साधकों पर प्रेम की बौछार करनेवाली श्रीमती अश्विनी पवार 69 वे संतपद पर विराजमान !

सनातन के देवद आश्रम के साधकों पर गुरुकृपा की बौछार !

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी

‘पृथक गुणों के आधार पर केवल 27 वे वर्ष में
69 वा समष्टि संतपद प्राप्त कर सनातन के इतिहास
में एक अनोखा पर्व निर्माण करनेवाली श्रीमती अश्विनी अतुल पवार !’

‘महालोक से पृथ्वी पर जन्मी श्रीमती अश्विनी ने युवावस्था में प्रथम देवद आश्रम में तथा पश्‍चात् रामनाथी आश्रम में गुरुकुल में निवास कर साधना की नींव दृढ की । उस समय उसने सद्गुरु (श्रीमती ) बिंदा सिंगबाळ की सीख का पूरीतरह से पालन किया । नियोजनकौशल्य, आज्ञापालन, उत्तम नेतृत्व, प्रेमभाव, साथ ही पूछकर करने की वृत्ती इत्यादि गुणों के कारण श्रीमती अश्विनी ने वर्ष 2013 से, अर्थात् आयु के 23 वे वर्ष से देवद आश्रम के साधकों को साधना के संदर्भ में मार्गदर्शन किया तथा यह मेरी चिंता भी दूर की कि, ‘देवद आश्रम के साधकों की साधना का व्यवस्थित कैसे होगी ?’

आज गुरुपूर्णिमा के दिन आयु के केवल 27 वे वर्ष में उसने सनातन के 69 वा समष्टि संतपद प्राप्त कर सनातन के इतिहास में एक अनोखा पर्व निर्माण किया है । इतनी अल्प आयु में भी संत बन सकते हैं, इस का अद्वितीय उदाहरण उसने सभी के सामने प्रस्तुत किया है । साधना मे प्रगति करते समय कुछ साधक बाल्य, वानस्पत्य अथवा पैशाचिक अवस्था से प्रगति करते हैं । बाल्याकस्था में संतपद तक कैसा मार्गक्रमण कर सकते हैं, यह हमें श्रीमती अश्विनी के मार्गक्रमण के माध्यम से सीखना सहज हुआ ।

अश्विनी का विवाह वर्ष 2010 में हुआ । अश्विनी के संतपद के मार्गक्रमण में उसके माता-पिता के साथ उसके पति अतुल तथा ससुरालवालों का अधिक मात्रा में सहयोग है । उसने माता-पिता ने उसे साधना के लिए देवद आश्रमे में आने के लिए कभी भी विरोध नहीं किया । विवाह के पश्‍चात् भी कभी उसने पत्नी अथवा बहु के रूप में व्यवहार नहीं किया । वह निरंतर साधिका के रूप में ही आचरण करती थी; अपितु उसके पति तथा ससुरालवालों ने कभी भी उसकी साधना में बाधाएं उत्पन्न नहीं की ।
वर्ष 2013 से, अर्थात् सव्वातीन वर्षों से अतुल योगतज्ञ प.पू. दादाजी वैशंपायन के पास उनकी सेवा में है । वह वहां पूरे समय के लिए साधना कर रहा है । अपितु उसने कभी भी अश्विनी के प्रति अप्रसन्नता प्रदर्शित नहीं की । उलट उसे प्रोत्साहन ही दिया । अतः अतुल की भी प्रगति शीघ्र गति से हो रही है ।

ऐसी ‘पू. (श्रीमती )अश्विनी पवार की आध्यात्मिक उन्नति शीघ्र गति से उत्तरोत्तर हो’, यही भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में प्रार्थना !’

— (परात्पर गुरु) डॉ. आठवलेजी (9.7.2017)

संतपदी विराजमान हुई पू.(श्रीमती) अश्विनी अतुल पवार

देवद (पनवेल), 9 जुलाई — सनातन की प्रसारसेविका सद्गुरु (कु.) अनुराधा वाडेकर ने 9 जुलाई को अर्थात् गुरुपूर्णिमा के शुभदिन पर यह घोषित किया कि, ‘यहां के सनातन के आश्रम में साधकों की आध्यात्मिक माता कहलानेवाली (श्रीमती) अश्विनी पवार (आयु 27 वर्ष ) ने 71 प्रतिशत स्तर प्राप्त कर वे सनातन की 69 वे संतपद पर विराजमान हुई हैं ।’ सनातन की प्रसारसेविका सद्गुरु (कु.) अनुराधा वाडेकर ने पू. (श्रीमती) अश्विनी पवार को भेटवस्तु देकर आदर किया । संतपद घोषित करने के कुछ पल पूर्व से ही श्रीमती अश्विनी पवार के भावाश्रु अनावर हुए थे । उस समय अनेक छोटे-बडे प्रसंगों में पू. (श्रीमती ) अश्विनी पवार का निखळ प्रेम अनुभव करनेवाले तथा उनके संतपद की घोषणा से उत्कंठित देवद आश्रम के साधक आनंदविभोर हुए । वास्तव में गुरुपूर्णिमा के दिन शिष्य ही गुरु को गुरुदक्षिणा देते हैं, किंतु परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने इस समारोह द्वारा साधकों को ही यह आनंद की तथा संतकृपा की भावभेंट प्रदान की । सनातन संस्था के न्यासी पद अथवा आश्रम का किसी प्रकार का अधिकारी पद न होते हुए भी केवल स्वयं में विद्यमान आध्यात्मिक गुणों के आधार पर साधकों को मार्गदर्शन कर श्रीमती अश्विनी पवार ने समष्टि संतपद प्राप्त किया ।

इस भावसमारोह के लिए प.पू. पांडे महाराज, सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळ, सद्गुरु राजेंद्र शिंदे, पू. सुदामराव शेंडे, पू. गुरुनाथ दाभोलकर, पू. सदाशिव (भाऊ) परब, पू. दत्तात्रय देशपांडे, पू. विनायक कर्के, पू. महादेव नकाते, पू. पद्माकर होनप, पू. रमेश गडकरी, साथ ही पू. (श्रीमती )अश्विनी पवार के पति श्री. अतुल पवार, पिता श्री. सदाशिव साळुंखे, माता श्रीमती पुष्पा साळुंखे, भाई श्री. सचिन साळुंखे, साथ ही आश्रम के सभी साधक उपस्थित थे ।

 

श्रीमती रेखा जाखोटिया ने प्राप्त किया 61 प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर !

श्रीमती रेखा जाखोटिया

‘शारीरिक विकलांग होते हुए भी साधना में प्रगति कर सकते हैं, इस बात का आदर्श सामने रखनेवाली श्रीमती रेखा (जीजी) जाखोटिया !’ — (परात्पर गुरु) डॉ. आठवलेजी

‘गत 6 वर्षों से शारीरिक विकलांग होने के कारण चलना तथा अपने आप सोना भी असंभव रहनेवाली 56 वर्ष की श्रीमती रेखा(जीजी) जाखोटिया चारपाई पर बैठकर संगणक पर मजकूर के संकलन की सेवा करती हैं । ऐसी स्थिती में भी सेवा कर 61 प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त करनेवाली जीजी ने सभी साधकों के सामने एक आदर्श रखा है । उन्होंने स्वयं विकलांगता होते हुए भी अपने पुत्र आनंद को भी ‘प्रसार के लिए जाना नहीं’ ऐसे कभी भी नहीं बताया । ‘उनकी प्रगति उत्तरोत्तर शीघ्र गति से’, ऐसी भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में प्रार्थना ! 

भावसमारोह में सनातन की प्रसारसेविका सद्गुरु (कु.) अनुराधा वाडेकर ने घोषित किया कि, ‘देवद आश्रम में लेख संकलन की सेवा करनेवाली तथा बीच में साधना के मार्ग पर कुछ कदम पीछे आई ‘श्रीमती रेखा जाखोटिया’ ने पुनः 61 प्रतिशत स्तर प्राप्त किया है । शारिरीक कष्ट ऊठाते हुए प्रतिकूल परिस्थिती में भी उन्होंने साधना में प्रगति की ।’ सद्गुरु (कु.) अनुराधा वाडेकर ने भेटवस्तु देकर श्रीमती जाखोटिया का आदर किया । 

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