साधना में ध्येय साध्य करते समय पुनः-पुनः विफलता मिले, तो क्या करें ?

१. प्रथम स्तर ‘ध्येय मेें से जो कुछ थोडा-बहुत भी साध्य हुआ हो, उस संदर्भ में संतोष रखें तथा गुरु एवं ईश्‍वर के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करें । २. दूसरा स्तर विफलता के पीछे के कारणों को ढूंढना चाहिए । शारीरिक, मानसिक अथवा आध्यात्मिक में से वास्तविक कारण क्या है, इसका चिंतन करें । उन … Read more

बुद्धिप्रमाणवादी एवं कुंडलिनी शक्ति !

‘साधना करने पर कुंडलिनी शक्ति जागृत होती है । अभी तक के युगों में लाखों साधकों ने यह अनुभव किया है; परंतु साधना पर विश्वास न रखनेवाले बुद्धिप्रमाणवादी साधना किए बिना ही कहते हैं, ‘कुंडलिनी दिखाओ, नहीं तो वह है ही नहीं !’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले

शरीरशुद्धि का महत्त्व !

‘शरीर पहला वास्तु है। पहले उसकी शुद्धि का विचार करें, तदुपरांत बनाए हुए वास्तु (घर) का !’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले

ईश्वरप्राप्ति के संदर्भ में मनुष्य की लज्जाजनक उदासीनता !

‘धनप्राप्ति, विवाह, रोग-व्याधि इत्यादि अनेक कारणों के लिए अनेक लोग उपाय पूछते हैं; परंतु ईश्वर प्राप्ति के लिए उपाय पूछने का कोई विचार भी नहीं करता !’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले

नौकरी के लिए शैक्षिक पात्रता के साथ ही व्यक्तिगत गुण भी महत्त्वपूर्ण !

‘किसी भी क्षेत्र में किसी को केवल उसके शैक्षिक प्रमाण पत्र के आधार पर नौकरी न देते हुए उसके व्यक्तिगत गुण देखकर भी चुनाव करना आवश्यक है !’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले

संसार की सर्वश्रेष्ठ पदवी !

‘संसार के अनेक विषयों में अनेक पदवियां हैं। ‘डॉक्टरेट’ जैसी अनेक उच्च स्तर की पदवियां हैं; परंतु उनसे भी सर्वश्रेष्ठ पदवी है, ‘सच्चे गुरु’ का ‘सच्चा शिष्य’ !’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले

पूर्वकाल का परिवार की भांति एकत्र रहनेवाला समाज और आज का टुकड़े-टुकड़े हो चुका समाज !

‘पूर्वकाल में समाज में निहित सात्त्विकता, सामंजस्य, प्रेमभाव इत्यादि गुणों के कारण समाजव्यवस्था भलीभांति बनी रहे, इसके लिए कुछ करना नहीं पडता था । आज समाज में वे घटक निर्माण होने हेतु धर्मशिक्षा ही नहीं दी जाती। इस कारण कानून की सहायता लेकर समाजव्यवस्था भलीभांति बनाए रखने के दयनीय प्रयास किए जाते हैं।’ – सच्चिदानंद … Read more

जीवन के आरंभिक काल से साधना करने का महत्त्व !

‘अनेक पति-पत्नी जीवन भर लडते-झगडते रहते हैं और आगे बुढापे में उन्हें समझ में आता है कि ‘ कष्ट का उपाय केवल साधना करना ही है ।’ उस समय ‘जीवनभर साधना क्यों नहीं की’ इसका पश्चाताप करने के अतिरिक्त उनके पास कोई विकल्प नहीं होता ।’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले,

धर्मकार्य हेतु ईश्वर की कृपा कैसे प्राप्त करें ?

‘हमने ईश्वरप्राप्ति के लिए प्रयास किए, तो ईश्वर का ध्यान हमारी ओर आकर्षित होता है और हमारे द्वारा किए जा रहे धर्मकार्य के लिए ईश्वर की कृपा एवं आशीर्वाद प्राप्त होते हैं ।’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले

ईश्वरीय कानून एवं जमा खर्च का महत्त्व !

‘पृथ्वी के कानून और जमा-खर्च आदि सब व्यर्थ हैं । अंत में प्रत्येक को ईश्वरीय कानून एवं जमा-खर्च इत्यादि का सामना करना पडता है ।’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवले