संत मुक्ताबाई !

संतश्रेष्ठ ज्ञानेश्वर महाराज की बहन संत मुक्ताबाई ने जलगांव जिले के एदलाबाद (आज का मुक्ताईनगर) में समाधि ली थी । मुक्ताबाई का जन्म इंद्रायणी नदी के तट पर बसे आळंदी गांव के निकट सिद्धबेट पर अश्विन शुद्ध प्रतिपदा शुक्रवार शके १२०१ अर्थात इ. सन. १२७९ में हुआ ।

महाराष्ट्र में सुप्रसिद्ध कुछ देवियों की जानकारी और उनका इतिहास

नवरात्रि में जिस देवी की पूजा की जाती है, वह देवी मानव के लिए जो उत्कृष्ट गुण होते हैं उनसे सुशोभित होती है । दुर्गा का स्तवन और पूजा करते समय अभिषेक के समय उनकी नामावली कही जाती है । उस नामावली से नारी में कौनसे गुण होने चाहिए, इसका निर्देश मिलता है ।

माघ स्नान (Magh Snan 2024)

माघ स्नान अर्थात माघ माह में पवित्र तीर्थक्षेत्रों के स्थान पर जलस्त्रोतों में किया स्नान । ब्रह्मा, विष्णु, महेश, आदित्य एवं अन्य सर्व देवता माघ माह में विविध तीर्थक्षेत्रों में आकर वहां स्नान करते हैं । इसलिए इस काल में माघ स्नान करने के लिए कहा है ।

माघी श्री गणेश जयंती (Ganesh Jayanti 2024)

गणेशलहरी जिस दिन प्रथम पृथ्वी पर आई, अर्थात जिस दिन गणेशजन्म हुआ, वह दिन था माघ शुद्ध चतुर्थी । तब से गणपति का और चतुर्थी का संबंध जोड दिया गया । माघ शुक्ल पक्ष चतुर्थी ‘श्री गणेश जयंती’ के रूप में मनाई जाती है ।

आश्विन पूर्णिमा (कोजागरी पूर्णिमा) को खंडग्रास चंद्रग्रहण, ग्रहण में किए जानेवाले कर्म और ग्रहण की राशिनुसार मिलनेवाला फल !

‘यह चंद्रग्रहण भारत के साथ संपूर्ण एशिया खंड, ऑस्ट्रेलिया, रूस, संपूर्ण यूरोप और अफ्रीका खंड के प्रदेशों में दिखाई देगा ।

श्रीकृष्ण की उपासना

भग‍वान श्रीकृष्ण की पूजा कैसे करें ?, भग‍वान श्रीकृष्ण को कौन सा फूल चढाते हैं ?, उसकी कितनी परिक्रमा करें ? इस संदर्भ में अधिक जान लें ।

संतश्रेष्ठ ज्ञानेश्वर महाराज

इनका जीवन अद्वैतरूपी धर्मसिद्धांत प्रस्तुत करनेवाला होता है । अत: इनके जीवन और इनकी मार्गदर्शनात्मक शैली को ब्रह्मरूपी कर्मसिद्धांत प्राप्त हाेने से ये सिद्धांत ब्रह्मवाक्य समान अनुकरणीय हो गए हैं ।

प.पू. भक्तराज महाराज की छायाचित्रात्मक स्मृतियां (भाग १) !

प.पू. भक्तराज महाराज के मध्यप्रदेश स्थित मोरटक्का एवं इंदौर के आश्रमों में जहां उनका वास्तव्य था, उस चैतन्यमयी वास्तु का छायाचित्रात्मक दर्शन लेंगे ।

प.पू. भक्तराज महाराजजी की छायाचित्रात्मक स्मृतियां (भाग २) !

प.पू. भक्तराज महाराज सनातन के संस्थापक परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के गुरु थे । उन्हीं के कृपाशीर्वाद से सनातन की स्थापना हुई । सनातन को प.पू. बाबा के उत्तराधिकारी प.पू. रामानंद महाराज का भी कृपाछत्र मिला । उनके आशीर्वाद से वर्ष १९९१ में स्थापित हुए सनातन के कार्य का विस्तार किसी ‍विशाल वटवृक्ष समान हो गया है । सनातन परिवार प.पू. बाबा के श्रीचरणों में कोटि-कोटि कृतज्ञ है !

व्यक्तिगत एवं सामाजिक स्तर पर ज्योतिषशास्त्र की उपयुक्तता

ज्योतिषशास्त्र, यह कालज्ञान का शास्त्र है । ‘कालमापन’ एवं ‘कालवर्णन’, उसके २ अंग हैं । कालमापन के अंतर्गत काल नापने के लिए आवश्यक घटक एवं गणित की जानकारी होती है । कालवर्णन के अंतर्गत काल का स्वरूप जानने के लिए आवश्यक घटकों की जानकारी होती है । कालवर्णन के दृष्टिकोण से ज्योतिषशास्त्र की व्यक्तिगत एवं सामाजिक स्तर पर उपयुक्तता इस लेख द्वारा समझ लेंगे ।