
रामनाथी (गोवा) : सनातन का रामनाथी आश्रम एक शिवक्षेत्र है और इस स्थान को भगवान शिवजी के आशीर्वाद प्राप्त हैं । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी मनुष्यरूप में भगवान शिवजी ही हैं और वहीं आश्रम में धर्मकार्य करवा ले रहे हैं । सनातन संस्था के सभी साधकों को मेरा पूर्ण आशीर्वाद है । सनातन के आश्रमों की उत्तरोत्तर एवं तीव्रगति से प्रगति होगी और वह काल शीघ्र ही आएगा । देखते-देखते कुछ ही मासों में सनातन के आश्रम से हो रहा धर्मकार्य समस्त विश्व में फैलेगा । इस कार्य के लिए मेरा सदैव अनुग्रह है । कार्तिक शुक्ल पक्ष नवमी के मंगल दिवसपर (६ नवंबर) श्री श्री श्री बालमंजुनाथ स्वामीजी के माध्यम से उक्त आशीर्वचन दिया । ६ नवंबर को यहां के सनातन आश्रम में कर्नाटक के तुमकूर जनपद के हंगरहळ्ळी (तहसील कुणीगल) की श्री श्री विद्याचौडेश्वरीदेवी का मंगलमय वातावरण में आगमन हुआ । तब पूजन के पश्चात देवी ने साधकों को आशीर्वचन दिया । इस अवसरपर सनातन संस्था के संत प.पू. दास महाराज, सद्गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी, पू. संदीप आळशी, पू. पृथ्वीराज हजारे, पू. सीताराम देसाई, पू. (श्रीमती) मालिनी देसाई, पू. पद्माकर होनप, पू. (श्रीमती) सुमन नाईक, पू. (श्रीमती) माया गोखले एवं बालसंत पू. भार्गवराम प्रभु और पू. वामन राजंदेकरसहित अन्य संतों की वंदनीय उपस्थिति थी ।

सनातन आश्रम में सनातन संस्था के संत पू. (डॉ.) मुकुल गाडगीळ ने देवी का पूजन किया । इस अवसरपर सनातन संस्था के ६२ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर के साधक पुरोहित श्री. दामोदर वझे ने दुर्गा सप्तशति का पाठ किया ।


१. श्री श्री श्री बालमंजुनाथ स्वामीजी द्वारा सनातन संस्था,
सनातन आश्रम एवं सनातन के साधकों के प्रति व्यक्त गौरवोद्गार !
अ. देवी चाहे आश्रम में हो अथवा उसके स्थानपर; उसके मन में सदैव सनातन संस्था के विचार ही रहेंगे !
जब देवी का शुभागमन हुआ तब गोधुली लग्न था (अर्थात जिस समयपर गायें घर लौटती हैं, उनके चलने से जो धूल उडती है, उसे हिन्दी भाषा में ‘गोधूली बेला’ कहते हैं ।) यहां स्वामीजी ने ‘गोधूली लग्न’ शब्द का उपयोग किया है । इस समय शास्त्रोक्त पूजन हुआ, जो शुभसंकेत है । देवी चाहे यहां (सनातन आश्रम) में हो अथवा उसके मूल स्थानपर; उसके मन में सदैव सनातन संस्था के विचार ही रहेंगे । संस्था को उसके सदैव आशीर्वाद होंगे । देवी (साधकों को होनेवाले) सभी कष्टों का निवारण करेंगी ।
आ. आनेवाले समय में सनातन का रामनाथी आश्रम विश्वदीप बनेगा !
देवीपूजन के समय उसकी दोनों बाजू में दीवटें प्रज्वलित की गई थी । उनमें का एक दीवट शीघ्र ही शांत हुआ । स्वामीजी को इसके पीछे का शास्त्र पूछे जानेपर उन्होंने कहा, ‘‘देवी का आगमन सायंकाल ५.५० बजे हुआ । इस समय के अंकों का जोड (५+५=१० और १+०=१) १ होता है । देवी के आगमन के उपलक्ष्य में रखे गए शुभकलशों की संख्या भी १० है और उसका भी जोड १ बनता है । १ दीवट शांत होकर अन्य दीवट की बत्तियां प्रज्वलित ही रहीं । यह देवी का आशीर्वाद है । आनेवाले समय में सनातन का रामनाथी आश्रम विश्वदीप बनेगा ।
इ. जबतक चंद्र एवं सूर्य हैं, तबतक देवी सनातन आश्रम की रक्षा करेंगी !
‘आपको सनातन आश्रम का परिचय कैसे हुआ ?’, इसपर स्वामीजी ने कहा, ‘‘देवी के मंदिर में सनातन आश्रम के एक साधक अपना प्रश्न लेकर दर्शन के लिए आए थे ।
उनके प्रश्न का समाधान बताते हुए देवीने कहा,‘‘जबतक चंद्र और सूर्य हैं, तबतक मैं आपका आश्रम और आश्रम के साधकों की रक्षा करती रहूंगी । मेरा अनुग्रह (आशीर्वाद) सदैव आपपर रहेगा ।’’
ई. आश्रम आनेपर देवी का बहुत आनंदित हो जाना !
सनातन आश्रम के संदर्भ में देवी का उत्तर सुनकर स्वामीजी के मन में ‘देवी द्वारा बताया जा रहा यह आश्रम कौनसा है ?’, यह कौतुहल उत्पन्न हुआ । उन्होंने इस संदर्भ में प्रश्न लेकर आए साधक से पूछा । कुछ समय पश्चात ‘देवी ने जैसा कहा था, वैसे ही हुआ’, ऐसा उस साधक ने बताया और ‘देवी का आशीर्वाद प्राप्त होने हेतु सनातन के रामनाथी आश्रम आने का निमंत्रण दिया । स्वामीजी ने देवी से आश्रम जाने के लिए पूछा, तब देवी ने कहा, ‘‘मुझे ऐसे आश्रम के जाने से आनंद ही होगा !’’ आश्रम जाने हेतु देवी ने कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के नवमी का दिन चुना । देवी द्वारा बताए जाने के अनुसार बुधवार, ६ नवंबर को आश्रम में उसका आगन हुआ । आश्रम आनेपर देवी को बहुत आनंद हुआ । विविध दैवीय अनुभूतियां और संकेतों के माध्यम से देवी ने इस आनंद को दर्शाया ।
उ. संख्याशास्त्र के अनुसार देवी के आगमन के संदर्भ में प्राप्त शुभसंकेत !
स्वामीजी ने देवी के आगमन के संबंध में प्राप्त शुभसंकेतों से अवगत कराया । उन्होंने कहा, ‘‘सायंकाल ५.५० बजे देवी का आश्रम में आगमन हुआ । इस क्षण आगमन होने से अनिष्ट शक्तियों के सभी कष्ट दूर होनेवाले हैं । ५ और ५० का जोड ५५ होता है । ५५ में से ५ और ५ इन अंकों का जोड १० होता है । १० मे से १ और ० से १ शेष रहता है । सूर्य एकमात्र है और सनातन संस्था भी एकमात्र है । संख्याशास्त्रानुसार भी देवी ने ‘सनातन संस्था की शीघ्रातिशीघ्र उत्तरोत्तर प्रगति होनेवाली है, यह अनुग्रह (आशीर्वाद) दिया है ।
२. आश्रम आनेपर बहुत आनंद मिला ! – श्री श्री श्री बालमंजुनाथ स्वामीजी
सनातन आश्रम में देवी का आगमन होना, विशेष बात है; क्योंकि साक्षात देवी ने ही परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के मस्तकपर अपना मुकुट रखकर आशीर्वाद दिया है । इस माध्यम से देवी ने ‘संस्था के कार्य के लिए सदैव अनुग्रह (आशीर्वाद) है’, यह बताया है । यहां के साधक दूध में मिलाई हुई चीनी की भांति मिलजुलकर रह रहे हैं । अतः यहां आकर मैं बहुत आनंदित हूं । हमारे आचार-विचार उत्तम होने चाहिएं । इस आश्रम में मैने ऐसे स्वभाववाले साधक देखें । कई लोग देवी को धन, भूमि, स्वर्ण आदि समर्पित कर सेवा करते हैं; किंतु तन-मन-धन समर्पित कर भक्तिभाव के साथ नामजप करते हुए जो भगवान का ध्यान करते हैं, वह बहुत बडी और वास्तविक सेवा है । इस आश्रम में मैने ऐसी सेवा देखी ।
३. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा श्री श्री श्री
बालमंजुनाथ स्वामीजी के प्रति व्यक्त गौरवोद्गार !
श्री श्री श्री बालमंजुनाथ स्वामीजी के प्रति गौरवोद्गार व्यक्त करते हुए परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने कहा, ‘‘देवी में जितना चैतन्य प्रतीत होता है, उतना ही चैतन्य स्वामीजी की ओर देखनेपर प्रतीत होता है ।’’
४. श्री विद्याचौडेश्वरीदेवी की भावभक्तिमय शोभायात्रा
श्री विद्याचौडेश्वरीदेवी का आश्रम में आगमन से पहले पारपतिवाडा (बांदोडा) से उनकी शोभायात्रा निकाली गई । इस शोभयात्रा के आरंभ में भगवा ध्वजधारी साधक, उनके पश्चात सिरपर कलश ली हुईं १० सुहागन महिलाएं एवं भक्त, मध्यभाग में छत्र-चामरसहित देवी की मूर्ति लिए हुए भक्त एवं स्वामीजी और उनके उपरांत भक्तगण, इस प्रकार से शोभायात्रा की रचना थी । मार्गपर ग्रामवासी श्रीमती ज्योति रामनाथकर ने देवी का औक्षण किया । दोनों ओर से ध्वज लगाए हुए मार्ग से शोभायात्रा के जाते समय भक्तगण उत्साह के साथ ‘श्री विद्याचौडेश्वरी देवी की जय हो’ तथा ‘जय भवानी, जय अंबे’ का जयघोष कर रहे थे ।
५. सद्गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी द्वारा देवी के औक्षण करने के समय सूर्यदेव के आशीर्वाद !
श्री विद्याचौडेश्वरीदेवी का सूर्यास्त से पहले आगमन अपेक्षित था । जैसे-जैसे सायंकाल का समय निकट आने लगा, वैसे आकाश बादलों से भरा था । शोभायात्रा के आरंभ में सद्गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी ने देवी को हल्दी-कुमकुम समर्पित कर औक्षण किया । इसके पश्चात बादल दूर होकर सूर्यप्रकाश आया । ऐसा लग रहा था कि मानो सूर्यदेव भी बादलों की आड से इस दृश्य को देख रहे हैं’ । उसके उपरांत शोभायात्रा मार्गस्थ हुई और सूर्यास्त से पहले देवी का आश्रम में प्रवेश हुआ ।
६. ऐसे हुआ श्री विद्याचौडेश्वरीदेवी का आश्रम में आगमन !
आश्रम के मुख्य प्रवेशद्वारपर भक्तगण जब श्री विद्याचौडेश्वरीदेवी की मूर्ति लेकर आए, तब ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर की साधिका श्रीमती वैशाली राजहंस ने देवी की कुदृष्टि उतारी । देवी का आश्रम में प्रवेश होते समय सनातन के पुरोहित श्री. ईशान जोशी ने शंखनाद किया । अत्यंत शारीरिक कष्ट होते हुए भी परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने देवी और श्री श्री श्री बालमंजुनाथ स्वामीजी को नमस्कार किया । आश्रम परिसर में नमस्कार की मुद्रा में खडे साधक, संत और देवी का वाहन गजप्रतिमा की ओर देखते सुहास्य मुद्रा में स्वामीजी और उनके शिष्य कालीन से मार्गस्थ हुए । द्वार के पास सनातन संस्था के संत पू. (डॉ.) मुकुल गाडगीळ ने श्री चौडेश्वरीदेवी, श्री श्री श्री बालमंजुनाथ स्वामीजी एवं परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का औक्षण कर उनकी पाद्यपूजा की । इस अवसरपर सनातन संस्था के ६२ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त पुरोहित श्री. दामोदर वझेगुरुजी एवं श्री. सिद्धेश करंदीकर ने वेदमंत्र एवं देवी के श्लोकों का पाठ किया । आशीर्वाद देने हेतु साक्षात् श्री विद्याचौडेश्वरीदेवी के आने से साधकया भावविभोर स्थिति में थे ।
प.पू. दास महाराज को प्रतीत हुआ कि आश्रम में देवी का शुभागमन होनेपर अप्सराओं ने सूक्ष्म से नृत्य किया । देवी ने अपना मुकुट परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजीपर रखा । तब देवताओं ने सूक्ष्म से पुष्पवर्षाव किया ।
७. देवी के स्वागत के लिए आश्रम में की गई सजावट
श्री विद्याचौडेश्वरीदेवी ने आश्रम में आने के संदर्भ में श्री श्री श्री बालमंजुनाथ स्वामीजी को स्वयं बताया था । उसके अनुसार ६ नवंबर को देवी का आश्रम में आगमन हुआ । देवी स्वयं आश्रम में आनेवाली थीं; इसलिए आश्रम में सजावट की गई थी । मुख्य प्रवेशद्वारपर रंगोली बनाई गई थी । आश्रम में सर्वत्र दीप प्रज्वलित किए गए थे, साथ ही देवी से संबंधित भक्तिगीत भी चलाए गए थे । इसके कारण आश्रम देवी के चैतन्य से भारित हुआ था ।
जो शक्ति चराचर में व्याप्त है, जिस शक्ति के कारण संपूर्ण विश्व संचालित होता है, उस आदिशक्ति के चरणों में वंदन !