जातपंचायत आवश्यक या अनावश्यक ?

सनातन संस्था दृष्टीकोन

नंदुरबार जिले के कांजारभाट समाज की एक विधवा पर अनैतिक संबंध का आरोप कर उसे नग्न करने का दंड देने की जातपंचायत के निर्णय के कारण प्रसारमाध्यमों में जातपंचायत आवश्यक अथवा अनावश्यक ?, इस विषय पर चर्चा हो रही थी । इस संदर्भ में सनातन  संस्था का दृष्टिकोण आगे दिए अनुसार है ।

१. जातपंचायत का यह निर्णय निषेधार्ह है । इस प्रकार के निंदनीय, जंगली और अमानवीय निर्णय देनेवाली जातपंचायत के तथाकथित न्यायाधीशों को प्रस्थापित कानून के अनुसार कठोर दंड हो, इसके लिए हमारी भूमिका आग्रही होनी चाहिए ।

२. जातपंचायत का यह निर्णय एकप्रकार से विकृति है । ऐसी विकृत जातपंचायत चलाने के स्थान पर उन्हें बंद करना ही अधिक उचित होगा ।

३. देश में स्वतंत्र न्यायपालिका के होते जातपंचायतों को अब न्याय देने का कार्य न करते हुए केवल अपनी ही जाति में संस्कृति संवर्धन का कार्य करना चाहिए ।

४. किसी बात की कालानुसार जब निर्मिति होती है, तब उसके पीछे कार्यकारणभाव होता है । जातपंचायत अस्तित्व में क्यों आईं, इस पर विचार करने पर ध्यान में आएगा । स्वतंत्रता से पूर्व दंड का भय न होने से समाज में अनाचार न बढें, समझदारी से निर्णय हों, समाजव्यवस्था टिकी रहे, इसके साथ ही समाज पर नैतिक अंकुश रहे, इस उद्देश्य से प्रत्येक जाति की पंचायत निर्माण हुई । उत्पत्ति, स्थिति और लय, इस अध्यात्मशास्त्रीय नियमानुसार जिस वस्तु की उत्पत्ति हुई है, वह कालांतर में उसका लय होता है । आज राज्यसंविधान और भारतीय दंडविधान अस्तित्व में हैं । ऐसी परिस्थिति में भी काल की कसौटी पर जातपंचायत निरुपयोगी और कालबाह्य हो गईं हैं ।

५. जो चिरंतन होता है, उसमें चैतन्य होता है । जातपंचायत काल की कसौटी पर नहीं टिकीं; कारण यह कि उसमें चैतन्य नहीं था । इसलिए आज समाज में जातपंंचायतों का महत्त्व घटने लगा है । वैदु समाज समान अनेक समाजों ने जातपंचायत को समाप्त कर दिया है । जातपंचायतों में बढती विकृति, यही उसका विनाश का घंटा है ।

६. जब तक जातपंचायत में अनुशासन, परस्परसामंजस्य और संस्कृति का संवर्धन होता है, तब तक जातपंचायतों का विरोध करने का किसी के पास कारण नहीं था । अनेक जातपंचायतों ने अपनी जाति के लिए विधायक कार्य कर संस्कृति संवर्धन का अच्छा कार्य किया । आज अनेक स्थानों पर जातपंचायतों में विकृति का समावेश हो गया है । अमानवीय और अनैतिक निर्णय होने लगे हैं । इससे ऐसी जातपंचायतों का विरोध करना, यह काल की आवश्यकता है; परंतु उसके साथ ही आज भी जो कुछ जातपंचायतें संस्कृति संंवर्धन का उत्तम और नैतिक कार्य कर रही हैं, उनका विरोध करना अयोग्य होगा ।

संदर्भ : दैनिक सनातन प्रभात

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