प्राकृतिक खेती में हाट से खरीदी हुई खाद का उपयोग न करते हुए भी अधिक उत्पन्न प्राप्त करने का शास्त्र

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‘पौधों की बढत के लिए आवश्यक खनिज द्रव्य मिट्टी में होते हैं; परंतु पौधों की जडें द्रव्य सीधे ग्रहण नहीं कर सकतीं । मिट्टी के खनिज द्रव्य पौधों द्वारा अवशोषित होने के लिए पौधों के लिए उपयुक्त सूक्ष्म जीवाणुओं की आवश्यकता होती है । देशी गाय के केवल १ ग्राम गोबर में ३०० करोड से भी अधिक मात्रा में उपयुक्त सूक्ष्म जीवाणु होते हैं । अत्यंत ही थोडी मात्रा में गाय का गोबर, गोमूत्र, बेसन एवं गुड की सहायता से ‘जीवामृत’ नामक प्राकृतिक खाद बनती है । इसमें इन जीवाणुओं की संख्या बहुत अधिक होती है । मिट्टी में जीवाणु जितने अधिक, उतनी पौधों की मिट्टी से खनिज द्रव्य ग्रहण करने की क्षमता अधिक होती है । इसलिए पौधों से उत्पन्न भी अधिक मिलती है । अन्य किसी भी खाद का उपयोग न करते हुए केवल जीवामृत का उपयोग कर घर के घर ही में हरा शाक-तरकारी उगा सकेंगे । यह बहुत सरल एवं अल्प खर्चीला है । सभी को प्राकृतिक पद्धति से हरे शाक-तरकारी का रोपण करना चाहिए ।’ – श्रीमती राघवी मयूरेश कोनेकर, ढवळी, फोंडा, गोवा. (३०.७.२०२२)

जीवामृत के विविध घटकों की मात्रा एवं अन्य जानकारी के लिए भेट दें ।
मार्गिका : https://www.sanatan.org/hindi/a/35341.html

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