मां-पिता समान सभी साधकों को आध्यात्मिक स्तर पर घडने के लिए प्रयासरत पू. (श्रीमती) सूूरजकांता मेनरायजी !

पूज्य मेनराय दादी को सनातन परिवार की ओर से जन्मदिन के निमित्त कोटि-कोटि प्रणाम !

सनातन की ४५ वीं संत पूज्य (पू.) मेनराय दादी का ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष त्रयोदशी को जन्मदिन है  इस निमित्त उनकी ध्यान में आई गुणविशेषताएं यहां दे रहे हैं । 

१. पू. मेनराय दादी के बताए अनुसार नामजप करते
हुए सेवा करने से सेवा अल्पावधि में पूर्ण होना

एक बार मैं प्रातः जल्दी उठकर फलक पर सूचना लिख रही थी । उस समय पू. (श्रीमती) मेनराय दादी मेरे पास आईं और उन्होंने मुझे पूछा, दिनभर में तुम्हारा कितना नामजप होता है ? मैंने कहा, दादीजी, दिनभर में मेरा नामजप बहुत कम होता है । इसपर वे बोलीं, नामजप करना चाहिए । उसीसे अपनी साधना होगी । सेवा करते समय मेरा नामजप अल्प होता था । उस सेवा में मेरा मन नहीं लग रहा था । नींद भी आ रही थी । तब मैंने नामजप करते हुए सेवा की, तो ५ घंटों की सेवा २ घंटों में ही पूरी हो गई । 

२. संत होते हुए भी सहजभाव में रहनेवाली पू. (श्रीमती) मेनराय दादी !

एक दिन मैं चौथे तल से दूसरे तल पर भोजनकक्ष में दौडते हुए जा रही थी । पू. मेनराज दादी तीसरे तल से भोजनकक्ष में जा रही थीं । मुझे देखकर वे बोलीं, क्या मैं भी तुम्हारे साथ दौडते हुए आऊं ? उस समय वे संत हैं यह मुझे ज्ञात नहीं था । हम दोनों एक-दूसरे का हाथ पकडकर दौडते हुए भोजनकक्ष पहुंचे । मुझे उनके साथ बहुत आनंद मिला  उनके हाथ के स्पर्श के कारण मेरे हाथ में सुगंध आ रही थी । तत्पश्‍चात मुझे एक साधिका ने कहा, पगली, क्या तुम्हें पता है कि तुम किस के साथ भोजनकक्ष में आई  वे संत हैं । साधिका की बात सुनकर मुझे आश्‍चर्य हुआ । मैं तो उन्हें हममें से एक दादी समझ रही थी । –  कु. अमृता मुद्गल, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. 

 

चूक के लिए खेद लगकर उसे सुधारने के लिए लगन
से प्रयास करनेवालीं पू. (श्रीमती) सूरजकांता मेनराज दादी !

१. चूक होने पर बहुत पछतावा होना तथा तुरंत वह सभी को बताकर स्वसूचना लेना : ७.७.२०१६ को  पू. मेनराज दादी से प्रसाधनगृह में लगे गीजर का बटन बंद करना रह गया था । इस चूक के लिए उन्हें बहुत पछतावा हुआ । चूक ध्यान में आने पर उन्होंने तुरंत कक्ष में सभी को बताया कि मेरे भूलना इस दोष के कारण मुझसे चूक हुई है । तत्पश्‍चात दोपहर में विश्राम के समय किसी से बात न कर, मन को स्वसूचनाएं दीं । 

२. चूक के लिए प्रायश्‍चित के रूप में दिनभर कक्ष में बत्ती न जलाते हुए रहने का निश्‍चय करना और पुनः वह चूक न हो, इसलिए उपाययोजना भी  करना : चूक के प्रायश्‍चित स्वरूप पू. मेनराय दादी ने उस दिन कक्ष में बत्ती न जलाते हुए रहने का निश्‍चय किया । उस दिन उन्होंने अंधेरे में ही भोजन किया । कक्ष में रहनेवाली अन्य साधिकाआें के बताने पर उन्होंने बत्ती जलाकर महाप्रसाद ग्रहण किया । साधिकाएं न बतातीं, तो वे बाहर से आनेवाले अल्प से प्रकाश में ही महाप्रसाद ग्रहण किया होता । तत्पश्‍चात यही चूक पुनः न हो, इसलिए वे सतर्क रहीं । गीजर का बटन बंद किया है या नहीं, यह निश्‍चित करने के लिए उन्होंने अन्यों की सहायता ली । 

३. पू. (श्रीमती) मेनराय दादी का पू. गाडगीळजी से चूक के बारे में बताकर मार्गदर्शन करने के लिए कहना  रात्रि सोने से पूर्व पू. मेनराय दादी ने कहा, मुझे अब पू. गाडगीळजी से मिलना है । साधना अच्छी होने के लिए उनके आशीर्वाद लेने हैं । मैं उन्हें पू. गाडगीळजी के पास ले गई । तब उन्होंने तुरंत ही अपनी चूक पू. गाडगीळजी कोे बताई । चूक बताते समय पू. दादी की आंखों में आंसू थे । पू. दादी ने पू. गाडगीळजी से कहा, मुझसे गंभीर चूक हुई है । मेरा मार्गदर्शन कीजिए । आशीर्वाद दीजिए । मुझे बताइए कि मैं क्या प्रयास करूं । मैं उसी के अनुसार करूंगी । इस पर पू. गाडगीळजी ने उन्हें बताया कि स्वसूचना दें तथा भगवान से प्रार्थना करें कि मेरे लिए जो आवश्यक है, उसका मुझे स्मरण रहे और उसी प्रकार वह मेरे स्मरण में रहकर मुझसे प्रयास हों । 

४. पू. मेनराय दादी का बताना कि चूकों से सीखकर वर्तमान में रहने से आनंदी रहना संभव होता है : पू. गाडगीळजी से बात करने पर पू. मेनराय दादी को हलकापन अनुभव हुआ और उन्हें अच्छा लगने लगा । सवेरे मैं उन्हें चाय देने के लिए उनके कक्ष में गई, तब क्या रात में नींद आई ? ऐसा मेरे पूछने पर वे बोलीं, हां, मुझे शांत नींद आई । चूकों से सीखने तथा वर्तमान में आने पर निराशा या जडता नहीं आती । अतिविचार भी नहीं करना है और छोड भी नहीं देना है । तभी आनंद में रहना संभव होता है ।  

इस प्रसंग में, गुरुधन की हुई हानि के बारे में खेद, गंभीरता एवं स्वयं में परिवर्तन लाने की लगन, सीखने की वृत्ति, पूछने की वृत्ति, तत्परता, अन्यों की सहायता लेना, वर्तमान में रहना, ये गुण सीखने मिले ।

– कु. माधवी पोतदार, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. 

संदर्भ : सनातन प्रभात 

Leave a Comment