नमस्कार के लाभ

  • नमस्कार हमें आदर सिखाता है ।
  • नमस्कार से हम में लीनता आती है और अनेक सज्जन और साधुसंतों के संग का लाभ होता है ।
  • नमस्कार से प्राणी को सद्बुद्धि मिलती है; क्योंकि नमस्कार में अनुशासन है ।
  • नमस्कार के कारण क्रोध और अहंकार नष्ट होते हैं ।
  • नमस्कार से चित्त पर अंकित दोष नष्ट होते हैं, हमसे हुए अपराधों की क्षमा मिलती है और संतोष होता है ।
  • जब हम संपूर्ण भाव से भगवान की शरण जाते हैं, तब भगवान को हम पर कृपा करनी ही पडती है ।
  • नमस्कार से साधकों पर गुरु और देवता की कृपा होने से उनके आनंद में वृद्धि होती है ।
  • तनिक भी अहंभाव न रख नमस्कार करने से दोषों के पहाड भस्म हो जाते हैं, पतितजन पावन हो जाते हैं । लीनतापूर्वक नमस्कार कर शरणागत होने से भवसागर पार हो जाते हैं ।

 

 नमस्कार के आध्यात्मिक लाभ

१. जब हम ईश्‍वर अथवा संतों को नमस्कार करते हैं, तब हमारे मन में अपनेआप यह भाव उत्पन्न होता है कि आप श्रेष्ठ हैं और मैं कनिष्ठ । आप सर्वज्ञ हैं और मैं संपूर्ण अज्ञानी । ऐसा लगने पर हममें उनके प्रति अपनेआप विनम्रता बढने लगती है और उससे हमारा अहं न्यून होने में सहायता मिलती है । ईश्‍वर अथवा संतों को नमस्कार करने पर उनसे प्रक्षेपित सत्त्वतरंगें अथवा आनंदतरंगों के साथ उनके आशीर्वाद भी मिलते हैं । इससे हमारी आध्यात्मिक उन्नति वेग से होती है ।

२. नम्रता बढती है और अहं कम होता है ।

३. शरणागति और कृतज्ञता का भाव बढता है ।

 

व्यवहारिक लाभ

देवता अथवा संतों को नमन करने से उनकी गुणविशेषताएं और आदर्श कार्य हमारे आंखों के सामने उभर आता है । तब हम उसका अनुसरण करते हुए स्वयं को सुधारने का प्रयास करते हैं ।

 

नमस्कार एक बडा साधन क्यों है ?

नमस्कार के लिए कुछ खर्च नहीं करना पडता, कोई दुख सहन नहीं करना पडता अथवा किसी भी बाह्य उपकरण की आवश्यकता नहीं पडती । नमस्कार जैसा अन्य कोई सरल साधन नहीं है । नमस्कार का साधन सबसे श्रेष्ठ है । उसके कारण महान विभूतियों की कृपा होती है ।

 

हैलो के स्थान पर नमस्कार क्यों बोलना चाहिए ?

आज की पीढी पाश्‍चात्यों का अनुकरण करते हुए एक-दूसरे से मिलनेपर ‘हाई-हैलो’करती है अथवा मोबाईल पर बोलते समय ‘हैलो’ कहकर बोलना आरंभ करती है । यहां ध्यान में लेने योग्य सूत्र यह है कि हैलो शब्द का अर्थ क्या है ? तो केवल संवाद करने हेतु !

जिस ग्राहम बेल ने टेलिफोन का अविष्कार किया उसकी प्रियतमा का नाम हैलो था और उसने यह शब्द उसके साथ संवाद करते समय उपयोग किया था । इसका कोई अर्थ नहीं है । यह शब्दप्रयोग कर हमें क्या अनुभव होता है, यह देखेंगे ।

इसके विपरीत हमारी हिन्दू संस्कृति में राम राम, जय श्रीराम, जय श्रीकृष्ण, नमस्कार जैसे शब्द उपयोग किए जाते हैं । इससे देवताओं के नाम का उच्चारण होता है । हिन्दू संस्कृति इतनी महान है कि उसमें संवाद भी कैसे आरंभ करना है, इसकी भी पद्धति बताई है । इससे एक-एक शब्द से भगवान का स्मरण होता है, आत्मीयता बढती है, आदरभाव, विनम्रता, देवी-देवताओं का स्मरण आदि बढता है । देवी-देवता, गुरु, पितातुल्य एवं पूज्य व्यक्ति, साधुसंत इत्यादि महानुभावों के सामने मस्तक झुकाकर और हाथ जोडकर हमारा विनम्र भाव प्रकट करना सिखानेवाली हमारी हिन्दू संस्कृति है ।

 

हिन्दू धर्म की ध्वजा विश्‍व में फहरानेवाले स्वामी विवेकानंदजी !

किसी ने यदि पूछा कि ऐसा कौन युवा संन्यासी था, जिसने विश्‍वभर में भारत और हिन्दू धर्म की ध्वजा फहराई, तो सभी के मुख से नि:संकोच स्वामी विवेकानंदजी का ही नाम आता है । स्वामी विवेकानंदजी का अनुपम उदाहरण है । स्वामी विवेकानंद जब शिकागो गए, तब उन्हें देखकर कुछ व्यक्ति उनके सामने आए । उन्होंने स्वामीजी से कहा, ‘‘Hello, How are you?’’ तब स्वामीजी हाथ जोडकर बोले, ‘‘नमस्कार !’’ तब उन लोगों को ऐसा लगा कि इस साधु की भांति दिखनेवाले व्यक्ति को कदाचित अंग्रेजी नहीं आती होगी । तब उनमें से एक व्यक्ति को थोडी बहुत हिन्दी आती थी । वह उनसे बोला, ‘‘कैसे हैं आप ?’’ तब स्वामीजी ने कहा, ‘‘I am Fine. Thank you.’ तब उन सभी को बहुत आश्‍चर्य हुआ । उन्होंने स्वामीजी से पूछा कि जब हमने आपको अंग्रेजी में पूछा, तो आपने हिन्दी में उत्तर दिया और जब हमने हिन्दी में पूछा, तब आपने अंग्रेजी में उत्तर दिया । इसका क्या कारण है ? उसपर स्वामी विवेकानंदजी ने कहा, ‘‘जब आप अपनी संस्कृति का सम्मान कर रहे थे, तब मैं अपनी संस्कृति का सम्मान कर रहा था और जब आपने मेरी संस्कृति का सम्मान किया, तो मैंने भी आपकी संस्कृति का सम्मान किया ।’ इससे यह ध्यान में आता है कि वे अपनी संस्कृति की रक्षा को ही प्रधानता देते थे ।

जो व्यक्ति अपनी मातृभाषा, मातृभूमि और संस्कृति की रक्षा करता है और अपनी संस्कृति से जुडा होता है; वह ईश्‍वर से जुड जाता है । हम अपने धर्म के प्रति गर्व के रूप में आज से यह प्रयास करना आरंभ करेंगे कि जब हमें कोई मिले, तो हम उन्हें हाई, हैलो करने के स्थान पर हाथ जोडकर नमस्कार करेंगे । चलभाष अर्थात फोन पर बातें करते समय ‘हैलो’ कह कर बोलना आरंभ करने के स्थान पर ‘नमस्कार’ से अथवा देवता का नाम लेकर संवाद आरंभ करेंगे । उसके कारण हमारे और सामनेवाले व्यक्ति के मन पर हिन्दू धर्म की महानता अंकित होगी और हम सभी पर ईश्‍वर की कृपा होगी ।

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