताओं को नमस्कार कर कपूर की आरती कर रहा हूं ।)
(कपूर की आरती करें ।)
ॐ अनन्तादिनागदेवताभ्यो नमः । नमस्कारान् समर्पयामि ।
(अनंतादि नागदेवताओं को नमस्कार करता हूं ।)
(दंडवत प्रणाम (साष्टांग नमस्कार) करें ।)
ॐ अनन्तादिनागदेवताभ्यो नमः । प्रदक्षिणां समर्पयामि ।
(अनंतादि नागदेवताओं को नमस्कार कर प्रदक्षिणा कर रहा हूं ।)
(घडी की सुइयों की दिशा में, अर्थात बाएं से दाईं ओर वर्तुलाकार में घूमते हुए प्रदक्षिणा करें ।)
श्रावणे शुक्लपञ्चम्यां यत्कृतं नागपूजनम् ।
तेन तृप्यन्तु मे नागा भवन्तु सुखदाः सदा ॥
अज्ञानाज्ज्ञानतो वाऽपि यन्मया पूजनं कृतम् ।
न्यूनातिरिक्तं तत्सर्वं भो नागाः क्षन्तुमर्हथ ॥
युष्मत्प्रसादात्सफला मम सन्तु मनोरथाः ।
सर्वदा मत्कुले मास्तु भयं सर्पविषोद्भवम् ॥
(श्रावण शुक्ल पंचमी को मैंने जो नागपूजन किया है, उस पूजन से नागदेवता प्रसन्न होकर मुझे सदैव सुख प्रदान करें । हे नागदेवताओ, अज्ञानवश अथवा जाने-अनजाने में मुझसे कोई भूल हो गई हो, तो मुझे क्षमा करें । आपकी कृपा से मेरे सर्व मनोरथ पूर्ण हों । मेरे कुल में कभी भी सर्पविष से भय उत्पन्न न हो ।)
ॐ अनन्तादिनागदेवताभ्यो नमः । प्रार्थनां समर्पयामि ।
(अनंतादि नागदेवताओं को नमस्कार कर प्रार्थना करता हूं ।)
(हाथ जोडकर प्रार्थना करें ।)
आवाहनं न जानामि न जानामि तवार्चनम् ।
पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वर ॥
(हे परमेश्वर, मैं ‘तुम्हारा आवाहन कैसे करूं, तुम्हारी उपासना कैसे करूं, तुम्हारी पूजा कैसे करूं’, यह नहीं जानता । इसलिए आप मुझे क्षमा करें ।)
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वर ।
यत्पूजितं मया देव परिपूर्णं तदस्तु मे ॥
(हे देवेश्वर, मंत्र, क्रिया अथवा भक्ति मैं कुछ भी नहीं जानता, ऐसा होते हुए भी मेरे द्वारा की हुई पूजा परिपूर्ण होकर आपके चरणों में अर्पण होने दें ।)
कायेन वाचा मनसेन्द्रियैर्वा बुद्ध्यात्मना वा प्रकृतिस्वभावात् ।
करोमि यद्यत् सकलं परस्मै नारायणायेति समर्पये तत् ॥
(हे नारायण, शरीर से, वाणी से, मन से, (अन्य) इंद्रियों से, बुद्धि से, आत्मा से अथवा प्रकृति स्वभावानुसार मैं जो भी करता हूं, वह सर्व मैं आपको अर्पण कर रहा हूं ।)
अनेन कृतपूजनेन अनन्तादिनवनागदेवता: प्रीयन्ताम् ।
(इस पूजन से अनंतादि नागदेवता प्रसन्न हों ।)
(ऐसा कहकर दाएं हाथ में पानी लेकर, ताम्रपात्र में छोडें एवं दो बार आचमन करें ।)
सायंकाल विसर्जन के समय आगे दिया श्लोक कहकर पूजे गए नागदेवताओं के चरणों में अक्षता चढाकर विसर्जन करें ।
यान्तु देवगणाः सर्वे पूजामादाय पार्थिवात् ।
इष्टकामप्रसिद्ध्यर्थं पुनरागमनाय च ॥
(पूजा स्वीकार कर सर्व देवता इष्टकामसिद्धि के लिए पुन: आने हेतु अपने-अपने स्थान के लिए प्रस्थान करें ।)
टिप्पणी
१. कुछ स्थानों पर कुलपरंपरा के अनुसार शाम को कथावाचन कर विर्सजन करते हैं । ऐसी कुछ परंपराएं हों, तो उनका पालन करें ।
२. कुछ स्थानों पर पूजन करने के लिए घर के बाहर द्वार के दोनों ओर की भीत (दीवार) पर नागदेवताओं के चित्र बनाकर पूजा करते हैं ।
३. कुछ स्थानों पर प्रत्यक्ष नाग की पूजा की जाती है ।
४. कुछ स्थानों पर एक ही नाग का चित्र बनाकर पूजा की जाती है ।
पूजन के उपरांत नागदेवता से की जानेवाली प्रार्थना !
‘हे नागदेवता, श्रावण शुक्ल पक्ष पंचमी को मैंने जो यह नागपूजन किया है, इस पूजन से नागदेवता प्रसन्न होकर मुझे सदैव सुख देनेवाले हों । हे नागदेवता, मैंने यह जो पूजन किया है, उसमें अज्ञानवश अथवा जाने-अनजाने में कुछ भूल हुई हो, तो मुझे क्षमा करें । आपकी कृपा से मेरे सर्व मनोरथ पूर्ण हों । मेरे कुल में कभी भी नागविष से भय उत्पन्न न हो’, ऐसी आपके चरणों में प्रार्थना है ।’