गुरुपूर्णिमा पूजाविधि (संपूर्ण गुरु पूजन मंत्र एवं अर्थसहित)

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आषाढ पूर्णिमा अर्थात व्यासपूजन अर्थात गुरुपूर्णिमा । इस दिन ईश्वर के सगुण रूप अर्थात गुरु का पूजन करते हैं । प्रस्तुत लेख में गुरुपूजन की विधि दी है । पूजा के मंत्रों का अर्थ समझने से पूजन अधिक भावपूर्ण होने में सहायता होती है । इस दृष्टि से यहां संभवतः प्रत्येक मंत्र के सामने उसका हिन्दी में अर्थ / भावार्थ दिया है । इसके अनुसार श्री गुरुपूजन कर सभी साधक, शिष्य आदि पर गुरुकृपा हो, यही श्री गुरुचरणों में प्रार्थना है !

 

गुरु पूजन की तैयारी करने के संदर्भ में कुछ सूचनाएं

अ. गुरुपरंपरा पूजन के लिए लकडी के पूजाघर अथवा चौकी पर सजावट करें । थर्माकोल की सजावट से अच्छे स्पंदन नहीं आते, इसलिए थर्माकोल का उपयोग न करें ।

आ. पूजा के पूर्व व उपरांत चौकी के आसपास की जगह व्यवस्थित व साफ-सुथरी हो, उदा. बंदनवार, फूल आदि अव्यवस्थित न पडे हों ।

इ. पूजन के लिए श्री गुरु का छायाचित्र केले के प‍तों की सजावट में ऱखें (अन्य कही भी न रखें) अथवा महर्षि व्यासजी की प्रतिमा का पूजन करें ।

ई. श्री गुरुपरंपरा के छायाचित्र फूलों से पूर्णतः ढंके हुए न हों । सभी भक्त श्री गुरु के दर्शन व्यवस्थित कर पाएं, इस प्रकार हार और फूल चढाएं ।

 

पूजा में बैठनेवालों के लिए सूचना

अ. पति-पत्नी स्नान कर स्वच्छ धुले हुए वस्त्र पहनकर पूजा के लिए बैठें । पति शरीर पर उपरनी (गमछा) लेकर बैठे । पत्नी, पति के दाईं ओर बैठे । पूजन करते समय गीले हाथ पोंछने के लिए एक वस्त्र रखें ।

आ. अपने समक्ष पानी से भरा हुआ लोटा (कलश), प्याला (पानी पीने के एक छोटे गिलास जैसा)-आचमनी व ताम्रपात्र रखें तथा एक थाली में हलदी, कुमकुम, अक्षत, चंदन, फूल आदि पूजासामग्री होनी चाहिए ।

इ. प्रत्येक विधि के समय पत्नी अपना दायां हाथ पति के दाएं हाथ को लगाए ।

ई. पूजा के समय पूजा की ओर ही ध्यान दें । आवश्यकता अनुसार ही बोलें ।

उ. अपने समक्ष प्रत्यक्ष सद्गुरु बैठे हैं और हम उनकी पूजा कर रहे हैं, ऐसा भाव होना चाहिए ।

ऊ. श्री गुरु की आरती बोलने से पूर्व उस आरती का भावार्थ समझ लें । इससे भावजागृति होने में सहायता होती है ।

 

पूजा के लिए आवश्यक सामग्री

श्री गुरु की प्रतिमा, कुमकुम, हल्दी, चंदन, सिंदूर, अक्षत, अगरबत्ती, बाती, कपूर, रंगोली, चौकी, कलश, एक प्याला व आचमनी, ताम्रपात्र (तीन), समई (दो), समई के नीचे रखने के लिए छोटी थाली (दो), नीरांजन, पंचारती, घंटी, माचिस, कपास का वस्त्र, नारियल (पांच), चावल (एक किलो), सुपारियां (पांच), बीडे के पत्ते (बीस), पांच प्रकार के फल (प्रत्येक २), सिक्के (१ अथवा २ रूपए के), गुड, खोपरा अर्थात सूखा नारियल (एक), अगरबत्तीका स्टैंड, (अगरबत्ती घर और नीचे रखनेके लिए थाली), मेहराब (मखर) सजाने का साहित्य, फूल व हार, दो पीढे, तुलसी, दूर्वा, बेल, चौकी सजाने के लिए फूल, तेल (समई में डालने के लिए), घी (निरांजन में डालने के लिए)

 

पूजा की रचना

चौकी अथवा पूजाघर पूर्व अथवा पश्चिम दिशा में रखें । श्री गुरुपरंपरा के चित्र अपनी ओर मुख कर रखें । प्रत्येक चित्र के आगे की चौकी पर बीडे के २ पत्ते, सुपारी एवं १ रुपए का सिक्का, १ बीडे का पत्ता रखें व साथ में नारियल रखें । नारियल रखते समय नारियल की शिखा फोटो की ओर होनी चाहिए । चौकी के नीचे एक थाली में ५ प्रकार के फल रखें । पूजाघर/चौकी के दोनों ओर समई रखें ।

 

गणपतिपूजन रचना

एक थाली में अथवा ताम्रपात्र में चावल डालकर उस पर नारियल रखें (नारियल की शिखा अपनी ओर होनी चाहिए) । साथ में बीडा रखें । नैवेद्य के लिए केले / गुड-खोपरा रखें । चौकी व गणपतिपूजन के लिए की गई रचना के समक्ष २ पीढे रखें । चौकी एवं पीढों को चारों ओर से रंगोली से सुशोभित करें ।

 

गुरु को वंदन कर पूजन प्रारंभ करते हैं ।

१. आचमन

आगे दिए नामों का उच्चारण करने पर प्रत्येक नाम के अंत में बाएं हाथ से आचमनी में पानी लेकर दाईं हथेली से पिएं ।

श्री केशवाय नमः । श्री नारायणाय नमः । श्री माधवाय नमः ।

‘श्री गोविंदाय नमः’ का उच्चारण कर हथेली पर पानी लेकर नीचे ताम्रपात्र में छोडें ।

अब आगे के नामों का क्रमानुसार उच्चारण करें ।

विष्णवे नमः । मधुसूदनाय नमः । त्रिविक्रमाय नमः । वामनाय नमः । श्रीधराय नमः । हृषीकेशाय नमः । पद्मनाभाय नमः । दामोदराय नमः । संकर्षणाय नमः । वासुदेवाय नमः । प्रद्युम्नाय नमः । अनिरुद्धाय नमः । पुरुषोत्तमाय नमः । अधोक्षजाय नमः । नारसिंहाय नमः । अच्युताय नमः । जनार्दनाय नमः । उपेन्द्राय नमः । हरये नमः । श्रीकृष्णाय नमः ।

(हाथ जोडें ।)

 

२. प्रार्थना

श्रीमन्महागणाधिपतये नमः।
(गणों के नायक श्री गणपति को मैं नमस्कार करता हूं ।)

इष्टदेवताभ्यो नमः ।
(मेरे आराध्य देवता को मैं नमस्कार करता हूं।)

कुलदेवताभ्यो नमः ।
(कुलदेवता को मैं नमस्कार करता हूं ।)

ग्रामदेवताभ्यो नमः ।
(ग्रामदेवता को मैं नमस्कार करता हूं ।)

स्थानदेवताभ्यो नमः ।
(यहां के स्थान देवता को मैं नमस्कार करता हूं ।)

वास्तुदेवताभ्यो नमः ।
(यहां की वास्तुदेवता को मैं नमस्कार करता हूं ।)

आदित्यादिनवग्रहदेवताभ्यो नमः ।
(सूर्यादि नौ ग्रहदेवताओं को मैं नमस्कार करता हूं ।)

सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः ।
(सर्व देवताओं को मैं नमस्कार करता हूं ।)

सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नमो नमः ।
(सर्व ब्राह्मणों को (ब्रह्म जाननेवालों को) मैं नमस्कार करता हूं ।)

अविघ्नमस्तु ।
(सर्व संकटों का नाश हो ।)

सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः । लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो गणाधिपः ॥
धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः । द्वादशैतानि नामानि यः पठेच्छृणुयादपि ॥
विद्यारंभे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा । संग्रामे संकटेचैव विघ्नस्तस्य न जायते ॥

(सुंदर मुख, एक दांत, धुंए के रंग, हाथी के समान कान, विशाल पेट, (दुर्जनों के नाश के लिए) विक्राल रूपवाले, संकटों का नाश करनेवाले, गणों के नायक धुएं के रंगवाले, गणों के प्रमुख, मस्तक पर चंद्र धारण करनेवाले तथा हाथी के समान मुखवाले इन श्री गणपति के बारा नामों का विवाह के समय, विद्याध्ययन प्रारंभ करते समय, (घर में) प्रवेश करते समय अथवा (घर से) बाहर निकलते समय, युद्ध पर जाते समय अथवा संकटकाल में जो पठन करेगा अथवा सुनेगा उसे विघ्न नहीं आएंगे ।)

शुक्लाम्बरधरं देवं शशिवर्णं चतुर्भुजम् । प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशान्तये ॥
(सर्व संकटों के नाश के लिए शुभ्र वस्त्र धारण किए हुए, शुभ्र रंगवाले, चार हाथवाले प्रसन्न मुखवाले देवता का (भगवान श्रीविष्णु का) मैं ध्यान करता हूं ।)

सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके । शरण्ये त्र्यंबके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते ॥
(सर्व मंगलों में मंगल, पवित्र, सभी का कल्याण करनेवाली, तीन आंखोंवाली, सभी का शरण स्थानवाली, शुभ्र वर्णवाली हे नारायणीदेवी, मैं नमस्कार करता हूं ।

सर्वदा सर्वकार्येषु नास्ति तेषाममङ्गलम् । येषां हृदिस्थो भगवान्मङ्गलायतनं हरिः ॥
(मंगल निवास में (वैकुंठ में) रहनेवाले भगवान श्रीविष्णु जिनके हृदय में रहते हैं, उनके सभी काम सदैव मंगल होते हैं ।)

तदेव लग्नं सुदिनं तदेव ताराबलं चन्द्रबलं तदेव । विद्याबलं दैवबलं तदेव लक्ष्मीपते तेऽङ्घ्रियुगं स्मरामि ॥
(हे लक्ष्मीपती (विष्णो), आपके चरणकमलों का स्मरण ही लग्न, वही उत्तम दिन, वही ताराबल, वही चंद्रबल, वही विद्याबल और वही दैवबल है ।)

लाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः । येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः ॥
(नीले रंगवाले, सभी का कल्याण करनेवाले (भगवान विष्णु) जिनके हृदय में वास करते हैं, उनकी पराजय कैसे होगी ! उनकी सदैव विजय ही होगी, उन्हें सर्व (इच्छित) बातें प्राप्त होंगी !)

यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थाे धनुर्धरः । तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम ॥
(जहां महान योगी (भगवान) श्रीकृष्ण और महान धनुर्धारी अर्जुन हैं, वहां ऐश्वर्य एवं जय निश्चित होती है, ऐसा मेरा मत और अनुमान है ।)

विनायकं गुरुं भानुं ब्रह्मविष्णुमहेश्वरान् । सरस्वतीं प्रणौम्यादौ सर्वकार्यार्थसिद्धये ॥
(सर्व कार्य सिद्ध होने के लिए प्रथम गणपति, गुरु, सूर्य, ब्रह्मा-विष्णु-महेश और सरस्वतीदेवी को नमस्कार करता हूं ।)

अभीप्सितार्थसिद्धयर्थं पूजितो यः सुरासुरैः । सर्वविघ्नहरस्तस्मै गणाधिपतये नमः ॥
(इच्छित कार्य पूर्ण होने के लिए देवता और दानवों को पूजनीय तथा सर्व संकटों का नाश करनेवाले गणनायक को मैं नमस्कार करता हूं ।)

सर्वेष्वारब्धकार्येषु त्रयस्त्रिभुवनेश्वराः । देवा दिशन्तु नः सिद्धिं ब्रह्मेशानजनार्दनाः ॥
(तीनों लोकों के स्वामी ब्रह्मा-विष्णु-महेश ये त्रिदेव (हमें) प्रारंभ किए हुए सर्व कार्याें में सफलता प्रदान करें ।)

 

३. देशकाल

अपनी आंखों पर पानी लगाकर आगे दिया देशकाल बोलें ।

श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य ब्रह्मणो द्वितीये परार्धे विष्णुपदे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे युगे युगचतुष्के कलियुगे प्रथमचरणे जम्बुद्वीपे भरतवर्षे भरतखण्डे दक्षिणपथे रामक्षेत्रे बौद्धावतारे आर्यावर्त देशे शालिवाहन शके अस्मिन् वर्तमाने व्यावहारिके शोभकृत् नाम संवत्सरे दक्षिणायने ग्रीष्म ऋतौ आषाढ मासे शुक्ल पक्षे पौर्णिमायां तिथौ (१७.०९ तक), इंदु वासरे, मूळ (११.०२ उपरांत पूर्वाषाढा) दिवस नक्षत्रे, ब्रह्मा (१५:४५ उपरांत ऐंद्र) योगे, विष्टि (६.४८ उपरांत बालव, १९.०९ उपरांत बव) करणे, धनु स्थिते वर्तमाने श्रीचंद्रे, मिथुन स्थिते वर्तमाने श्रीसूर्ये, मेष स्थिते वर्तमाने श्रीदेवगुरौ, कुंभ स्थिते वर्तमाने श्रीशनैश्चरे, शेषेषु सर्वग्रहेषु यथायथं राशिस्थानानि स्थितेषु एवङ् ग्रह-गुणविशेषेण विशिष्टायां शुभपुण्यतिथौ…

(महापुरुष भगवान श्रीविष्णु की आज्ञा से प्रेरित हुए ब्रह्मदेव के इस दूसरे परार्धा में विष्णुपद के श्रीश्वेत-वराह कल्प में वैवस्वत मन्वंतर के अठ्ठाइसवें युग के चतुर्युग के कलियुग के पहले चरण के आर्यावर्त देश के (जम्बुद्वीप पर भरतवर्ष में भरत खंड में दंडकारण्य देश में गोदावरी नदी के दक्षिण तट पर बौद्ध अवतार में रामक्षेत्र में) आजकल चल रहे शालिवाहन शक के व्यावहारिक शोभकृत् नामक संवत्सर की (वर्ष के) दक्षिणायन की ग्रीष्म ऋतु के आषाढ महिने की शुक्ल पक्ष में आज की पूर्णिमा तिथि को मूळ (११.०२ उपरांत पूर्वाषाढा) नक्षत्र के ब्रह्मा (१५:४५ उपरांत ऐंद्र) योग की शुभघडी पर, अर्थात उपरोक्त गुणविशेषों से युक्त शुभ एवं पुण्यकारक ऐसी तिथि को)

 

४. संकल्प

(दायें हाथ में अक्षत लेकर आगे दिया संकल्प बोलें ।)

मम आत्मनः परमेश्वर-आज्ञारूप-सकल-शास्त्र-श्रुतिस्मृति-पुराणोक्त-फल-प्राप्तिद्वारा श्री परमेश्वर-प्रीत्यर्थं सर्वेषां साधकानां शीघ्रातिशीघ्र आध्यात्मिक उन्नती सिद्ध्यर्थं गुरुकृपा प्राप्त्यर्थं च श्रीभृगुमहर्षेः आज्ञया सद्गुरुनाथदेवता-प्रीत्यर्थं श्रीगुरुपरंपरा पूजनम् अहं करिष्ये । तत्रादौ निर्विघ्नता सिद्ध्यर्थं महागणपतिपूजनं करिष्ये । शरीरशुद्ध्यर्थं दशवारं विष्णुस्मरणं करिष्ये । कलश-घण्टा-दीप-पूजनं च करिष्ये ।

(‘करिष्ये’ बोलने के पश्चात प्रत्येक बार बाएं हाथ से आचमनी भरकर पानी दाएं हाथ पर छोडें ।)

(मुझे स्वयं को परमेश्वर की आज्ञास्वरूप सर्व शास्त्र-श्रुति-स्मृति-पुराण का फल मिलकर परमेश्वर को प्रसन्न करने के लिए श्री सद्गुरुनाथ देवताओं को प्रसन्न करने के लिए श्रीभृगु महर्षि की आज्ञा से मैं श्रीगुरुपरंपरा की पूजा कर रहा हूं । उसमें पहले विघ्ननाशन के लिए महागणपतिपूजन कर रहा हूं । शरीर की शुद्धि के लिए दस बार विष्णुस्मरण कर रहा हूं तथा कलश, घंटी और दीपक की पूजा कर रहा हूं ।)

 

५. श्री गणपति पूजन विधि

(पूजाके ताम्रपात्र में चावल डालकर उस पर नारियल व पान रखें । नारियल पर गणपति का आवाहन आगे दिए गए मंत्र द्वारा करें व पूजा करें ।)

वक्रतुण्ड महाकाय कोटिसूर्यसमप्रभ । निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ॥
(मुडी हुई सूंड, विशाल शरीर, कोटि सूर्याें के प्रकाशवाले हे (गणेश) भगवान, मेरे सभी काम सदैव विघ्नरहित करें ।)

ऋद्धि-बुद्धि-शक्ति-सहित-महागणपतये नमो नमः ।
(ऋद्धि, बुद्धि और शक्ति सहित महागणपति को नमस्कार करता हूं ।)

महागणपतिं साङ्गं सपरिवारं सायुधं सशक्तिकम् आवाहयामि ।
(महागणपति को सर्वांग से अपने परिवार सहित अपने शस्त्रोंसहित और सर्वशक्तियों सहित आने का आवाहन करता हूं ।)

महागणपतये नमः । ध्यायामि ।
(महागणपति को नमस्कार कर ध्यान करता हूं ।)

महागणपतये नमः । आवाहयामि ।
(महागणपति को नमस्कार कर आवाहन करता हूं ।)
(नारियल पर अक्षत डालें ।)

महागणपतये नमः । आसनार्थे अक्षतान् समर्पयामि ।
(महागणपति को नमस्कार कर आसन के प्रति अक्षत अर्पण करता हूं ।)
(अक्षत चढाएं ।)

महागणपतये नमः । पाद्यं समर्पयामि ।
(महागणपति को नमस्कार कर पैर धोने के लिए जल अर्पण करता हूं ।)
(एक आचमनी से पानी डालें ।)

महागणपतये नमः । अर्घ्यं समर्पयामि ।
(महागणपति को नमस्कार कर अर्घ्य के लिए जल अर्पण करता हूं ।)
(एक आचमनी में जल लेकर उसमें चंदन और फूल डालकर वह जल नारियल पर डालें ।)

महागणपतये नमः । आचमनीयं समर्पयामि ।
(महागणपति को नमस्कार कर आचमन के लिए पानी अर्पण करता हूं ।)
(एक आचमनी भर कर पानी डालें ।)

महागणपतये नमः । स्नानं समर्पयामि ।
(महागणपति को नमस्कार कर स्नान के लिए पानी अर्पण करता हूं ।)
(एक आचमनी भर कर पानी डालें ।)

महागणपतये नमः । कार्पासवस्त्रं समर्पयामि ।
(महागणपति को नमस्कार कर वस्त्र अर्पण करता हूं ।)
(कपास का वस्त्र चढाएं ।)

महागणपतये नमः । उपवीतार्थे (यज्ञोपवीतं / अक्षतान्) समर्पयामि ।
(महागणपति को नमस्कार कर उपवीत के रूप में (जनेऊ / अक्षत) अर्पण करता हूं ।)
(जनेऊ अथवा अक्षत चढाएं ।)

महागणपतये नमः । चन्दनं समर्पयामि ।
(महागणपति को नमस्कार कर चंदन अर्पण करता हूं ।)
(नारियल को चंदन लगाएं ।)

ऋद्धिसिद्धिभ्यां नमः । हरिद्राकुङ्कुमं समर्पयामि ।
(ऋद्धि और सिद्धि को नमस्कार कर हलदी-कुमकुम अर्पण करता हूं ।)
(हलदी और कुमकुम चढाएं ।)

महागणपतये नमः । सिन्दूरं समर्पयामि ।
(महागणपति को नमस्कार कर सिंदूर अर्पण करता हूं ।)
(सिंदूर चढाएं ।)

महागणपतये नमः । अलङ्कारार्थे अक्षतान् समर्पयामि ।
(महागणपति को नमस्कार कर अलंकार के रूप में अक्षत अर्पण करता हूं ।)
(अक्षत चढाएं ।)

महागणपतये नमः । पूजार्थे कालोद्भवपुष्पाणि समर्पयामि ।
(महागणपति को नमस्कार कर पूजा के लिए वर्तमान काल में खिलनेवाले फूल अर्पण करता हूं ।)
(फूल चढाएं ।)

महागणपतये नमः । दूर्वाङ्कुरान् समर्पयामि ।
(महागणपति को नमस्कार कर दूर्वा अर्पण करता हूं ।)
(दूर्वा चढाएं ।)

महागणपतये नमः । धूपं समर्पयामि ।
(महागणपति को नमस्कार कर धूप अर्पण करता हूं ।)
(उदबत्ती से आरती करें ।)

महागणपतये नमः । दीपं समर्पयामि ।
(महागणपति को नमस्कार कर दीपक दिखाता हूं ।)
(निरांजन से आरती करें ।)

महागणपतये नमः । नैवेद्यार्थे गुडखाद्य (गूळ-खोबरे) नैवेद्यं निवेदयामि ।
(महागणपति को नमस्कार कर नैवेद्य के लिए गुड-खोपरा निवेदन करता हूं ।)
(गुड-खोपरे का नैवेद्य चढाएं ।)

प्रथम देवता के सामने भूमि पर आचमनी से जल डालें । अनामिका और मध्यमा से चौकोर घडी की दिशा में बनाएं । उस पर नैवेद्य रखें । दाएं हाथ में कुछ दूर्वा लें । उस पर आचमनी से पानी डालें तथा वह पानी सामने रखे हुए नैवेद्य के आसपास परिक्रमा की दिशा में फेरकर उस पर एक बार प्रोक्षण करें ।

(अपना बांया हाथ अपनी छाती पर रखकर दायां हाथ नैवेद्य से देवता तक निवाला खिलाते हैं वैसा ले जाएं । उस समय आगे दिए मंत्र बोलें)

प्राणाय स्वाहा ।
(यह प्राणों के लिए अर्पण कर रहा हूं ।)

अपानाय स्वाहा ।
(यह अपान के लिए अर्पण कर रहा हूं ।)

व्यानाय स्वाहा ।
(यह व्यान के लिए अर्पण कर रहा हूं ।)

उदानाय स्वाहा ।
(यह उदान के लिए अर्पण कर रहा हूं ।)

समानाय स्वाहा ।
(यह समान के लिए अर्पण कर रहा हूं ।)

ब्रह्मणे स्वाहा ।
(यह ब्रह्म को अर्पण कर रहा हूं ।)

एक दूर्वा नैवेद्य पर रखें ।

महागणपतये नमः । नैवेद्यं समर्पयामि ।
(महागणपति को नमस्कार कर नैवैद्य अर्पण करता हूं ।)

मध्ये पानीयं समर्पयामि ।
(बीच में पीने के लिए पानी अर्पण कर रहा हूं ।)

उत्तरापोशनं समर्पयामि ।
(आपोशन के लिए पानी अर्पण कर रहा हूं ।)

हस्तप्रक्षालनं समर्पयामि ।
(हाथ धोने के लिए पानी अर्पण कर रहा हूं ।)

मुखप्रक्षालनं समर्पयामि ।
(मुंह धोने के लिए पानी अर्पण कर रहा हूं ।)

करोद्वर्तनार्थे चन्दनं समर्पयामि ।
(हाथ पर लगाने के लिए चंदन अर्पण कर रहा हूं ।)

मुखवासार्थे पूगीफलताम्बूलं समर्पयामि ।
(मुखवास के लिए पान-सुपारी अर्पण कर रहा हूं ।)

दक्षिणां समर्पयामि ।
(दक्षिणा अर्पण कर रहा हूं ।)
(‘समर्पयामि’ कहते समय आचमनी से दाएं हाथ पर पानी लेकर ताम्रपात्र में छोडें ।)

महागणपतये नमः । कर्पूरदीपं समर्पयामि ।
(महागणपति को नमस्कार कर कर्पूर की आरती अर्पण करता हूं ।)
(कर्पूर से आरती करें ।)

अचिन्त्याव्यक्तरूपाय निर्गुणाय गुणात्मने । समस्तजगदाधारमूर्तये ब्रह्मणे नमः ॥
(मन की आकलनशक्ति से परे का, निराकार, निर्गुण, आत्मस्वरूपी, सर्व संसार के आधारभूत ब्रह्म को मैं नमस्कार करता हूं ।)

महागणपतये नमः । मन्त्रपुष्पाञ्जलिं समर्पयामि ।
(महागणपति को नमस्कार कर मंत्रपुष्पांजली अर्पण करता हूं ।)
(चंदन, फूल, अक्षत और दूर्वा नारियल पर चढाएं ।)

महागणपतये नमः । नमस्कारं समर्पयामि ।
(महागणपति को नमस्कार अर्पण करता हूं ।)
(नमस्कार करें ।)

महागणपतये नमः । प्रदक्षिणां समर्पयामि ।
(महागणपति को नमस्कार कर प्रदक्षिणा अर्पण करता हूं ।) (प्रदक्षिणा करें ।)

कार्यं मे सिद्धिमायांतु प्रसन्ने त्वयि धातरि ।
विघ्नानि नाशमायान्तु सर्वाणि गणनायक ॥
(हे गणपति, आपका अधिष्ठान होने पर तथा आप प्रसन्न होते हुए मेरा कार्य सिद्ध हो तथा उसमें आनेवाले संकटों का नाश हो ।)

अनया पूजया सकल-विघ्नेश्वर-विघ्नहर्ता महागणपतिः प्रीयताम् ।
(इस पूजा से सर्व संकटों का नाश करनेवाले महागणपति प्रसन्न हों ।)
(दाएं हाथ पर पानी लेकर ताम्रपात्र में छोडें ।)

तत्पश्चात शरीरशुद्धि के लिए दस बार श्रीविष्णु का स्मरण करें – नौ बार ‘विष्णवे नमो’ और अंत में ‘विष्णवे नमः ।’ बोलें ।

 

६. कलशपूजन

गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति । नर्मदे सिन्धुकावेरी जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरु ॥
(हे गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिंधु और कावेरी (नदियों) इस जल में वास करें )

कलशाय नमः ।
(कलश को नमस्कार करता हूं ।)

कलशे गङ्गादितीर्थान् आवाहयामि ।
(इस कलश में गंगादितीर्थाें का आवाहन करता हूं ।)

कलशदेवताभ्यो नमः ।
(कलशदेवता को नमस्कार करता हूं ।)

सकलपूजार्थे गन्धाक्षतपुष्पं समर्पयामि ।
(सर्व पूजा के लिए चंदन, फूल और अक्षत अर्पण करता हूं ।)
(कलश पर चंदन, फूल और अक्षत चढाएं ।)

 

७. घंटीपूजन

आगमार्थं तु देवानां गमनार्थं तु रक्षसाम् ।
कुर्वे घण्टारवं तत्र देवताह्वानलक्षणम् ॥
(देवताओं के आगमन के लिए और राक्षसों को जाने के लिए देवताओं को आवाहनस्वरूप घंटी नाद कर रहा हूं ।)

घण्टायै नमः ।
(घंटी को नमस्कार हो ।)

सकलपूजार्थे गन्धाक्षतपुष्पं समर्पयामि ।
(सर्व पूजा के लिए चंदन, फूल और अक्षत अर्पण करता हूं ।)
(घंटी को चंदन, फूल और अक्षत चढाएं ।)

८. दीपपूजन

भो दीप ब्रह्मरूपस्त्वं ज्योतिषां प्रभुरव्ययः ।
आरोग्यं देहि पुत्रांश्च मत: शान्तिं प्रयच्छ मे ॥
(हे दीपक, आप ब्रह्मस्वरूप हैं । ज्योतिषों के अचल स्वामी हैं । (आप) हमें आरोग्य दीजिए, पुत्र दीजिए, बुद्धि और शांति दीजिए ।)

दीपदेवताभ्यो नमः ।
(दीपक देवता को नमस्कार करता हूं ।)

सकलपूजार्थे गन्धाक्षतपुष्पं समर्पयामि ।
(सर्व पूजा के लिए चंदन, फूल और अक्षत अर्पण करता हूं ।)
(समई को चंदन, फूल और अक्षत चढाएं ।)

अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थाङ्गतोऽपि वा ।
यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ॥
((अंर्त-बाह्य) स्वच्छ हो अथवा अस्वच्छ हो, किसी भी अवस्था में हो । जो (मनुष्य) कमलनयन (श्रीविष्णु का) स्मरण करता है, वह भीतर तथा बाहर से शुद्ध होता है ।)
(इस मंत्र से तुलसीपत्र जल में भिगोकर पूजासामग्री तथा अपनी देह पर जल प्रोक्षण करें ।)

इसके पश्चात सद्गुरु का ध्यान करें ।

अथ ध्यानं –
(अब मैं (सद्गुरु का) ध्यान करता हूं ।)

ब्रह्मानन्दं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिं ।
द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्त्वमस्यादिलक्ष्यम् ।
एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षिभूतं ।
भावातीतं त्रिगुणरहितं सद्गुरं तं नमामि ॥
(ब्रह्मरूप, आनंदरूप, परमोच्च सुख देनेवाले, केवल ज्ञानस्वरूप, द्वन्द्वरहित, आकाश के समान (निराकार), ‘तत्त्वमसि’ वाक्य का लक्ष्य (वह आप हैं, ऐसा वेदवाक्य जिसे उद्देश्य कर है उन्हें), एक ही एक, नित्य, शुद्ध, स्थिर, सर्वज्ञ, सर्वसाक्षी, भावातीत, गुणातीत सद्गुरु को मैं नमस्कार करता हूं ।)

श्री सद्गुरुभ्यो नमः । ध्यायामि ।
(श्री सद्गुरु को नमन कर मैं ध्यान करता हूं ।)

(गुरुपूजन में आगे दिए १५ उपचार हैं, उनमें ३ से ६ विधियों के समय हाथ पर पानी लेकर वह गुरु के छायाचित्र पर न चढाकर, ‘प्रत्यक्ष श्री सद्गुरु सामने बैठे हैं तथा उनके चरणों पर जल चढा रहे हैं’, ऐसा भाव रखकर वह जल ताम्रपात्र में छोडें ।)

इसके पश्चात प्रत्येक विधि के समय निम्नांकित मंत्र बोलकर सद्गुरु की पूजा करें ।

नमो गुरुभ्यो गुरुपादुकाभ्यो नम: परेभ्य: परपादुकाभ्य: ।
आचार्यसिद्धेश्वरपादुकाभ्यो नमोऽस्तु लक्ष्मीपतिपादुकाभ्य: ॥
(गुरु को नमस्कार करता हूं । गुरु की पादुकाओं को नमस्कार करता हूं । परा के गुरु को (परात्पर गुरु को) नमस्कार करता हूं । परात्पर गुरु की पादुकाओं को नमस्कार करता हूं । ईश्वरप्राप्ति किए हुए आचार्य की पादुकाओं को नमस्कार करता हूं । लक्ष्मीपति श्रीविष्णु की पादुकाओं को नमस्कार करता हूं ।)

१. श्री सद्गुरुभ्यो नमः । आवाहयामि ।
(श्री सद्गुरु को नमस्कार कर आवाहन करता हूं । सद्गुरु को मन से आवाहन करें ।)

२. श्री सद्गुरुभ्यो नमः । आसनार्थे अक्षतान् समर्पयामि ।
(श्री सद्गुरु को नमस्कार कर आसन के प्रति अक्षत अर्पण करता हूं ।)
( प्रतिमा पर अक्षत चढाएं ।)

३. श्री सद्गुरुभ्यो नम: । पाद्यं समर्पयामि ।
(श्री सद्गुरु को नमस्कार कर पैर धोने के लिए पानी अर्पित करता हूं ।)
(ताम्रपात्र में पानी छोडें ।)

४. श्री सद्गुरुभ्यो नम: । अर्घ्यं समर्पयामि ।
(श्री सद्गुरु को नमस्कार कर अर्घ्य के लिए पानी अर्पित करता हूं ।)
(ताम्रपात्र में पानी छोडें ।)

५. श्री सद्गुरुभ्यो नम: । आचमनीयं समर्पयामि ।
(श्री सद्गुरु को नमस्कार कर आचमन के लिए पानी अर्पित करता हूं ।)
(ताम्रपात्र में पानी छोडें ।)

६. श्री सद्गुरुभ्यो नम: । स्नानं समर्पयामि ।
(श्री सद्गुरु को नमस्कार कर स्नान के लिए पानी अर्पित करता हूं ।)
(ताम्रपात्र में पानी छोडें ।)

७. श्री सद्गुरुभ्यो नम: । वस्त्रं समर्पयामि ।
(श्री सद्गुरु को नमस्कार कर वस्त्र अर्पित करता हूं ।)
(वस्त्र अर्पण करें ।)

८. श्री सद्गुरुभ्यो नमः । उपवीतं समर्पयामि ।
(श्री सद्गुरु को नमस्कार कर उपवीत अर्पण करता हूं ।)
(यज्ञोपवित अथवा अक्षत अर्पण करें और हाथ जोडें ।)

९. श्री सद्गुरुभ्यो नमः । चन्दनं समर्पयामि ।
(श्री सद्गुरु के चरणों में नमस्कार कर गंध अर्पित करें ।)
(गुरु के चरणों में गंध-पुष्प चढाएं ।)

१०. श्री सद्गुरुभ्यो नमः । मङ्गलार्थे कुङ्कुमं समर्पयामि ।
(श्री सद्गुरु को नमस्कार कर मंगल स्वरूप कुमकुम अर्पित करें ।)
(कुमकुम लगाएं ।)

११. श्री सद्गुरुभ्यो नमः । अलङ्कारार्थे अक्षतान् समर्पयामि ।
(श्री सद्गुरु को नमस्कार कर अलंकार के रूप में अक्षत अर्पित करें ।)
(अक्षत चढाएं ।)

१२. श्री सद्गुरुभ्यो नमः । पूजार्थे ऋतुकालोद्भवपुष्पाणि समर्पयामि ।
(श्री सद्गुरु को नमस्कार कर वर्तमान ऋतु में खिलनेवाले फूल अर्पण करता हूं ।)
(फूल अर्पण कर हार डालें ।)

१३. श्री सद्गुरुभ्यो नमः । धूपं समर्पयामि ।
(श्री सद्गुरु को नमस्कार कर धूप अर्पण करता हूं ।)
(गुरु की अगरबत्ती से आरती करें ।)

१४. श्री सद्गुरुभ्यो नमः । दीपं समर्पयामि ।
(श्री सद्गुरु को नमस्कार कर दीपक से आरती करता हूं ।)
(गुरु की निरांजन से आरती करें ।)

१५. श्री सद्गुरुभ्यो नमः । नैवेद्यं निवेदयामि ।
(श्री सद्गुरु को नमस्कार कर आगे रखा नैवेद्य निवेदन करता हूं ।)

प्रथम देवता के सामने भूमि पर आचमनी से जल डालें । अनामिका और मध्यमा से चौकोर घडी की दिशा में बनाएं । उस पर नैवेद्य रखें । दाएं हाथ में ६ तुलसी के पत्ते लें । उस पर आचमनी से पानी डालें तथा वह पानी सामने रखे हुए नैवेद्य के आसपास प्ररिक्रमा की दिशा में फेरकर उस पर एक बार प्रोक्षण करें । उन पर अपना बांया हाथ अपनी छाती पर रखकर दायां हाथ नैवेद्य से देवता तक निवाला खिलाते हैं वैसा ले जाएं ।

उस समय आगे दिए मंत्र बोलें –

प्राणाय स्वाहा ।
(यह प्राणों के लिए अर्पण कर रहा हूं ।)

अपानाय स्वाहा ।
(यह अपान के लिए अर्पण कर रहा हूं ।)

व्यानाय स्वाहा ।
(यह व्यान के लिए अर्पण कर रहा हूं ।)

उदानाय स्वाहा ।
(यह उदान के लिए अर्पण कर रहा हूं ।)

समानाय स्वाहा ।
(यह समान के लिए अर्पण कर रहा हूं ।)

ब्रह्मणे स्वाहा ।
(यह ब्रह्म को अर्पण कर रहा हूं ।)

श्री सद्गुरुभ्यो नमः । नैवेद्यं समर्पयामि ।
(श्री सद्गुरु को नमस्कार कर नैवेद्य अर्पण करता हूं ।)

मध्ये पानीयं समर्पयामि ।
(बीच में पीने के लिए पानी अर्पण कर रहा हूं ।)

उत्तरापोशनं समर्पयामि ।
(आपोशन के लिए पानी अर्पण कर रहा हूं ।)

हस्तप्रक्षालनं समर्पयामि ।
(हाथ धोने के लिए पानी अर्पण कर रहा हूं ।)

मुखप्रक्षालनं समर्पयामि ।
(मुंह धोने के लिए पानी अर्पण कर रहा हूं ।)

करोद्वर्तनार्थे चन्दनं समर्पयामि ।
(हाथ पर लगाने के लिए चंदन अर्पण कर रहा हूं ।)

मुखवासार्थे पूगीफलताम्बूलं समर्पयामि ।
(मुखवास के लिए पान-सुपारी अर्पण कर रहा हूं)
(‘समर्पयामि’ कहते हुए आचमनी से दाएं हाथ पर पानी लेकर ताम्रपात्र में छोडें ।)

अब हम सद्गुरु की आरती करते है !

श्री सद्गुरुभ्यो नमः । मङ्गलार्तिक्यदीपं समर्पयामि ।
(श्री सद्गुरु को नमस्कार कर मंगलारती अर्पण करता हूं ।)

 

९. आरती

‘ज्योत से ज्योत जगाओ ।’ अथवा परंपरानुसार गुरु की अन्य आरती बोलें ।
(मंगलारती करें ।)

श्री सद्गुरुभ्यो नमः । कर्पूरदीपं समर्पयामि ।
(श्री सद्गुरु को नमस्कार कर कर्पूर की आरती करता हूं । )
(कर्पूर की आरती करें ।)

श्री सद्गुरुभ्यो नमः । नमस्कारं समर्पयामि ।
(श्री सद्गुरु को नमस्कार करता हूं ।)
(सद्गुरु को साष्टांग नमस्कार करें ।)

श्री सद्गुरुभ्यो नमः । प्रदक्षिणां समर्पयामि ।
(श्री सद्गुरु को नमस्कार कर प्रदक्षिणा अर्पण करता हूं ।)
(घडी की सुइयों की दिशा में अर्थात बाईं ओर से दाईं ओर गोल घूमकर स्वयं के आसपास ३ प्ररिक्रमा करें ।)

श्री सद्गुरुभ्यो नमः । प्रार्थनां समर्पयामि ।
(श्री सद्गुरुओं को नमस्कार कर प्रार्थना अर्पण करता हूं ।)
(हाथ जोडकर प्रार्थना करें ।)

आवाहनं न जानामि न जानामि तवार्चनम् ।
पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वर ॥
(हे परमेश्वर, मैं नहीं जानता कि ‘आपको आवाहन कैसे करूं, आपकी उपासना कैसे करूं, आपकी पूजा कैसे करूं । आप मुझे क्षमा करें ।)

मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वर ।
यत्पूजितं मया देव परिपूर्णं तदस्तु मे ॥
(हे देवेश्वर, मंत्र, क्रिया अथवा भक्ति नहीं है, ऐसा मैं हूं तथा मेरी यह पूजा आप परिपूर्ण मान लीजिए । )

कायेन वाचा मनसेन्द्रियैर्वा बुद्ध्यात्मना वा प्रकृतिस्वभावात् ।
करोमि यद्यत् सकलं परस्मै सद्गुरवे इति समर्पये तत् ॥
(हे गुरुदेव, शरीर से, वाणी से, मन से, (अन्य) इंद्रियों से, बुद्धि से, आत्मा से अथवा प्रकृतिस्वभावानुसार मैं जो जो करता हूं, वह मैं आपको अर्पण कर रहा हूं ।)

अनेन कृतपूजनेन श्री गुरुपरंपरास्थ सद्गुरुः प्रीयंताम् ।
(किए गए इस पूजन से सद्गुरु प्रसन्न हों ।)
(यह कहकर दाएं हाथ पर पानी लेकर छोडें तथा दो बार आचमन करें ।)

 

१०. कृतज्ञता

श्री गुरुदेव की कृपा से आज का यह कार्यक्रम संपन्न हुआ, इसलिए उनके चरणों में कृतज्ञता व्यक्त कर रुकते हैं ।

गुरुपरंपरा पूजन के उपरांत विसर्जन के समय निम्नांकित श्लोक बोलें ।

यान्तु देवगणाः सर्वे पूजामादाय पार्थिवात् ।
इष्टकामप्रसिद्ध्यर्थं पुनरागमनाय च ॥
(पूजा स्वीकार कर सर्व देवता इष्टकामसिद्धि के लिए पुन: आने के लिए अपने-अपने स्थान पर प्रस्थान करें ।)

श्री गणपतिपूजन किए हुए नारियल पर अक्षत चढाकर श्री गणपति का विसर्जन करें ।

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