अक्षय तृतीया : साढे तीन शुभ मुहूर्तों में से एक !

साढे तीन मुहुूर्तों में से एक पूर्ण मुहूर्त ‘अक्षय तृतीया’ पर तिलतर्पण करना, उदकुंभदान (उदककुंभदान) करना, मृत्तिका पूजन तथा दान करने का प्रघात है । इसका अध्यात्मशास्त्रीय आधार समझ लेते हैं । धर्म द्वारा प्रस्तुत लेख में बताया यह अध्यात्मशास्त्र सामान्य काल के लिए है । सबकुछ अनुकूल है एवं धर्म के अनुसार आचरण कर सकें, यह ‘संपत्काल ’ है ।

 

१. तिथि

‘वैशाख शुक्ल पक्ष तृतीया’

 

२. अक्षय्य तृतीया से सम्बन्धित व्हिडिओ 

 

३. महत्त्व

अ. ‘अक्षय तृतीया’ कृतयुग अथवा त्रेतायुगका आरंभदिन है ।

आ. अक्षय तृतीया की संपूर्ण अवधि, शुभ मुहूर्त ही होती है । इसलिए, इस तिथिपर धार्मिक कृत्य करनेके लिए मुहूर्त नहीं देखना पडता ।

इ. इस तिथि पर हयग्रीव अवतार, नरनारायण प्रकटीकरण तथा परशुराम अवतार हुए हैं ।

ई. इस तिथि पर ब्रह्मा एवं श्रीविष्णु की मिश्र तरंगें उच्च देवता लोकों से पृथ्वी पर आती हैं । इससे पृथ्वीपर सात्त्विकता की मात्रा १० प्रतिशत बढ जाती है । इस कालमहिमा के कारण इस तिथिपर पवित्र नदियों में स्नान, दान आदि धार्मिक कृत्य करने से अधिक आध्यात्मिक लाभ होते हैं ।

उ. इस तिथि पर देवता-पितर के निमित्त जो कर्म किए जाते हैं, वे संपूर्णतः अक्षय (अविनाशी) होते हैं । (संदर्भ : ‘मदनरत्न’)

 

४. अक्षय तृतीया पर करने योग्य कृत्य

अ. पवित्र जल में स्नान

अक्षय तृतीया के दिन पवित्र जल में स्नान करें । हो सके तो तीर्थक्षेत्र जाकर स्नान करें अन्यथा बहते पानी में स्नान करें । किसी कारणवश यह संभव नहीं है, तो घर में स्नान करते समय हम पवित्र नदियों के जल से ही स्नान कर रहे हैं, यह भाव रखकर जाप करें ।

आ. श्रीविष्णुपूजा, जप एवं होम

अक्षय तृतीया के दिन सातत्य से सुख-समृद्धि देनेवाले देवताओं के प्रति कृतज्ञता भाव रखकर उनकी उपासना करने से हम पर उन देवताओं की होनेवाली कृपा का कभी भी क्षय नहीं होता । इस दिन कृतज्ञता भाव से श्रीविष्णु सहित वैभवलक्ष्मी की प्रतिमा का पूजन करें । इस दिन होमहवन एवं जप-जाप करने में समय व्यतीत करें । प्रसिद्ध तीर्थस्थल बद्रीनारायण के कपाट भी इसी तिथि से पुनः खुलते हैं ।

 

इ. अक्षय तृतीया के दिन श्रीविष्णु का तत्त्व
आकर्षित एवं प्रसारित करनेवाली साति्त्वक रंगोलियां बनाना

विष्णुतत्त्वके स्पंदन आकर्षित एवं प्रक्षेपित करनेवाली रंगोलियां

ई. तिलतर्पण

तिल-तर्पण का अर्थ है, देवताओं एवं पूर्वजों को तिल एवं जल अर्पण करना । तर्पण का अर्थ है, देवता एवं पूर्वजों को जलांजलि; अर्थात अंजुली से जल देकर उन्हें तृप्त करना । पितरों के लिए दिया हुआ जल ही पितृतर्पण कहलाता है । पूर्वजों को अपने वंशजों से पिंड एवं ब्राह्मणभोजन की अपेक्षा रहती है, उसी प्रकार उन्हें जल की भी अपेक्षा रहती है । तर्पण करने से पितर संतुष्ट होते हैं । तिल सात्त्विकता का, तो जल शुद्ध भाव का प्रतीक है । देवताओं को श्‍वेत एवं पूर्वजों को काले तिल अर्पण करते हैं । काले तिल द्वारा प्रक्षेपित रज-तमात्मक तरंगों की सहायता से पृथ्वी पर अतृप्त लिंगदेह उनके लिए की जा रही विधि के स्थान पर सहज ही आ सकती हैं एवं विधि में से सहजता से अपना अंश ग्रहण कर वे तृप्त होती हैं ।

उ. दान

  • अक्षय तृतीया के दिन दिए गए दान का कभी क्षय नहीं होता ।
  • अक्षय तृतीया के दिन पितरों के लिए आमान्न अर्थात दान दिए जाने योग्य कच्चा अन्न, उदककुंभ; अर्थात जल भरा कलश, ‘खस’ का पंखा, छाता, पादत्राण अर्थात जूते-चप्पल आदि वस्तुओं का दान करने के लिए पुराणों में बताया है ।
उ १. सुपात्र व्यक्ति को क्यों दान करना चाहिए ?

अक्षय तृतीया के दिन किए दान से व्यक्ति के पुण्य का संचय बढता है । पुण्य के कारण व्यक्ति को स्वर्गप्राप्ति हो सकती है; परंतु स्वर्गसुख का उपभोग करने के उपरांत पुनः पृथ्वी पर जन्म लेना पडता है । मनुष्य का अंतिम ध्येय ‘पुण्यप्राप्ति कर स्वर्गप्राप्ति करना’ ही नहीं; अपितु ‘पाप-पुण्य के परे जाकर ईश्‍वरप्राप्ति करना’ होता है । इसलिए मनुष्य को सत्पात्रे दान करना चाहिए । सत्पात्र व्यक्ति को दान करने पर यह कर्म ‘अकर्म कर्म’ (अर्थात पाप-पुण्य का नियम लागू नहीं होता) हो जाता है तथा ऐसा करने से मनुष्य की आध्यात्मिक उन्नति होती है, अर्थात वह स्वर्गलोक में न जाकर उच्चलोक में जाता है ।

संत, धार्मिक कार्य करनेवाले व्यक्ति, समाज में धर्मप्रसार करनेवाली आध्यात्मिक संस्था तथा राष्ट्र एवं धर्म जागृति करनेवाले धर्माभिमानी को दान करें, कालानुरूप यही सत्पात्रे दान है ।

अक्षय तृतीया के दिन उदक कुंभ दान एवं तिल-तर्पण के साथ ही कुछ और भी कृतियां की जाती हैं । जैसे, अक्षय तृतीया के शुभ अवसर पर बीज बोए जाते हैं । इस दिन मृत्तिका पूजन, वृक्षारोपन आदि किया जाता है । साथ ही इस दिन से कुछ जगह प्याऊ खोले जाते हैं ।

महाराष्ट्र में अक्षय तृतीया का दिन महिलाओं के लिए विशेष महत्त्व रखता है । चैत्र शुक्ल तृतीया के दिन महिलाएं प्रतिष्ठापित चैत्र गौरी का विसर्जन करती हैं । चैत्र शुक्ल तृतीया से वैशाख शुक्ल तृतीया तक किसी मंगलवार, शुक्रवार अथवा किसी शुभदिन पर वे हल्दी-कुमकुम का स्नेहमिलन करती हैं ।

ऊ. मृत्तिकापूजन, मिट्टी को जैविक बनाना (केंचुआ उत्पन्न करना), बीज बोना एवं वृक्षारोपण

अक्षय तृतीयाके मुहूर्तपर बीज बोएं !
अक्षय तृतीयाके मुहूर्तपर बीज बोएं !

‘चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा’ तिथि स्वयं में एक शुभमुहूर्त है । इस दिन खेत जोतना और उसकी निराई का कार्य अक्षय तृतीया तक पूरा करना चाहिए । निराई के पश्चात, अक्षय तृतीया के दिन खेत की मिट्टी की कृतज्ञता भाव से पूजा करनी चाहिए । इसके पश्चात, पूजित मिट्टी को जैविक बनाकर उसमें बीज बोएं । अक्षय तृतीया के मुहूर्त पर बीज बोने को आरंभ करने से उस दिन वातावरण में सक्रिय दैवी शक्ति बीज में आ जाती है । इस से कृषि-उपज बहुत अच्छी होती है । इसी प्रकार से अक्षय तृतीया के दिन फल के वृक्ष लगाने पर वे अधिक फल देते हैं ।

ए. हलदी-कुमकुम

हलदी-कुमकुम
हलदी-कुमकुम

स्त्रियों के लिए यह दिन महत्त्वपूर्ण होता है । चैत्र मास में स्थापित चैत्रगौरी का इस दिन विसर्जन करना होता है । इस निमित्त वे हलदी-कुमकुम (एक प्रथा) भी करती हैं ।’

संदर्भ : सनातन – निर्मित ग्रंथ ‘त्यौहार, धार्मिक उत्सव एवं व्रत’

 

५. आपदा में धर्म का आचरण कैसे करें ?

हिन्दू धर्म ने आपातकाल के लिए धर्माचरण में कुछ विकल्प बताए हैं । इसे ‘आपद्धर्म’ कहते हैं । आपद्धर्म अर्थात ‘आपदि कर्तव्यो धर्मः ।’ इसका अर्थ है, आपदा में आचरण किया जानेवाला धर्म । वर्तमान में कोरोना प्रादुर्भाव की पृष्ठभूमि पर पूरे देश में लॉकडाउन है । इसी काल में अक्षय तृतीया आ रही है, इसलिए संपत्काल में बताए कुछ धार्मिक कृत्य इस समय हम नहीं कर पाएंगे । इस दृष्टि से प्रस्तुत लेख में धर्माचरण के रूप में क्या कर सकते हैं, इसका विचार भी किया गया है । यहां महत्त्वपूर्ण सूत्र यह है कि हिन्दू धर्म ने किस स्तर तक जाकर मानव का विचार किया है, यह सीखने के लिए मिलता है । इससे हिन्दू धर्म की एकमेवाद्वितीयता ध्यान में आती है ।

वर्तमान काल में हम घर से बाहर नहीं जा सकते । इस अनुषंग से आपद्धर्म के भाग के रूप में आगे दिए कृत्य कर सकते हैं –

अ. पवित्र स्नान

हम घर में ही गंगा का स्मरण कर स्नान करें, तो गंगास्नान का हमें लाभ होगा । इसलिए आगे दिए श्‍लोक का उच्चारण कर स्नान करें :

गंगेच यमुने चैव गोदावरी सरस्वती |
नर्मदे सिंधु कावेरी जलेस्मिन सन्निधि कुरु ||

आ. सत्पात्र को दान

वर्तमान में विविध ऑनलाइन सुविधाएं उपलब्ध हैं । अतः अध्यात्मप्रसार करनेवाले संतों अथवा ऐसी संस्थाआें को हम ऑनलाइन अर्पण कर सकते हैं । घर से ही अर्पण दिया जा सकता है ।

इ. उदकुंभ का दान

शास्त्र है कि अक्षय तृतीया के दिन उदकुंभ दान करें । इस दिन यह दान करने के लिए बाहर जाना संभव न होने के कारण अक्षय तृतीया के दिन दान का संकल्प करें एवं शासकीय नियमों के अनुसार जब बाहर जाना संभव होगा, तब दान करें ।

ई. पितृतर्पण

पितरों से प्रार्थना कर घर से ही पितृतर्पण कर सकते हैं ।

उ. कुलाचारानुसार अक्षय तृतीया पर किए जानेवाले धार्मिक कृत्य

उपरोक्त कृत्यों के अतिरिक्त कुलाचारानुसार अक्षय तृतीया पर कुछ अन्य धार्मिक कृत्य करते हों, तो देख लें कि वे वर्तमान शासकीय नियमों में बैठते हैं न ।

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